शीतल समीर में सुरों का स्वप्न-लोक: हृदय दृश्यम संगीत समारोह का मनोहर समापन
झील के कंठ से सटी भारत भवन की बहिरंग वादिनी संध्या उस समय संगीत रस में पूरी तरह अभिमंत्रित हो उठी, जब तीन दिवसीय आठवें हृदय दृश्यम संगीत समारोह का अंतिम प्रहर सुर, ताल और लय की अद्भुत त्रिवेणी में परिणत हुआ। संस्कृति एवं पर्यटन विभाग, मध्यप्रदेश शासन द्वारा आयोजित इस सांगीतिक महोत्सव में अंतिम दिवस पर तीन अद्वितीय प्रस्तुतियों ने श्रोताओं की चेतना को मानो किसी दिव्य अनुभूति के प्रदेश में पहुंचा दिया। समारोह में कलाकारों का अभिनंदन आयुक्त भोपाल नगर निगम श्रीमती संस्कृति जैन तथा उप-संचालक डॉ. पूजा शुक्ला ने किया।
बांसुरी की वायु, वीणा और रागों की स्वर्ण छाया
अंतिम दिवस की प्रथम सभा सुप्रसिद्ध बांसुरी सम्राट पंडित राकेश चौरसिया के अलौकिक बांसुरी-वादन को समर्पित थी। सांझ की शीतल हवा में जब उनके वंशी-निनाद ने राग भीमपलासी के कोमल-गंभीर स्वर बिखेरे, तो वातावरण मानो सुर-लोक में रूपांतरित हो उठा। मध्य लय रूपक में गत और तत्पश्चात दुत तीनताल की मनोहर गत ने श्रोताओं को एक अनहद संसार में प्रविष्ट कर दिया।
सुर-यात्रा आगे बढ़ी तो पंडित जी ने राग पहाड़ी की सुहावनी धुन से श्रोताओं को एक शांत, निर्मल, अनंत आनंद से सराबोर कर दिया। तबले पर श्री रामेंद्र सिंह सोलंकी की संगत ने इस संगीतमय संवाद को और भी गहन कर दिया।
ताल-तांडव की आध्यात्मिक पराकाष्ठा
अंतिम प्रस्तुति में मंच पर विराजे ग्रैमी अवार्ड विजेता ताल-साधक वी. सेल्वगणेश और उनका विशिष्ट पंचाक्षरा समूह—जिसमें उमाशंकर (घटम), स्वामीनाथन (कोनक्कल एवं कंजीरा) तथा ए. गणेशन (मोरसिंग) शामिल थे। समूह ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत श्रीगणेश शिव तांडव से की, जिसने वातावरण में भक्ति, शक्ति और लय के अद्वितीय संयोग की दिव्य तरंगें प्रवाहित कर दीं।
फ्यूजन की विद्युत-तरंगें
दूसरी प्रस्तुति में मंच पर उतरे देश-विदेश में विख्यात ब्रह्म फ्यूजन बैंड। जैसे ही बैंड ने अपने तीव्र, ओजपूर्ण और नवाचार से परिपूर्ण सुरों की पहली चिंगारी जलाई, दर्शक दीर्घा उत्साह की लहरों में डूब गई। भारतीय संगीत की आत्मा और वैश्विक लयों की धड़कन को जब कलाकारों ने अद्भुत संगति में पिरोया, तो बहिरंग का हर कोना बहुरंगी प्रकाश-लहरियों से आलोकित प्रतीत होने लगा।
कभी उन्मुक्त जुगलबंदी की दहकती चमक, तो कभी स्वरों की कोमल उठान हर क्षण संगीत के किसी नए क्षितिज को उद्घाटित करता चला गया। श्री जो अलवारिस और शैफाली द्वारा प्रस्तुत रचनाओं ने इस ऊर्जा को और भी सौंधा, और भी निखरा रूप प्रदान किया।
प्रस्तुत 'सेवन एंड ए हाफ' कंपोजिशन में जटिल ताल-विन्यास और लयगत आरोह-अवरोह ने श्रोताओं को मंत्रबद्ध कर दिया। अंतिम कोनक्कल प्रस्तुति में मुख-लय की अद्भुत तन्मयता ने सभागार में उपस्थित हर व्यक्ति को ताल-योग की पराकाष्ठा से परिचित कराया।
भोपाल के दर्शकों ने इस अनूठे ताल-अनुभव को हृदय से स्वीकारते हुए भरपूर सराहना की। तीन दिन तक बहिरंग में बहता रहा संगीत का सतत विमल प्रवाह-कभी शांत सरिता, कभी उच्छल जलप्रपात। अंतिम दिवस का यह स्वर्णिम संध्या-पल भारत भवन की स्मृतियों में लंबे समय तक गूंजता रहेगा।