अटल बिहारी वाजपेयी: राजनीति के ‘अजातशत्रु’ और युगपुरुष
साधारण परिवेश से असाधारण व्यक्तित्व तक अटल जी- प्रवीण कक्कड़
बाधाएँ आती हैं आएँ,
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पाँवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
ये पंक्तियाँ केवल कविता नहीं, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन-दर्शन का सार हैं। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर वे एक ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में स्थापित हुए, जिन्हें समर्थकों ने तो पूजा ही, विरोधियों ने भी सदैव आदर की दृष्टि से देखा। कवि-हृदय, ओजस्वी वक्ता, कुशल प्रशासक और सादगी के प्रतिमान अटल जी का व्यक्तित्व हिमालय जैसा विराट और गंगा जैसा पावन था।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक और स्वयं भी एक कवि थे। साधारण मध्यमवर्गीय परिवेश में पले-बढ़े अटल जी ने अभावों के बीच भी संस्कारों, शिक्षा और आत्मविश्वास को अपना संबल बनाया। छात्र जीवन से ही उनमें वक्तृत्व कला, लेखन और नेतृत्व की स्वाभाविक प्रतिभा प्रस्फुटित होने लगी थी।
विचारधारा और पत्रकारिता का संगम
अटल जी का सार्वजनिक जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं से प्रारंभ हुआ। 1939 में स्वयंसेवक बनने के बाद राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक चेतना उनके विचारों का स्थायी आधार बन गए। उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पाञ्चजन्य’ और ‘वीर अर्जुन’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन कर राष्ट्रवादी विचारधारा को स्वर दिए। आजीवन अविवाहित रहकर राष्ट्र सेवा को सर्वोपरि रखना उनके अटूट संकल्प का परिचायक था।
संसदीय यात्रा और नेहरू जी की भविष्यवाणी
1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ के साथ अटल जी सक्रिय राजनीति में आए। 1957 में वे बलरामपुर से पहली बार लोकसभा पहुँचे। संसद में उनके प्रथम ओजस्वी भाषण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने भविष्यवाणी की थी यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। समय के चक्र ने इस कथन को अक्षत सत्य सिद्ध किया।
वैश्विक मंच पर हिंदी का गौरव
1975 के आपातकाल के दौरान अटल जी ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए कारावास की यातनाएं झेलीं। 1977 में जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ऐतिहासिक संबोधन देकर भारत की भाषाई अस्मिता को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित किया। वह क्षण आज भी भारतीय कूटनीति के स्वर्णिम अध्याय के रूप में याद किया जाता है।
अंधेरा छँटेगा, कमल खिलेगा
1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के समय मुंबई के अधिवेशन में उन्होंने आत्मविश्वास के साथ उद्घोष किया था “अँधेरा छँटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।” शुरुआती असफलताओं के बावजूद उनका विश्वास अडिग रहा। उन्होंने सिद्ध किया कि राजनीति सत्ता का व्यापार नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का अनुष्ठान है।
प्रधानमंत्री के रूप में स्वर्णिम कार्यकाल
अटल जी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। 1996 में मात्र 13 दिन की सरकार गिरने पर संसद में दिया गया उनका भाषण लोकतांत्रिक मर्यादा का अनुपम उदाहरण है। 1999 से 2004 के पूर्ण कार्यकाल में उन्होंने पोखरण परमाणु परीक्षण से भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाया, तो वहीं लाहौर बस यात्रा के जरिए शांति की पहल भी की। कारगिल विजय, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, सर्व शिक्षा अभियान और दूरसंचार क्रांति जैसे निर्णयों ने आधुनिक भारत की नींव को सुदृढ़ किया।
एक अमर विरासत
उनकी राजनीति में विरोध भी मर्यादित था और समर्थन भी राष्ट्रहित की वेदी पर। यही कारण था कि उन्हें ‘अजातशत्रु’ कहा गया। 2015 में देश ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया। 16 अगस्त 2018 को भले ही उनका भौतिक शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया, लेकिन उनके विचार और कविताएँ आज भी करोड़ों भारतीयों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर
लिखता-मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ।
अटल बिहारी वाजपेयी केवल एक राजनेता नहीं थे, वे भारत की उस साझा संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यों की आवाज़ थे, जो युगों-युगों तक गूँजती रहेगी।
लेखक - प्रवीण कक्कड़, मध्यप्रदेश पुलिस सेवा के अधिकारी रहे हैं।