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वामपंथ का षड्यंत्र फिर उजागर

* प्रशांत वाजपेई

Update: 2020-01-05 00:00 GMT
केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय में राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान से इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने मंच पर की अभद्रता

केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय के एक उद्घाटन कार्यक्रम में मंच पर मौजूद कम्युनिस्ट इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने राज्य के राज्यपाल के साथ मंच पर बदतमीजी की। वो नागरिकता संशोधन क़ानून पर इरफ़ान हबीब और उनके कम्युनिस्ट साथियों द्वारा फैलाए जा रहे झूठ की पोल खोलने जा रहे थे। इन लोगों ने राज्य के राज्यपाल तक को बोलने नहीं दिया। ये वही लोग हैं, जबसे मोदी सरकार बनी है, तबसे बोलने की आज़ादी और असहिष्णुता पर भारत को सारी दुनिया में बदनाम कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता ये है कि कम्युनिस्टों से ज्यादा असहिष्णु सारी दुनिया में और कोई नहीं है। ये हर उस आवाज़ का गला घोंटने की कोशिश करते हैं, जो इनके प्रोपेगंडा के खिलाफ जाए। ये दुनिया को अजीबो-गरीब नियम क़ानून बताते हैं, लेकिन खुद किसी नियम को नहीं मानते।

नियम है कि राज्यपाल का कार्यक्रम एक घंटे से ज्यादा का नहीं होता है, लेकिन कम्युनिस्ट डेढ़ घंटे तक बोलते रहे। जिसमें वो इलज़ाम लगा रहे थे कि केंद्र सरकार द्वारा संविधान को तोड़ा जा रहा है. नागरिकता क़ानून संविधान के लिए ख़तरा है। अंत में राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान उठे। उन्होंने बोलना शुरू किया और जो झूठे आरोप इरफ़ान खान और उनके साथियों ने उछाले थे उनके उत्तर देना शुरू किया तो इरफ़ान हबीब खड़े हुए, राज्यपाल के एडीसी (सहायक सुरक्षा अधिकारी) का बैच नोच लिया. और आक्रामकता के साथ राज्यपाल की ओर बढ़े. जब राज्यपाल के सुरक्षा अधिकारियों और वाइसचांसलर ने उन्हें रोका तो उनके साथ धक्कामुक्की की।

केरल में नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ मुस्लिम संगठन, वामपंथी और कांग्रेस लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। राज्यपाल होने के नाते आरिफ मुहम्मद खान ने उन सबको बार-बार आमंत्रित किया कि वो आकर बात करें, इस क़ानून पर चर्चा करें। लेकिन ये लोग नहीं आए। सचाई ये भी है कि वो आरिफ मुहम्मद खान से चिढ़ते हैं, क्योंकि आरिफ साहब का वजूद ही उनके दुष्प्रचार के खिलाफ पड़ता है।

भारत के छद्म सेकुलरों और कम्युनिस्टों को आरिफ मुहम्मद खान नहीं भाते जिन्होंने शाहबानो के साथ अन्याय होने पर केन्द्रीय मंत्री की कुर्सी को ठोकर मार दी थी। आरिफ मुहम्मद खान तब युवा थे. राजीव गांधी सरकार के सबसे युवा चेहरे थे. लंबा राजनैतिक भविष्य उनके सामने था, लेकिन वो न्याय के साथ खड़े हुए। ऐसे लोग कम्युनिस्टों को नहीं भाते। उन्हें 15 मिनिट में हिंदुओं को देख लेने की धमकी देने वाले ओवैसी से कोई तकलीफ नहीं होती।

उन्हें तसलीमा नसरीन नहीं भातीं जो बांग्लादेश के मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज़ उठाती हैं। बांग्लादेशी हिंदुओं पर किए जा रहे अत्याचारों को दुनिया के सामने उघाड़कर रख देती हैं। उन्हें तारेक फतह से नफरत है क्योंकि वो पाकिस्तान के अंदर की सड़ांध, वहां उबल रहे इस्लामी कट्टरता के उन्माद का सारी दुनिया के सामने पर्दाफ़ाश करते हैं. जो पाकिस्तानी मूल के होते हुए भी पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन करते हैं, और निर्भय होकर सच बोलते हैं।

सीएए के खिलाफ कांग्रेस और अन्य सेकुलर दलों के साथ मिलकर षड्यंत्र कर रहे कम्युनिस्टों की पोल खोलते हुए फतह बोले- जिन्हें विरोध करने वाला सामान्य आदमी कहा जा रहा है उन्हें सीएए की ए बी सी भी नहीं पता. ये केवल शहरी नक्सलियों, पैसे वाले कम्युनिस्टों द्वारा किया जा रहा है। जिनका सारा अभियान जिहादी इस्लाम की सेवा में समर्पित है। जिन्हें मैं शरिया बोल्शेविक्स (कम्युनिस्ट) कहता हूं। न उन्होंने किताब पढ़ी है, न क़ानून। ये वो लोग हैं जिन्हें लगता है कि भारत के समाज के ऊपर उनका जो वीटो (विशेषाधिकार, विशिष्ट मत) चला आ रहा था, वो अचानक ख़त्म हो गया है.... पहली बार आपके पास एक सरकार (मोदी सरकार) है जिसकी रीढ़ इस्पात की बनी है। ये बहुत बुरा लग रहा है इन लोगों को... ये शायरी नहीं करते.. इन्होंने सबको चाय पिला दी.. अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है इन लोगों से कि न स्टीफन कॉलेज में गए, न ये ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़े,..पता नहीं कहां से आ गए..।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)           

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