‘कन्वर्जन’ के विरुद्ध अब धर्मयुद्ध का समय

डॉ. संध्या चौकसे

Update: 2025-12-31 03:34 GMT

वर्ष 2023 में एक फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ आई थी, जिसका कथानक कन्वर्जन और लव जिहाद पर आधारित था। शायद आप उत्तर प्रदेश के छांगुर बाबा उर्फ जमालुद्दीन को भी नहीं भूले होंगे, जो कन्वर्जन के अंतरराज्यीय रैकेट का मास्टरमाइंड माना जाता है। वह अनुसूचित जातियों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और हिंदू महिलाओं की भावनात्मक तथा धार्मिक कमजोरियों का फायदा उठाकर उन्हें ‘लव जिहाद’ का शिकार बनाता था।

पिछले दिनों भोपाल कोर्ट ने अमर कुशवाह नाम बताकर एक महिला से दुष्कर्म करने और फिर धर्म परिवर्तन के आरोपी मोहम्मद अकरम को 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। ये उदाहरण केवल आपकी स्मृति को पुनः जाग्रत करने के उद्देश्य से दिए गए हैं। वास्तव में, इंसान की स्मरण शक्ति समय के साथ क्षीण होती जाती है, लेकिन कुछ घटनाक्रम ऐसे होते हैं जिन्हें सदैव जेहन में जीवंत रखा जाना चाहिए, जैसे-कन्वर्जन, विशेषकर लव जिहाद।

भारत में ‘कन्वर्जन’ एक गंभीर चिंतन-मंथन का विषय है। देश में, विशेषकर भाजपा-शासित राज्यों में, कन्वर्जन रोकने के लिए वर्ष 2020 से कानून में निरंतर कड़े प्रावधान किए जा रहे हैं। लेकिन क्या केवल ‘कानून का भय’ जबरन या प्रलोभन देकर किए जाने वाले कन्वर्जन को रोक पाएगा? यह प्रश्न भी उठता है।

वर्ष 1956 की बात करें, जब डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने सामूहिक रूप से बौद्ध धर्म अपनाने के घटनाक्रम का नेतृत्व किया था। इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि दलितों, पिछड़ी जातियों और आदिवासियों ने उत्पीड़न से बचने के लिए कन्वर्जन किया। ईसाई समुदाय सदैव धर्मांतरण के मुद्दे पर घिरा रहा है। विशेषकर गरीब और अशिक्षित आदिवासियों को रोज़ी-रोटी का लालच देकर सनातन धर्म छोड़ने के लिए रजामंद किया जाता रहा है।

वर्तमान समय में ‘इस्लामिक जिहाद’ के नाम पर कन्वर्जन, जिसे आम बोलचाल में ‘लव जिहाद’ कहा जाता है, का जो षड्यंत्र किया जा रहा है, उसका घोर प्रतिकार नितांत आवश्यक है। कन्वर्जन किसी भी धर्म में हो, उसका विरोध अनिवार्य है। कन्वर्जन मानव संस्कृति के लिए कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकता। ‘धर्मच्युत’ एक निंदात्मक शब्द है। इसे किसी तर्क-वितर्क या ईश्वरीय उपासना अथवा आस्था के आधार पर सही और सत्य नहीं ठहराया जा सकता।

धर्म क्या है? यह सत्य प्रत्येक धर्मावलंबी को जानना आवश्यक है, चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो या ईसाई। इस्लाम का दूसरा शाब्दिक अर्थ शांति है, लेकिन यह इस संप्रदाय के लिए दुर्भाग्य का कारण है कि वह अपने मूल धर्म-गुण के विपरीत चल पड़ा है। इस्लाम का भाव समर्पण है, आक्रमण नहीं। कन्वर्जन-विशेषकर झूठ, फरेब, धोखाधड़ी, डराकर-धमकाकर या जबरन कराया गया कन्वर्जन-किसी की ‘आत्मा’ पर आक्रमण ही है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत धर्म को मानने, उसका प्रचार करने और उसका अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि कोई व्यक्ति अपने धार्मिक रीति-रिवाजों को किसी दूसरे पर जबरदस्ती थोप दे।

हाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी कि भारत के प्राचीन लोग विश्वभर में गए, लेकिन उन्होंने कभी किसी पर विजय नहीं पाई और न ही किसी का कन्वर्जन किया। दरअसल, धर्म क्या है-इस्लाम के पैरोकार इसे भूल चुके हैं या अपने अहंकार अथवा निहित स्वार्थों के कारण उसकी गलत व्याख्या करने लगे हैं।

भारत इस समय संक्रमणकाल से गुजर रहा है। केवल सीमाओं पर ही आक्रमण नहीं हो रहे हैं, बल्कि सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के विरुद्ध भी साजिशें जारी हैं। कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान कन्वर्जन को भारत की सामाजिक एकता और संस्कृति पर सुनियोजित हमला करार दिया था।

यदि केवल मध्य प्रदेश की बात करें, तो यहां लव जिहाद विरोधी कानून के तहत 1 जनवरी 2020 से 15 जुलाई 2025 के बीच 283 मामले दर्ज किए गए। लेकिन चिंता की बात यह है कि इनमें से 209 मामलों में आरोपी बरी हो गए। भोपाल का हाई-प्रोफाइल ड्रग तस्करी और लव जिहाद में लिप्त मछली परिवार का मामला चर्चाओं में रहा है। ये कुछ बड़े मामले हैं, जो मीडिया की सनसनी बन जाते हैं, जबकि वास्तविकता में समाज के भीतर ऐसे कई मामले दबे पड़े होंगे।

यह सत्य है कि सनातन धर्म के विरुद्ध कन्वर्जन और लव जिहाद जैसी साजिशों को पूर्णतः तब तक नहीं रोका जा सकता, जब तक हिंदू समाज स्वयं जाग्रत नहीं होगा। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक कविता सदैव स्मृति में अंकित रखनी चाहिए, क्योंकि यही सनातन है, यही शाश्वत सत्य है.

“गूंज उठे ऊँचे स्वर से ‘हिंदू की जय’ तो क्या विस्मय?

हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन,

रग-रग हिंदू मेरा परिचय!”

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