भारत की पहचान में नदियों का महत्त्व और उनकी स्थिति

शिवकुमार शर्मा

Update: 2025-09-13 11:40 GMT

सरितायें संस्कृतियों की पोषक रहीं हैं। सिन्धु घाटी की सभ्यता, दजला व फरात नदियों की गोद में मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता और नील नदी के प्रवाह क्षेत्र में पनपी मिश्र की प्राचीन सभ्यताएं इसकी साक्षी हैं। नदियां उद्गम से लेकर संगम तक हमें केवल देती ही देती हैं,कोई प्रतिदान नहीं चाहतीं (परोपकाराय बहन्ति नद्य:) या "पिवन्ति नद्य: स्वमेव नाम्भ:, स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षा:। नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहा:,परोपकाराय सतां विभूतय:।।"

कूलंकथाओं का कलित कल-कल निनाद सदा कष्टहारक और कल्याणकारक रहा है। प्राणियों का अस्तित्व जीवनदायिनी पयस्विनियों पर निर्भर रहा है। आपगाअमृत तुल्य निर्मल जल प्रदायिनी होने के साथ अन्न पैदा करने के लिए जल उपलब्ध कराती रहीं हैं। स्रोतस्विनी जीवों का पोषित करती हैं इसलिए उन्हें माॅं ,माता ,मैया से सम्बोधित किया जाता है।ऋग्वेद के 10 वे मंडल के 75 वे सूक्त (नदीसुक्तम्) के पाँचवें और छठे मंत्रों में कम से कम उन्नीस नदियों का आह्वान किया गया है, जिनमें प्रमुख नदियों के साथ-साथ सिंधु नदी की सहायक नदियों का भी उल्लेख है। "इ॒मं मे॑ गंगे यमुने सरस्वती॒ शुतु॑द्री॒ स्तोमन॑ सचता॒ पुरुषोष्ण्या। अ॒सि॒कन्या मा॑रुदृद्धे वि॒तस्त॒याऽऽर्जी॑किये श्रृणु॒ह्या सु॒शोम॑या ॥5॥ "(ऋग्वेद 10.75.5) [3]

हे गंगा (गांगा), यमुना (यमुना), सरस्वती (सरस्वती), शुतुद्री (शुतुद्रि) या शतुद्री, परुष्णी (पुष्णी), असिक्नी (असिक्नी), मरुवृद्धा (मरुद्वृधा), वितस्ता (वितस्ता) सहित सुशोमा (सुषोमा) और अर्जिकिया (आर्जिकीय), स्वीकार करो और अपने लिए मेरी स्तुति सुनो।वेदों में वर्णित कई नदियां प्राकृतिक कारणों से विलुप्त हो गयीं अथवा उनके मार्ग परिवर्तित हो गये।

रामचरितमानस में राम कथा नदियों के किनारों से चलकर सिन्धु पार तक जाती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में भिन्न-भिन्न भिन्न प्रसंगों में नदियों के सन्दर्भ बड़े सरल,सहज सुन्दर और सरस तरीके से दिए हैं।

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिशि सरजू*वह पावन।।

भंवर जमुन*और गंग*तरंगा ।देखि होइ दुख दारिद भंगा।। सई उतरि गोमती*नहाए। चौथे दिवस अवधपुर आए ।।

एहि विधि करत पंथ पछितावा।तमसा*तीर तुरत रथ आवा।। सब सर सिंधु नदी नद नाना।मंदाकिनि*कर करहिं बखाना।। सुरसरि धार नाम मंदाकिनि।सो सब पातक पोतक डाकिन।।अनुज समेत गए प्रभु तहंवा।गोदावरि*तट आश्रम जहंवा।।

भारत की पहचान नदियों के कारण ही "नदी-प्रधान देश" के रूप में की जाती है। भारतीय संस्कृति, सभ्यता और जीवन-पद्धति में नदियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। मध्य प्रदेश को "नदी प्रदेश" कहा जाता है, क्योंकि यहाँ से अनेक प्रमुख नदियों का उद्गम होता है। नर्मदा, ताप्ती, शिप्रा, चंबल, बेतवा, केन और सोन जैसी प्रमुख नदियाँ और तवा, वैनगंगा सिन्धु,काली सिंध गाय,कून्हों, कुंवारी, वर्धा,टोंस (तमसा) ,पैंच, माही,अनास,बनास,नेवज,शेर,शक्कर,दूधी हिरन ,पार्वती,धसान ,मालिनी ,देनवा,सप्तवा छोटी जल- मालायें यहाँ के जनजीवन को संजीवनी प्रदान करती हैं।

मध्य प्रदेश की नदियाँ कृषि, उद्योग, पेयजल तथा विद्युत उत्पादन का प्रमुख स्रोत हैं।मेकलसुता नर्मदा नदी को म.प्र.की 'जीवनरेखा' कहा जाता है। शिप्रा नदी धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है,जहाँ उज्जैन का महाकुंभ मेला आयोजित होता है। चंबल,बेतवाऔर केन नदियाँ बुंदेलखंड जैसे शुष्क क्षेत्र को जल उपलब्ध कराती हैं। नदियों के किनारे बसी सभ्यताएँ, धार्मिक स्थलों की आस्था तथा लोकजीवन की विविध परंपराएँ नदियों की सांस्कृतिक महत्ता को और भी बढ़ा देती हैं।

सिंचाई, पेयजल, बिजली, उत्पादन बाढ़ और सूख नियंत्रण की दृष्टि से नदियों के जल का प्रबंध सरकार द्वारा किया जा रहा है। मध्य प्रदेश में 60 से अधिक बांध हैं जिनमें 15 बड़े बांध है। नर्मदा नदी पर प्रदेश की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना इंदिरा सागर परियोजना है। सोन नदी पर बाणसागर परियोजना है जिससे सिंचाई और बिजली तथा जलापूर्ति होती है। चंबल नदी पर गांधी सागर बहुउद्देश्यीय परियोजना बेतवा नदी पर राजघाट अंतर्राज्यीय परियोजना है । इसके अतिरिक्त राजगढ़ जिले की कुंडलियां परियोजना से ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक से सिंचाई की सुविधा तथा मोहनपुरा परियोजना से प्रेशर वाली पाइपलाइन से सिंचाई की सुविधा प्राप्त हो रही है। इसके अतिरिक्त हिनौता,मड़ि- खेड़ा जैसी अन्य बांध परियोजनाएं भी हैं।पार्वती-कालीसिंध-चंबल मेगा परियोजना पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के साथ एकीकृत कर पूर्वी राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के मालवा व चंबल क्षेत्रों के 13 जिलों में पेयजल एवं औद्योगिक जल उपलब्ध कराने तथा दोनों राज्यों में प्रत्येक में न्यूनतम 2.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई है।

राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (एन.आर.एल.पी.)के अन्तर्गत जल प्रबन्धन में सुधार हेतु । मध्य प्रदेश में केन नदी से पानी बेतवा नदी में स्थानांतरित करने की प्रमुख लिंक परियोजना है जिससे बुंदेलखंड क्षेत्र की लिए सिंचाई और पेयजल की उपलब्धता हो सकेगी ।यहां यह उल्लेख करना न केवल समीचीन होगा अपितु अत्यंत आवश्यक भी है कि विकास कार्य प्रकृति और पर्यावरण को अधिक्रमित और अतिक्रमित करके नहीं करेंगे तभी संतुलित विकास संभव होगा। पर्यावरण संरक्षण पर यदि ध्यान नहीं दिया गया तो प्रकृति के कोप भाजन बनने में अब अधिक समय नहीं है।

वर्तमान समय में प्रदूषण,अंधाधुंध खनन प्राकृतिक संसाधनों के प्रतिस्पर्धी दोहन से नदियाँ संकटग्रस्त हो चुकी हैं। नगरों और उद्योगों का अपशिष्ट बिना शोधन के नदियों में छोड़े जाने से प्रदूषित हो रही हैं।अवैध खनन से नदियों की धारा और तली असंतुलित हो रही है।वनों की कटाई, जलग्रहण क्षेत्रों में पेड़ों की कमी से जलस्तर घटता जा रहा है।धार्मिक आस्था का दबाव ,पूजा सामग्री और मूर्तियों के विसर्जन से जल गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से अनियमित वर्षा और अत्यधिक गर्मी से नदियों का प्रवाह की तीव्रता कमजोर हो रही है। इसलिए नदी संरक्षण मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत और विश्व भर के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता हो गयी है।

मध्य प्रदेश सरकार ने नदियों के संरक्षण हेतु अनेक पहलें की हैं।नर्मदा सेवा यात्रा (2016-17): इस अभियान के अंतर्गत नर्मदा के तटों पर वृक्षारोपण, जनजागरण और स्वच्छता कार्य हुए।शिप्रा शुद्धिकरण योजना: उज्जैन में शिप्रा नदी की सफाई हेतु सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र स्थापित किए गए।वृक्षारोपण और जल संरचना: जलग्रहण क्षेत्रों में वनों की वृद्धि और जल संचयन पर बल दिया गया।

कानूनी प्रावधान: अवैध खनन तथा प्रदूषण फैलाने वालों पर नियंत्रण हेतु नियम सख्त किए गए।

नदी संरक्षण केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है। समाज की सहभागिता अनिवार्य है। नदियों में कचरा और अपशिष्ट डालने से बचना होगा। धार्मिक अनुष्ठानों में पर्यावरण-अनुकूल विकल्प अपनाने होंगे।नदी तटों पर वृक्षारोपण और जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना होगा।जल का विवेकपूर्ण उपयोग कर अपव्यय रोकना होगा।नदियाँ केवल जल की धाराएँ नहीं, बल्कि जीवन, संस्कृति और सभ्यता की धरोहर हैं। नदियाँ स्वच्छ और अविरल रहेंगी, तभी समाज का संतुलित विकास संभव है। न केवल नदी संरक्षण अपितु समूचे पर्यावरण संरक्षण के लिए यदि हम सब स्वयं और भावी पीढ़ी को पूरी तरह से तैयार नहीं करते हैं तो प्रकृति के शत्रुता पूर्ण आक्रोश और उसकी विनाशकारी त्रासदियां आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत में छोड़ने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करेंगे।अतएव आइए प्राणिमात्र के अस्तित्व के लिए हम सब पर्यावरण संरक्षण कर अपने नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन करें।

(लेखक : शिवकुमार शर्मा, सेवा निवृत्त अधिकारी है)

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