पश्चिम बंगाल की राजनीति ऐसे तूफानी मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां ममता बनर्जी अपने ही गढ़ में दोतरफा हमले का शिकार होती दिख रही हैं। बंगाल में हमेशा से सांस्कृतिक और धार्मिक संकेतों की राजनीति तेज रही है, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं।
एक ओर, ब्रिगेड परेड ग्राउंड में 'सनातन संस्कृति संसद' द्वारा आयोजित भव्य गीता पाठ में पांच लाख से अधिक जागृत हिंदुओं की नई एकजुटता ने सबको आत्मविश्वास और सांस्कृतिक गौरव से भर दिया है। वहीं दूसरी ओर, बाबरी मस्जिद जैसे मुद्दों को ममता बनर्जी की बेचैनी से हवा देकर उभरती मुस्लिम राजनीति ने उन्हें खुली चुनौती दे दी है।
मुर्शिदाबाद की बाबरी मस्जिद के मुद्दे ने राज्य की मुस्लिम राजनीति में नया भूचाल पैदा किया है, जिसने सीएम ममता के दस वर्षों पोषित वोट बैंक को सीधे उनके खिलाफ खड़ा कर दिया है। दिलचस्प तथ्य यह है कि इन दोनों धाराओं का लक्ष्य एक ही है, और वह है ममता बनर्जी को सत्ता से हटाना। जनता जनार्दन के इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस का यह कहना कि बंगाल की जनता धार्मिक अहंकार को खत्म करने के लिए तैयार है, पश्चिम बंगाल की बदलती राजनीति का स्पष्ट संकेत देता है।
पश्चिम बंगाल में आयोजित गीता पाठ में जिस तरह से लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया, उसे देखकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और भी चिंतित दिखाई दे रही हैं। इस आयोजन में भगवा वस्त्र पहने लाखों लोगों ने गीता की प्रतियों से एक स्वर में श्लोक पढ़े। इसे भले ही एक धार्मिक आयोजन कहा जा रहा हो, लेकिन जिस उत्साह के साथ लोगों ने इसमें भाग लिया, वह एक बदली राजनीतिक हवा का भी संदेश दे रहा था।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इतना बड़ा आयोजन किसी राजनीतिक दल द्वारा नहीं किया गया था। बल्कि यह राज्य के हिंदुओं में स्व-स्कृति का प्रतीक बन गया। लगभग पांच लाख लोग गीता के प्रथम, नौवें और अठारहवें अध्याय के सामूहिक पाठ में शामिल हुए। इस आयोजन में उमड़ी भीड़, श्लोकों की सामूहिक ध्वनि और लाखों लोगों की एक साथ उपस्थिति यह संकेत थी कि बंगाल के हिंदू समाज ने अपनी आवाज फिर से खोज ली है। यह वही समाज है जिसे दशकों तक 'साप्रदायिक' कहकर चुप कराया जाता रहा।
गीता पाठ महोत्सव के अवसर पर लोगों ने राष्ट्रध्वज भी लहराए और बार-बार "हरे कृष्ण हरे हरे, गीता पाठ घर-घर" के नारे लगाए। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले हिंदुओं के स्व-स्फूर्त जागरण वाले इस कार्यक्रम में जिस तरह भीड़ उमड़ी, उससे साबित होता है कि हिंदू अब एकजुट हो रहे हैं। यही कारण है कि इस धार्मिक आयोजन के बहाने लोगों ने अपनी ताकत का इजहार किया।
इस आयोजन से पश्चिम बंगाल के हिंदुओं में नई जागृति और ऊर्जा देखने को मिली। जिस तरह लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया, उससे यह भी स्पष्ट हुआ कि राज्य की जनता जनार्दन 'धार्मिक अहंकार को खत्म करने के लिए तैयार है। राज्य की जनता यहां व्याप्त भ्रष्टाचार को भी खत्म करने के लिए तैयार है।
गीता पाठ का आयोजन ही नहीं, बल्कि राज्य में मतदाता सूची में 50 लाख संदिग्ध वोटरों का खुलासा, टीएमसी से निलंबित विधायक हुमायू कबीर की खुली चुनौती, और मुर्शिदाबाद में नई बाबरी मस्जिद की नींव रखे जाने का विवाद इन तीनों ने मिलकर ममता सरकार के सामने ऐसा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसकी पकड़ फिलहाल उनके लिए मुश्किल नजर आती है।
दरअसल, बंगाल की वोटर लिस्ट में 50 लाख संदिग्ध नामों की मौजूदगी कोई छोटी बात नहीं है। विपक्ष का आरोप है कि टीएमसी ने अपने चुनावी हित साधने के लिए मतदाता सूची को इस तरह भरा कि यह पहचानना मुश्किल हो गया कि वास्तविक वोटर कौन है और 'राजनीतिक रूप से पोषित' नाम कौन से हैं। यदि मतदाता सूची पर भरोसा टूट जाए, तो चुनावी लोकतंत्र कागज की तरह बिखर सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अविश्वास का निशाना सीधा ममता बनर्जी की सरकार है, क्योंकि यह पूरा तंत्र राज्य प्रशासन के दायरे में आता है।