सुर, ताल और भक्ति में रची तानसेन की तीसरी संध्या, श्रोताओं ने लिया अलौकिक आनंद

Update: 2025-12-18 04:31 GMT

तानसेन समारोह के तीसरे दिन बुधवार को सायंकालीन संगीत सभाएं गायन और वादन को समर्पित रहीं। शाम की सुरमई हवाओं में घुलते संगीत ने मानो संपूर्ण वातावरण को सुर-ताल की पवित्र अनुभूति से सराबोर कर दिया। रागों की गंभीरता, बंदिशों की सुघड़ता और वादन की सजीव लय श्रोताओं को एक अलौकिक सांगीतिक यात्रा पर ले गई। परंपरानुसार ध्रुपद गायन के साथ सभा का आरंभ हुआ।

ग्वालियर में चल रहे 101वें संगीत समारोह में बुधवार को शारदा नाद मंदिर संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के विद्यार्थियों ने अपने सधे हुए सुरीले गायन से वातावरण में दिव्य आलोक बिखेर दिया। उन्होंने राग मारू बिहाग में चौताल की रचना ‘प्रथम नाद सुर साधे’ प्रस्तुत की।

भावुक स्मृतियों और आनंद का रस बरसा

अगली प्रस्तुति माधुर्य और रस से सराबोर रही, जब मंच पर मुंबई से आए सुविख्यात मंगल वाद्य शहनाई के साधक पंडित शैलेष भागवत ने अपनी प्रस्तुति दी। पंडित भागवत ने अपनी प्रस्तुति का शुभारंभ राग शुद्ध कल्याण से किया। विलंबित एकताल में राग की गरिमा और विस्तार को सधे हुए आलाप से उकेरते हुए उन्होंने द्रुत तीनताल में सजीव लयकारी के साथ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इसके पश्चात सुविख्यात गायक एवं मप्र शासन के राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान से अलंकृत संजीव अभ्यंकर ने मंच संभाला। पुणे से आए श्री अभ्यंकर देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के लिए राग जोग का चयन किया, जिसमें ‘नाही परत चित चैन जाही, लागी सोही जाने सावरे की सेन’ बंदिश प्रस्तुत की। इसके बाद उन्होंने राग भिन्न षड्ज में ‘अजहु ना आए सुघर प्रिय श्याम’ बंदिश गाई।

चार वाद्यों का सधा हुआ संगीतमयी संवाद

तीसरे दिन सायंकाल की अंतिम प्रस्तुति अपने आप में विशिष्टता और नवाचार का अनुपम संगम सिद्ध हुई। शास्त्रीय संगीत के कर्णप्रिय और महत्वपूर्ण वाद्यों का एक ही मंच पर सधा हुआ संवाद संगीतप्रेमियों के लिए स्मरणीय अनुभव बन गया।

भुवनेश्वर से पधारे वायलिन वादक अग्निमित्रा बेहरा, बांसुरी वादक अभिराम नंदा, तबला वादक विश्वारंजन नंदा तथा पखावज वादक शिवशंकर सतपति ने मंच पर उपस्थित होते ही वातावरण को संगीतमय ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। अंत में ओडिसी संगीत की नाट्यरंगी धुन की प्रस्तुति के साथ इस मनोहारी संगीत यात्रा को विराम दिया गया, जिसने श्रोताओं के मन पर गहरी छाप छोड़ते हुए समारोह की इस संध्या को अविस्मरणीय बना दिया।

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