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तथागत बुद्ध और महावीर के विचार हमेशा रहेंगे सामयिक

बुद्ध और महावीर भी अहिंसक थे। गांधी भी अहिंसक थे। लेकिन बुद्ध व महावीर की अहिंसा और गांधी की अहिंसा में बहुत बड़ा अंतर है। बुद्ध व महावीर, दोनों दर्शन व चिंतन के शिखर पर पहुंचकर, स्वभाविक रूप से अहिंसक हुए थे। जबकि गांधी स्वभाविक रूप से अहिंसक नहीं थे।

Update: 2021-05-28 07:29 GMT

बुद्ध और महावीर भी अहिंसक थे। गांधी भी अहिंसक थे। लेकिन बुद्ध व महावीर की अहिंसा और गांधी की अहिंसा में बहुत बड़ा अंतर है। बुद्ध व महावीर, दोनों दर्शन व चिंतन के शिखर पर पहुंचकर, स्वभाविक रूप से अहिंसक हुए थे। जबकि गांधी स्वभाविक रूप से अहिंसक नहीं थे। गांधी की अहिंसा अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए तत्कालीन अकाट्य रणनीति मात्र थी। तत्कालीन परिस्थितियों में जनता को साथ लाने की इक़लौती तरक़ीब थी। अंग्रेजों को बेबस करने की रणनीति थी। गांधी अगर हथियारों से लड़े होते तो, उनके साथ बच्चे, बूढ़े, नौजवान, छात्र, छात्राएं, व्यापारी, वकील, किसान, ग़रीब, विधवा, गर्भवती महिलाएं, बीमार, दिव्यांग...सब एक साथ सड़कों पर न उतरते। उनके साथ हिंसा के नाम पर कुछ ही जनता सड़कों पर होती।

ऐसे में फिर उस हिंसक भीड़ को लाठियों और गोलियों से नियंत्रित करना बड़ा आसान था। और 'हिंसक भीड़' के आंदोलन के कुचले जाने पर दुनिया की सहानिभूति भी भारतीय जनता के साथ न होती। अंग्रेजों की थू-थू न होती। क्योंकि अंग्रेज दुनिया को ये संदेश देने में सफल हो जाते कि ये चंद आतंकियों पर लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए की गई कार्रवाई मात्र है। इससे पहले के तमाम हिंसक विद्रोह भी इसीलिए असफल हुए थे। 1857 का विद्रोह और उससे पहले नायक विद्रोह, वघेरा विद्रोह, गडकरी विद्रोह, कुर्ग विद्रोह, कच्छ विद्रोह, भिवानी विद्रोह,...जैसे अनगिनत हिंसक विद्रोह असफल हो गये थे। तमाम हिंसक विद्रोह अंग्रेजों ने बर्बर तरीके से कुचल दिया था।

यहां तक कि जलियांवाला बाग हत्याकांड से अंग्रेज बुरी तरह इसलिए सहम गये क्योंकि निहत्थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलीबारी ने पूरी दुनिया में अंग्रेजों की जमकर थू-थू कराई थी। और वास्तव में यही वह ऐतिहासिक अवसर था, जब पूरी भारतीय जनता अंग्रेजों से भावनात्मक तौर पर अलग हो गई। हमेशा के लिए भावनात्मक तौर पर कट गई। कई अंग्रेज लेखक अपनी किताबों में लिखते भी हैं कि 13 अप्रैल का वह हत्याकांड ब्रिटिश हुक़ूमत का भारतीय उपमहाद्वीप छोड़ने का हस्ताक्षर था। हलफ़नामा था। दरअसल, मनोविज्ञान के मुताबिक़ एक बार अगर कोई आपसे भावनात्मक तौर पर अलग हो गया, या एक बार आप किसी की नज़रों में गिर गये, तो फिर दोबारा संबंधों में निकटता पहले जैसी कभी नहीं आ पाती।

खुद भगत सिंह ने अंतत: स्वीकार किया था कि गहराई में जमी अंग्रेजों की औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए हिंसात्मक रणनीति कारगर नहीं है। इसलिए अहिंसा गांधी की 'रणनीति' थी। 'अकाट्य रणनीति'। और उसमें वो सफल भी हुए। जबकि गांधी स्वभाविक रूप से अहिंसक नहीं थे। हां, वो एक सच्चे साधक ज़रूर थे। वो एक निर्क्षल आत्मा थे। बातों के धनी थे। बेबाक़ थे। मानवता के पुजारी थे। गज़ब के दूरदर्शी थे। नियत के साफ व सरल थे। जनता के मन को समझते थे। विचारों व चिंतन के मामलों में वो अन्य महापुरुषों की तरह आम इंसानों से बहुत आगे थे। उन्होंने खुद पर बहुत काम किया था। स्वसाधना किया।

यद्यपि की गांधी ने अपने अड़ियल सिद्धांतों के चलते खुद अपनी धर्मपत्नी कस्तूरबा और बेटों को थोड़ी-बहुत तकलीफ़ भी दी थी। फिर भी गांधी ने मानवता को जो दिया, वह उन्हें वास्तव में महानता की श्रेणी में खड़ा करता है। गांधी महान लोगों की श्रेणी में खड़े होने के पूरे हक़दार हैं, जबकि बुद्ध व महावीर की अहिंसा एकदम अलग है। वह रणनीति नहीं है। बुद्ध व महावीर और गांधी की अहिंसा में मौलिक अंतर है। बुद्ध व महावीर चिंतन के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचकर, स्वभाविक रूप से अहिंसक हुए थे। उन्होंने सरलतम शब्दों में, जीवन के तमाम प्रपंचों, पाखंडों, रुढ़िवादों व शोषण के मकड़जाल पर आधारित पूरी व्यवस्था पर, वैज्ञानिक चेतना के साथ कुठाराघात करते हुए, पूरी मानवता के लिए सर्वोत्तम मार्ग बताया था।

बुद्ध व महावीर चिंतन के मामले में इतने ऊपर हैं कि आज आप अगर संकीर्ण बौद्धिक दायरे में रहकर बुद्ध व महावीर का मूल्यांकन करेंगे, तो आप उन्हें नहीं समझ पाएंगे। आज ही नहीं, कभी भी नहीं। बुद्ध व महावीर ने वो सर्वोत्तम मार्ग बताया, जिसपर चलकर सबका कल्याण हो सकता है। बुद्ध व महावीर हर काल में समसामयिक लगेंगे। बुद्ध व महावीर की बातें मौलिक चिंतन के साथ-साथ, इतनी सरल हैं कि विज्ञान कितना भी विकास कर जाए, वह बुद्ध व महावीर की बातों की ही पुष्टि करेगा। उनका खंडन नहीं, दरअसल, मौलिकता का खंडन हो भी नहीं सकता। इसलिए धरती पर जितने भी बुद्धपुरुष आएंगे, सबकी मौलिक बातें एक जैसी ही होंगी। भले ही उनके जीवनपथ अलग-अलग हों।

उदाहरण के तौर पर: प्रथम दृष्टया आपको कृष्ण व बुद्ध में भेद मालूम पड़ेगा। कृष्ण आस्तिक दिखेंगे। बुद्ध नास्तिक दिखेंगे। लेकिन एक स्तर पर उठकर आप देखेंगे तो पाएंगे कि कृष्ण व बुद्ध एक ही आध्यात्मिक धरातल पर खड़े होकर, अलग-अलग किरदार निभा रहे हैं। बस अंतर यह है कि बुद्ध जिस समय, परिस्थिति और सामाजिक व राजनैतिक दौर में पैदा हुए और कृष्ण जिस समय, परिस्थिति और सामाजिक व राजनैतिक दौर में पैदा हुए, दोनों में अंतर था। इसलिए सिद्धार्थ आगे चलकर बुद्ध हो गये। और कृष्ण आगे चलकर श्रीकृष्ण हो गए, पर बुद्ध व महावीर हों या फिर गांधी हों, उन्हें पढ़ा, समझा व उनपर चिंतन कम किया गया, संकीर्ण बौद्धिक दायरे में सिमटकर उनका मूल्यांकन खूब किया गया। उनका ग़लत प्रचार किया गया।

बातें तो बहुत भरी हैं, मन में। सब कुछ लिख पाना असंभव है। खास तौर से इतनी महान आत्माओं पर चंद शब्दों में लिख पाना असंभव है। इसलिए इस विषय पर आज बस इतना ही। बुद्ध और महावीर व गांधी जैसी महान आत्माओं पर बाकी बातें फिर किसी अवसर पर होंगी। इसमें कोई शक नहीं कि बुद्ध, महावीर एवं गांधी जैसे महापुरुष परमात्मा की सबसे खूबसूरत रचनाओं में से एक हैं।





(लेखक अजय सिंह गहरवार, स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक हैं।)

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