संघ कार्य के 100 वर्ष: दमोह में 1937 में डॉ. हेडगेवार ने प्रारंभ की संघ की शाखा

Update: 2025-12-25 04:09 GMT

प्रथम सत्याग्रह के समय 175 स्वयंसेवक जेल गए

प्रथम सत्याग्रह के समय जिले से लगभग 175 स्वयंसेवक जेल गए। उस समय गणपति वैद्य प्रचारक थे। योजना के अनुसार पत्रक छापे गए और मोहन सिनेमा हॉल में उनका वितरण किया गया। दूसरे दिन सीताराम शेण्डये के नेतृत्व में कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया। सायंकाल दुर्गावती कन्या शाला में शाखा लगी और तरुण स्वयंसेवकों को बंदी बनाया गया।

द्वितीय प्रतिबंध के समय, यद्यपि सत्याग्रह नहीं हुआ, फिर भी लगभग 200 कार्यकर्ताओं को धारा 151 के अंतर्गत बंदी बना लिया गया। देश विभाजन के समय दमोह में दो प्रभात और पाँच सायं शाखाएँ चलती थीं। दैनिक उपस्थिति लगभग 300 रहती थी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अतिरिक्त जिले में विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय किसान संघ, मध्यप्रदेश शिक्षक संघ, अधिवक्ता परिषद सहित अन्य अनुषांगिक संगठनों के कार्य भी संचालित हो रहे हैं।

दमोह : 1937 में डॉ. हेडगेवार ने प्रारंभ की संघ की शाखा

महाकौशल प्रांत के दमोह जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा का शुभारंभ वर्ष 1937 के नवंबर माह में संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने किया था। उस समय डॉ. साहब जबलपुर से नगर के सुप्रसिद्ध वैद्य शेण्डये के नाम पत्र लेकर आए थे। उनके साथ बालासाहब आपटे और चरकर भी आए थे। ये तीनों वैद्य शेण्डये के आवास पर ही रुके और दूसरे दिन कार्तिक एकादशी के अवसर पर संघ की शाखा लगाई।

इसके पश्चात वे अधिवक्ता मणिशंकर दवे के आवास पर गए और प्रारंभिक चर्चा की। इसी दिन सायंकाल श्रीकृष्ण गुप्ता और कुंजबिहारी लाल गुरु से भेंट हुई। कुंजबिहारी लाल गुरु को जिले का प्रथम संघचालक बनाया गया।

वर्ष 1938 के प्रारंभिक काल में नागपुर से वसंतराव देव कार्य विस्तार हेतु दमोह पधारे। उन्होंने प्रारंभिक स्वयंसेवकों के साथ मिलकर महाराणा प्रताप विद्यालय के मैदान में शाखा लगाई। वर्ष 1938 के उत्तरार्ध में एकनाथ रानाडे दमोह में पूर्णकालिक प्रचारक बनकर आए। इसके बाद शाखाओं का निरंतर विस्तार होने लगा।

दमोह के प्रारंभिक स्वयंसेवकों में मधुकर राव सोनवलकर, वसंतराव पाठक, रामशंकर अग्रवाल, विनायक राव शेण्डये, वेदराज दुआ, गंगाधर राव सप्रे, तांबे वकील, ओ. कृष्णा सप्रे, सीताराम शेण्डये, श्रीकृष्ण सेलट और गणपति गाड़े प्रमुख थे।

वर्ष 1943 में दमोह जिले की तहसीलों-बांसा, तारखेड़ा और हटा-में संघ की शाखाएँ प्रारंभ हो गईं। हटा में भाई शंकर त्रिवेदी को संघचालक बनाया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन और आगे का विस्तार

सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में दमोह जिले के स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया। इस आंदोलन में वेदराज दुआ, त्रिभुवन शंकर धाट और कोमलचंद मोदी ने नेतृत्व किया। इस दौरान स्वयंसेवकों को पुलिस की मार भी सहनी पड़ी।

1947 तक जिले में स्वयंसेवकों की संख्या लगभग 600 हो गई। इस अवधि में बाबासाहब आपटे जिले का नियमित दौरा करते रहे। श्री गुरुजी भी ग्रीष्म शिविर तथा एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लेने हेतु दमोह पधारे। एक बार जबलपुर से सागर जाते समय वे वेदराज दुआ के घर भी रुके। पंडित दीनदयाल उपाध्याय और दत्तोपंत ठेंगड़ी भी जिले के प्रवास पर आ चुके हैं।

संघ कार्यालय

श्रीधर राव सोनवलकर का मकान (राम मंदिर), बंगाली मिस्त्री का मकान, सुरेशचंद चौधरी की दुकान के ऊपर, रतनचंद नायक का मकान, राम मंदिर परिसर स्थित माधव कुंज तथा वर्तमान में कानिटकर भवन के पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयं का कार्यालय संचालित है।

जिले के प्रचारक

दामोदर गिरि भट्ट, एकनाथ रानाडे, गजपति वैद्य, मधुकर राव देशपांडे, कमलाकर, गजराज सिंह, पांडुरंग मोघे, चंद्रप्रकाश वर्मा, नवीन चौरसिया, संतोष सिंह, श्रीकांत, राजेश विनकर, राजकुमार मटाले, प्रकाश नारायण तिवारी, आनंद, श्याम, सतीश, राजेन्द्र त्रिपाठी, पुष्पेन्द्र, भैयन।

जिले के संघचालक

के. बी. एल. गुरु, हुकुमचंद, सेवाराम, सीताराम शेण्डये, रामसेवक पटेल, किशनलाल साहू, डॉ. अश्विनी नामदेव।

जिले के कार्यवाह

वेदराज दुआ, रामभाऊ, हुकुमचंद, देवीसिंह, बहादुर सिंह, गोपाल पटेल, किशनलाल साहू, रामलाल पटेल, प्रहलाद पटेल, रामकृपा पटेल, कमलेश पटेल।

“वास्तव में शक्ति उतनी ही पवित्र और मंगलमय है, जितनी आध्यात्मिक शक्ति। हमें हिंसा करने के लिए बलवान नहीं बनना है, बल्कि संसार की समस्त हिंसा और अत्याचार को सदा के लिए समाप्त करने हेतु सामर्थ्य संपादन करना है।”

- डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार

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