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चुनाव में योगी को मिलेगा मुस्लिम महिलाओं का साथ

डा. निरंजन कुमार

Update: 2022-02-02 04:45 GMT

वेब डेस्क। आजादी के बाद जब देश दो हिस्सों में बंटा तो पाकिस्तान इस्लाम आधारित देश बन गया,जबकि भारत एक धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र्र के रूप में आगे बढ़ा। देश विकास की राह में अग्रसर हुआ और हालात बदले तो कहीं न कहीं अल्पलसंयक समाज पीछे छूटता चला गया। कई पीढिय़ां राह तकते रह गईं , लेकिन अल्पसंयक समाज के हालात बहुत नहीं बदले। उनकी एक पहचान बनी, वोट बैंक के तौर पर, और इस पहचान को दशकों तक भुनाया गया। आजादी के बाद 7 दशकों तक यह समाज जीवन की आधारभूत सुविधाओं से जूझता रहा। लेकिन हाल के वर्षों में केंद्र सरकार का ध्यान इस ओर गया और इस समाज में व्यापक बदलाव की दृष्टि से कुछ अहम फैसले लिए गए। इन फैसलों का असर भी हुआ। कल तक जिस समाज में महिलाओं की स्थिति दयनीय थी, उसी समाज में आज महिलाएं सिर उठाकर जी रही हैं।

भाजपानीत सरकार ने उनके मुंह में जुबां दी। इसी आधार पर चुनावी विश्लेषक उमीद जता रहे हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को इनका साथ मिलेगा। अब आते हैं कुछ आंकड़ों पर। देश में मुस्लिमों की कुल आबादी 20 करोड़ के आसपास है। सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देशों की सूची में भारत अभी इंडोनेशिया के बाद दूसरे नंबर पर है। अगर पकिस्तान और बांग्लादेश अलग न होते तो हो सकता है कि भारत दुनिया का अकेला और पहला ऐसा देश होता जहां मुसलमानों की जनसंया सबसे ज्यादा होती। अमेरिकी संस्था प्यू रिसर्च सेंटर ;पीआरसीद्ध की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक भारत में मुसलमानों की संया विश्व के किसी भी देश से ज्यादा हो जाएगी। विदेशों में रह रहे मुस्लिमों के द्वारा भारत में पैसा भेजने से भारतीय मुद्रा कोष को मजबूती मिलती है। जिससे अंतरराष्ट्र्रीय बाजार में भारत का दबदबा बना रहता है। लेकिन जनसंया के हिसाब से राजनीति ,कारोबार या सरकारी संस्थारनों में भी मुस्लिमों की भागीदारी बहुत कम हैं।

केंद्र में लगभग 60 साल से जयादा समय तक कांग्रेस रही और पार्टी सिर्फ वोट बैंक के रूप में मुस्लिमों का इस्तेमाल करते रही। मुस्लिमों की आबादी की बात करें तो 1991 से 2001 तक के आंकड़ों में मुस्लिमों की आबादी 29.3 फीसदी बढ़ी थी,यह बढ़ोतरी अब 24.6 फीसद रह गई है। हालांकि 2001.11 की अवधि के दौरान देश में राज्यवार गणना के हिसाब से मुस्लिमों की आबादी में हिंदुओं से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इसके बावजूद पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी ने मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में इस्तेामाल किया। विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों में बीजेपी के नाम पर मुस्लिम मतदाताओं को डराया गया लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी में मुस्लिम समर्थित सपा पार्टी के शासनकाल में लगभग 500 से ज्यादा दंगे हुए। ठीक इसके विपरित भाजपा में केद्र सरकार और कई राज्यों में बीजेपी समर्थित सरकार होने के बाद भी विगत सालों में दंगे.फसाद का आंकड़ा नगण्य रहा।

बात केवल यूपी की करें जनगणना 2011के आंकड़ों के मुताबिक उत्तरप्रदेश में 19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। वर्तमान आंकड़ों पर ध्यान दें तो मुस्लिम मतदाता का एक तबका वोट बैंक की राजनीति को समझने लगा है जिसका परिणाम उत्तरप्रदेश के 2017 विधानसभा में दिखा है। यूपी में 124 मुस्लिम प्रभावी सीटों में से 99 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है। ये आंकड़ें चौकाने वाले हैं। अब मुसलमानों को भी सांप्रदायिक राजनीति,ध्रुवीकरण और वोट बैंक वाले नेताओं में साफ अंतर दिखाई देने लगा है। बसपा और सपा की लाख कोशिशों के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं ने वोट बैंक की छवि से बाहर निकलकर विकास की राजनीति को चुना है और वे बीजेपी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। यूपी चुनाव में ध्रुवीकरण की राजनीति से मुस्लिमों ने एक तरह से किनारा कर लिया है। 2017 विधानसभा चुनावों के परिणाम यह दर्शाते हैं कि आजादी के बाद मुस्लिम पहली बार खुलकर बीजेपी के साथ खड़े हैं।

तीन तलाक के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानून को दो साल से ज्यादा समय हो गया है। ट्रिपल तलाक के मामलों में अब 80 फीसदी की कमी आई है।1 अगस्त 2019 को कानून लागू होने से पहले उार प्रदेश में ट्रिपल तलाक के 63 हजार से ज्यादा मामले दर्ज थेए जो कानून लागू होने के बाद न के बराबर रह गए। ट्रिपल तलाक के मामले में कमी आना मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम है। हर क्षेत्र में महिलाएं जहां पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर चल रही हैए तो वहीं अब मुस्लिम महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। ट्रिपल तलाक के के कारण डरी और सहमी रहने वाली महिलाएं आज अपने घरों की दहलीज से बाहर निकली हैं और अधिकारों के लिए खुलकर बात कर रही हैं। सही मायने में कहा जाए तो ट्रिपल तलाक कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं को नई आजादी दी गई है। तीन तलाक को तलाक बिदअत कहा जाता है। तीन तलाक का जिक्र न तो कुरान में है न तो हदीस में। सुप्रीम कोर्ट ने कुरान और हदीस के चश्में से देखने वाले तीन तलाक को गैर इस्लामिक बताया है।

इंदौर की शाहबानो के द्वारा उठाई गई आवाज को कांग्रेस सरकार और मुस्लिम धर्मगुरूओं ने जबरन दबा दिया था लेकिन बीजेपी ने उस आवाज में दम भरा और मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा को समझा। सरकार ने तीन तलाक कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं को रूढ़ीवादी समाज से आजादी दिलाई। बीजेपी सरकार द्वारा तीन तलाक कानून लागू किए जाने के बाद कई देशों ने भारत का समर्थन किया और कहा कि लोकतंत्र में मुस्लिम महिलाओं की स्वनतंत्रताए समता और निडरता का अधिकार सही मायनों में अब दिया गया है। इस अधिकार के अंतर्गत बीजेपी ने मुस्लिम समाज के बीच अपनी सीधी पैठ बना ली है। ऐसा कर के बीजेपी ने जहां अपने विपक्षी को परास्तत किया वहीं मुस्लिम महिलाओं का दिल जीतने में भी सफल रही है। परिणाम कितना सकारात्म क होगा यह तो समय तय करेगा लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव में मुस्लिम महिलाओं का मत योगी आदित्यनाथ के पक्ष में जाता दिखाई पड़ रहा है।

(लेखक आईआईएमटी कॉलेज, ग्रेटर नोएडा में सहायक प्रोफेसर हैं।)

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