ग्रामीण भारत के नए युग की नींव: जीरामजी विधेयक

Update: 2025-12-18 05:18 GMT

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित विकसित भारत-जीरामजी (गारंटी फॉर एम्प्लॉयमेंट एंड आजीविका मिशन, ग्रामीण) विधेयक-2025 ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक ढांचे में एक निर्णायक और दूरदर्शी बदलाव का संकेत देता है। यह विधेयक दो दशक पुराने मनरेगा कानून को निरस्त कर उसके स्थान पर एक अधिक आधुनिक, एकीकृत और परिणाम-केंद्रित रोजगार एवं आजीविका ढांचा प्रस्तुत करता है, जो विकसित भारत 2047 के राष्ट्रीय विजन के अनुरूप है।

मनरेगा ने 2005 के बाद ग्रामीण गरीबी उन्मूलन और रोजगार सुरक्षा में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। किंतु पिछले 20 वर्षों में ग्रामीण भारत की वास्तविकताएं तेजी से बदल गई हैं। डिजिटल पहुंच, बुनियादी ढांचे का विस्तार, सामाजिक सुरक्षा योजनाएं और वित्तीय समावेशन ने गांवों की जरूरतों और प्राथमिकताओं को नया स्वरूप दिया है। ऐसे में पुराने ढांचे को यथावत बनाए रखना न तो प्रभावी था और न ही भविष्योन्मुख। विकसित भारत-जीरामजी विधेयक इसी बदलते परिदृश्य का उत्तर है।

इस विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष रोजगार गारंटी को 100 से बढ़ाकर 125 दिन करना है। यह कदम सीधे तौर पर ग्रामीण परिवारों की आय सुरक्षा को मजबूत करेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देगा। साथ ही, रोजगार को सिर्फ अस्थायी राहत नहीं, बल्कि स्थायी परिसंपत्ति निर्माण से जोड़ा गया है, जिससे गांवों में टिकाऊ विकास संभव होगा।

नई योजना के तहत कार्यों को चार स्पष्ट श्रेणियों-जल सुरक्षा, मुख्य ग्रामीण बुनियादी ढांचा, आजीविका बुनियादी ढांचा और जलवायु लचीलापन-में संगठित किया गया है। इससे मनरेगा के दौरान देखी गई बिखरी हुई और अल्प-प्रभावी परियोजनाओं की समस्या दूर होगी। मिशन अमृत सरोवर के तहत पहले ही 68,000 से अधिक जल निकायों का निर्माण या पुनरोद्धार इस दृष्टिकोण की सफलता का प्रमाण है, जिसका सीधा लाभ कृषि, भूजल और बहु-फसली खेती को मिला है।

किसानों के हितों को विशेष रूप से ध्यान में रखा गया है। बोआई और कटाई के समय 60 दिनों तक सार्वजनिक कार्यों को रोकने का प्रावधान श्रम की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा और कृत्रिम मजदूरी मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाएगा। इससे उत्पादन लागत नियंत्रित रहेगी और खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी। बेहतर सड़कें, भंडारण और बाजार संपर्क किसानों को उपज के उचित मूल्य और कम नुकसान में मदद करेंगे।

श्रमिकों के लिए यह विधेयक अधिक आय, निश्चित कार्य और पारदर्शिता की गारंटी देता है। पूर्ण डिजिटल उपस्थिति, आधार आधारित सत्यापन और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान व्यवस्था ने पहले ही वेतन चोरी जैसी समस्याओं को लगभग समाप्त कर दिया है। बेरोजगारी भते का प्रावधान राज्यों की जवाबदेही बढ़ाता है और श्रमिकों के अधिकारों को सशक्त करता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विकसित भारत-जीरामजी पलायन को कम करने और गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम है। जब स्थानीय स्तर पर रोजगार, बुनियादी ढांचा और आजीविका के अवसर उपलब्ध होंगे, तो शहरों पर अनावश्यक दबाव भी घटेगा।

कुल मिलाकर, यह विधेयक केवल मनरेगा का विकल्प नहीं, बल्कि उसका आधुनिक और उन्नत संस्करण है। यह ग्रामीण भारत को राहत-आधारित सोच से निकालकर विकास-आधारित और भविष्य-केंद्रित मॉडल की ओर ले जाता है। सरकार का यह कदम दर्शाता है कि वह 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को जमीनी स्तर से मजबूत करना चाहती है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो विकसित भारत-जीरामजी ग्रामीण भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।

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