स्मृति शेषः विनोद शुक्ल, शब्दों में ठहराया गया जीवन

चन्द्रवेश पांडे

Update: 2025-12-24 05:10 GMT

हिंदी साहित्य में विनोद शुक्ल एक ऐसे नक्षत्र थे, जिनकी चमक तीव्र नहीं, बल्कि स्थायी और आत्मीय थी। उनके निधन के साथ शब्दों की वह दुनिया कुछ और सूनी हो गई है, जहाँ जीवन अपनी सबसे साधारण मुद्राओं में भी अर्थवान दिखाई देता था। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित यह कवि-कथाकार केवल साहित्यकार नहीं थे, बल्कि भाषा के भीतर रहने वाला एक संवेदनशील मनुष्य थे, जिसने देखने, सुनने और महसूस करने की हमारी आदतों को बदल दिया।

विनोद शुक्ल की कविता ऊँचे स्वर में नहीं बोलती, बल्कि धीरे से कंधे पर हाथ रखकर मनुष्य से बात करती है। उनकी प्रसिद्ध कविता ‘हाथ से एक पत्थर गिर गया’ जैसे शीर्षक मात्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे जीवन की किन अवस्थाओं को अपना विषय बनाते हैं-थकान, अकेलापन, चुप्पी और फिर भी बची हुई मनुष्यता। उनकी कविताओं में करुणा कोई भावुक प्रदर्शन नहीं, बल्कि रोजमर्रा के जीवन का सहज सत्य है। वहाँ एक व्यक्ति का बैठ जाना, किसी का हाथ थाम लेना या किसी का चले जाना-सब कुछ कविता हो जाता है।

गरम कोट पहनकर चले जाना

उनके काव्य-संग्रह लगभग जय हिंद, वह आदमी चला गया, गरम कोट पहनकर चले जाना आदि में भाषा की विलक्षण सादगी दिखाई देती है। यह सादगी दरअसल गहरी कलात्मक साधना का परिणाम है। वे शब्दों को सजाते नहीं थे, उन्हें अपने पूरे अर्थ और मौन के साथ बोलने देते थे। यही कारण है कि उनकी कविताएँ पढ़ते समय पाठक को लगता है मानो वह अपने ही जीवन की किसी अनकही भाषा को देख रहा हो।

कथा साहित्य में भी विनोद शुक्ल का योगदान उतना ही विशिष्ट है। नौकर की कमीज और दीवार में एक खिड़की रहती थी जैसे उपन्यासों में उन्होंने यथार्थ और कल्पना के बीच एक पारदर्शी सेतु रचा। उनके पात्र नायक नहीं, साधारण मनुष्य हैं, जो व्यवस्था से जूझते हैं, सपने देखते हैं और चुपचाप जीवन निभाते चले जाते हैं। उनकी कहानियों में कोई बड़ी घटना-क्रम नहीं होता, पर जीवन की गूंज हर पंक्ति में सुनाई देती है।

ज्ञानपीठ सम्मान ने उनके साहित्यिक अवदान को औपचारिक मान्यता दी, पर पाठकों के हृदय में वे पहले से ही स्थापित थे। विनोद शुक्ल ने हिंदी साहित्य को यह सिखाया कि महानता ऊँचाई में नहीं, गहराई में होती है और कविता वहाँ जन्म लेती है, जहाँ जीवन को ध्यान से देखा जाता है।

आज वे हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी रचनाएँ हमारे समय की स्मृति बनकर रहेंगी। वे शब्दों में ठहराया गया जीवन हैं, जो हमें चुप रहकर भी बहुत कुछ कह जाना सिखाता है।

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