पुण्यतिथि आज: सेवा, दृढ़ता व राष्ट्रीयता के प्रतीक डॉ. शंकरदयाल शर्मा
सुरेश पचौरी
देश के 9वें राष्ट्रपति रहे डॉ. शंकरदयाल शर्मा की 26 दिसंबर को पुण्यतिथि है। जब हम उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हैं, तो हम एक ऐसे व्यक्तित्व के योगदान को नमन करते हैं, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में सिद्धांतों, राष्ट्र-सेवा और संवैधानिक नैतिकता के उच्च मानकों को बनाए रखा। उनका जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल में हुआ और देहावसान 26 दिसंबर 1999 को दिल्ली में हुआ।
अपने सुदीर्घ सार्वजनिक जीवन में मानवीय मूल्यों के जो मान और प्रतिमान डॉ. शर्मा ने प्रतिपादित किए, वे अनुकरणीय, प्रेरक और वंदनीय हैं। अपनी प्रतिभा, लगन, कर्मठता, निष्ठा और व्यक्तिगत जीवन में साफ-सुथरी छवि के साथ उन्होंने भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री, भोपाल के सांसद, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री, आंध्रप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के राज्यपाल, भारत के उपराष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति के सर्वोच्च पदों को सुशोभित किया।
डॉ. शर्मा जिस पद पर भी रहे, उन्होंने अपनी कार्यकुशलता की अमिट छाप छोड़ी। वे अपने तपोनिष्ठ जीवन और निर्भिमानी व्यक्तित्व के सदगुणों से जन-जन के चहेते बने। वे केवल भारतीय संस्कृति के पुरुष नहीं थे, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब के ऐसे प्रतिनिधि थे, जिनमें आरती और अजान के संयुक्त भाव विद्यमान थे। वे ज्ञानार्जन के लिए हर पल उत्सुक ज्ञानयोगी थे और राजयोगी भी थे। वे गुणी थे और गुणग्राहक भी। वे संविधान के अध्येता और उसके अनुरक्षक भी थे।
डॉ. शंकरदयाल शर्मा कुशल शिक्षाशास्त्री थे। उन्होंने एम.ए. (हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी), उर्दू के आलिम-फाजिल, एल.एल.एम., बार. एट. लॉ, डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (लंदन), एफ.आर.एस. (लंदन) एवं पी.एच.डी. (केम्ब्रिज) की शिक्षा अर्जित की। साथ ही उन्होंने बैनडिन फेलोशिप ऑफ फारवर्ड स्कूल (अमेरिका) में कानून में कई मौलिक थीसिस लिखीं। उन्होंने केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ाया और लखनऊ विश्वविद्यालय में कानून के प्राध्यापक रहे।
सन् 1949 में भोपाल रियासत के भारतीय संघ में विलय आंदोलन की भागीदारी से लेकर 1992 में भारत के राष्ट्रपति पद तक पहुँचने तक डॉ. शर्मा की यात्रा, विविध अनुभवों और पदों से गुजरती हुई एक ऐसी कहानी है जिसमें उनकी लगन, दृढ़ संकल्प, विद्वत्ता, संघर्षशीलता और कर्मठता का परिचय मिलता है।
डॉ. शर्मा सन् 1952 से 1956 तक भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें आधुनिक भोपाल के निर्माता के रूप में सदा याद किया जाएगा। भोपाल के सर्वांगीण विकास में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा। उनके प्रयासों से भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी बना। भोपाल में बीएचईएल का कारखाना लाने का श्रेय भी डॉ. शर्मा को है। इसके अलावा, उनके अनवरत प्रयासों से भोपाल में गांधी मेडिकल कॉलेज, हमीदिया कॉलेज, रीजनल कॉलेज, मौलाना आजाद इंजीनियरिंग कॉलेज (जो अब मेनिट कहलाता है) जैसे बड़े शिक्षण संस्थान स्थापित हुए।
डॉ. शर्मा के विशेष प्रयासों से भोपाल में 'ज्यूडिशियल एकेडमी' बनी, जो पूरे देश में न्यायपालिका के प्रशिक्षण का अनूठा संस्थान है। उनका पूरा जीवन राष्ट्र और राष्ट्रीयता के मूल्यों से ओतप्रोत रहा। वे भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति रहे।