विश्व के सबसे बड़े साहित्योत्सव से गुलजार होगी दिल्ली

प्रदीप सरदाना

Update: 2024-03-10 20:44 GMT

आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर यूं तो दिल्ली इन दिनों राजनैतिक गतिविधियों के लिए ज्यादा चर्चित है। लेकिन इधर 11 मार्च से दिल्ली में शुरू हो रहे साहित्योत्सव से राजधानी साहित्यिक-सांस्कृतिक रंगों से महक उठेगी। इस 6 दिवसीय साहित्योत्सव का आयोजन देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था 'साहित्य अकादमीÓ कर रही है। हालांकि अकादमी 'साहित्योत्सवÓ का आयोजन प्रतिवर्ष करती है। लेकिन इस बार यह आयोजन बेहद खास है। इस वर्ष साहित्य अकादमी की स्थापना के 70 वर्ष हो गए हैं। भारत सरकार ने भारतीय साहित्य के सक्रिय विकास और पोषण, साहित्य में उच्च मानदंड स्थापित करने और भारतीय भाषाओं में साहित्यिक गतिविधियों को समन्वित करने जैसे उद्देश्यों को लेकर 12 मार्च 1954 को साहित्य अकादमी की स्थापना की थी। इसलिए अकादमी इस वर्ष के साहित्योत्सव को और भी अधिक उत्साह तथा व्यापक स्तर पर आयोजित कर रही है। समारोह की व्यापकता और भव्यता इतनी है कि इस वर्ष यह आयोजन विश्व का सबसे बड़ा साहित्य उत्सव होने जा रहा है।

साहित्योत्सव के 11 से 16 मार्च के 6 दिनों में देश के 1100 से अधिक लेखक और विद्वान हिस्सा ले रहे हैं। इससे पूर्व किसी एक साहित्य उत्सव में लेखकों की इतनी बड़ी भागीदारी कहीं नहीं देखी गयी। साथ ही यह एक ऐसा अद्भुत साहित्योत्सव भी होने जा रहा है जिसमें देश की 175 भाषाओं के लेखकों, कवियों और विद्वानों का प्रतिनिधित्व होगा। हालांकि यह बात अनेक व्यक्तियों को आश्चर्यचकित कर सकती है कि क्या हमारे देश में 175 भाषाएँ हैं। क्योंकि हम सब मुख्यत: देश की 24 भाषाओं से अधिक परिचित हैं। जिनमें हिन्दी, संस्कृत, गुजराती, मराठी, पंजाबी, बांग्ला, अँग्रेजी, उर्दू, तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड, ओड़िया, राजस्थानी, असमिया, डोगरी और नेपाली जैसी भाषाएँ प्रचलित हैं। साहित्य अकादमी भी ऐसी ही 24 भाषाओं की कृतियों के लेखकों,कवियों को सम्मानित करती है। लेकिन विशाल भारत वर्ष में इतनी भाषाएँ और बोलियाँ हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। देश के आदिवासी और पहाड़ी क्षेत्रों में भी कदम-कदम पर विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। यह देश का ऐसा पहला समारोह होगा जब एक ही मंच पर 175 भाषाओं के लेखक-कवि सम्मिलित होंगे। इनमें प्रमुख भाषाओं के साथ जहां मैथिली, अवधि, हरियाणवी, हिमाचली, कश्मीरी, कोंकणी, संताली, बोडो भाषाएँ तो होंगी ही। साथ ही मोनपा, कुरमाली, मगही, सरही, तिवा, चिरु, दिमासा, खानदेशी, लेबागन, जुआँग, यसगरा, शीना, भोटी, गालो, तडवी, राठवी, मीणी, अहिरानी, टोटो और तुलु जैसी कई ऐसी भाषाएँ भी होंगी जिनके नाम भी पहले नहीं सुने होंगे।

इस बार के साहित्योत्सव की एक विशेषता यह भी है कि इसमें लगभग 190 सत्र आयोजित होंगे। जिनमें कई जाने माने लेखकों-कवियों के साथ कला-संस्कृति की दुनिया के भी कई विशिष्ट नाम शामिल होंगे। साथ ही देश के तीन राज्यों के राज्यपाल भी समारोह में हिस्सा ले रहे हैं। ये हैं केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल विश्वभूषण हरिचन्दन और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंदबोस। समारोह का एक बड़ा आकर्षण यह भी होगा कि प्रख्यात लेखक और गुलज़ार सिनेमा और साहित्य विषय पर 13 मार्च शाम को प्रतिष्ठित संवत्सर व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे। उल्लेखनीय है कि हाल ही में गुलज़ार को ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित करने की घोषणा हुई है। यूं साहित्योत्सव में विभिन्न भाषाओं के जो साहित्यकार सम्मिलित हो रहे हैं उनमें चंद्रशेखर कंबार, एस एल भैरप्पा, आबिद सुरती, के सच्चिदानंद, पॉल जकरिया, शीला झुनझुनवाला, चित्रा मुद्गल, मृदुला गर्ग, नमिता गोखले, सचिन केतकर, ममंग दई, एस एच शिवप्रकाश, के इनोक, कुल सैकिया, मालश्री लाल, अरुंधति, वर्षा दास, राणा नायर, उदय नारायण सिंह, कपिल कपूर, शीन काफ निज़ाम और वाई डी थोंगची जैसे नाम तो शामिल हैं।

उधर ममता कालिया, असगर वजाहत,अशोक चक्रधर, राम बहादुर राय,लीला धर मंडलोई, प्रयाग शुक्ल, बुद्धिनाथ मिश्रा, अमरनाथ अमर और ओम निश्चल जैसे और भी कई प्रतिष्ठित व्यक्ति इस उत्सव में भाग ले रहे हैं। साहित्योत्सव में कला संस्कृति पर भी कई कार्यक्रम हैं। जिनमें सोनल मानसिंह, संध्या पुरेचा, शोभना नारायण विभिन्न सत्रों में हिस्सा लेंगी। वहाँ अर्जुन देव चारण, देवेन्द्र राज अंकुर, चितरंजन त्रिपाठी जैसे व्यक्तित्व रंगमंच और साहित्य से जुड़े विषयों पर अपना मत रखेंगे। वहाँ 12 मार्च को कमानी सभागार में 'कस्तूरीÓ के माध्यम से गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को संगीतमय श्रद्धांजलि दी जाएगी। जिसमें पंडित विश्वमोहन भट्ट, संदीप भूटोरिया, शिंजनी कुलकर्णी और अंकिता जोशी जैसे कलाकार होंगे। इससे पूर्व समारोह के पहले दिन राजश्री वारियार की भरतनाट्यम प्रस्तुति होगी। तो 14 मार्च को 'संत वाणी गायनÓ में महेशा राम और साथी का संगीतमय कार्यक्रम होगा। फिर 16 मार्च को चितरंजन त्रिपाठी द्वारा निर्देशित और दया प्रकाश सिन्हा द्वारा लिखित नाटक 'सम्राट अशोकÓ का मंचन भी साहित्योत्सव का आकर्षण रहेगा। समारोह का उद्घाटन 11 मार्च सुबह केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल करेंगे। जबकि साहित्योत्सव का सबसे प्रमुख कार्यक्रम 'साहित्य अकादमी पुरस्कारÓ अर्पण समारोह 12 मार्च शाम को कमानी सभागार में होगा। इस कार्यक्रम की प्रमुख अतिथि ओड़िया की प्रसिद्द लेखिका प्रतिभा राय होंगी। जबकि साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक, उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा और अकादमी सचिव के श्रीनिवास राव पुरस्कारों और उत्सव पर अपने विचार रखेंगे। इस बार जिन लेखकों को साहित्य अकादमी पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा रहा है। उसमें हिन्दी में 'मुझे पहचानोÓ कृति के लिए कथाकार संजीव को यह सम्मान मिलेगा। वहाँ मराठी के लिए कृष्णात तुकाराम, संस्कृत के लिए अरुण रंजन मिश्र, अँग्रेजी के लिए नीलम सरन गौड़, गुजराती के लिए विनोद जोशी, पंजाबी के लिए स्वर्णजीत सवी, और राजस्थानी के लिए गजेसिंह राजपुरोहित को पुरस्कार मिलेगा। वहाँ प्रणव ज्योति डेका (असमिया) स्वप्नमय चक्रवर्ती (बांग्ला) सादिका नवाब सहर (उर्दू) विनोद आसुदानी (सिंधी) आशुतोष पारिड़ा (ओडिया) लक्ष्मीश टोल्पाडि) विजय वर्मा (डोगरी) युद्धवीर राणा (नेपाली) बासुकी नाथ झा (मैथिली) एस राजशेखरन (तमिल) तरासीन वास्के (संताली) तल्लावझला तंजलि शास्त्री (तेलुगू) इवी रामकृष्णन (मलयालम) नंदेश्वर दैमारि (बोड़ो) मंशूर बानिहाली (कश्मीरी) प्रकाश एस पर्येंकर (कोंकणी) और सोरोकखाईबम गम्भीनी (मणिपुरी) को भी साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इन सबके साथ साहित्य अकादमी के सदस्यों को भी 11 मार्च को सम्मानित किया जाएगा।

कार्यक्रम में विभिन्न सत्रों में कई महत्वपूर्ण सत्र हैं। जिनमें बहुभाषी कवि सम्मेलन, आदिवासी कवि लेखक सम्मेलन, भारत में बाल साहित्य, भारत में नाट्य लेखन, भारत की सांस्कृतिक विरासत, भारतीय भाषाओं में विज्ञान कथा साहित्य, भविष्य के उपन्यास, भारतीय साहित्य में आत्मकथाएं, विदेशों में भारतीय साहित्य, भारत की अवधारणा, साहित्य और सामाजिक आंदोलन, तथा नैतिकता और साहित्य प्रमुख हैं।

उधर इस बार की राष्ट्रीय संगोष्ठी स्वात्र्र्योंतर भारतीय साहित्य पर होगी। साथ ही अखिल भारतीय दिव्यांग लेखक सम्मेलन, एलजीबीटीक्यू लेखक सम्मेलन, मीर तकी मीर की जन्म त्रिशतवार्षिकी संगोष्ठी, गोपीचन्द नारंग संवाद जैसे विशेष आयोजन भी साहित्योत्सव की गरिमा बढ़ाएँगे। समारोह में बच्चों का आकर्षण भी बना रहे और बच्चे भी विश्व के इस सबसे बड़े साहित्योत्सव में अपनी भागीदारी कर सकें इसके लिए बच्चों को भी इसमें जोड़ा गया है। इसके लिए दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों के एक हज़ार बच्चों को समारोह में आमंत्रित किया है। जहां बच्चे चित्रकला प्रतियोगिता और साहित्य प्रश्नोतरी और कुछ अन्य प्रतियोगिता में भाग ले सकेंगे। साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव भी साहित्य के इस महाकुंभ के आयोजन से अच्छे खासे उत्साहित हैं। श्रीनिवासराव पिछले कुछ बरसों में साहित्य अकादमी में नियमित बड़े आयोजन का लंबा और सफल अनुभव रखते हैं। राव बताते हैं- विश्व के सबसे बड़े साहित्योत्सव का आयोजन कर हम निश्चय ही प्रसन्न हैं, उत्साहित हैं। हालांकि हम इस आयोजन से गिनीज़ बुक में अपना नाम शामिल करने का कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। प्रयास बस इतना है कि देश भर के साहित्यकार एक ही मंच पर एकत्र हो सकें, मिल सकें, चर्चा कर सकें। साथ ही हमारा यह आयोजन अच्छे से सफल हो सके।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक हैं)

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