बांग्लादेश के लिए चीन की बढ़ती दखलंदाजी चिंता का विषय है। पाकिस्तान के बाद चीन को भारत के बड़े दुश्मन देशों में गिना जाता है। ऐसे में चीन बांग्लादेश में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहा है और साथ ही उसका वित्त पोषक भी बना हुआ है। इसके कदम मुख्य रूप से बुनियादी ढांचा, रक्षा सहयोग और रणनीतिक प्रभाव के जरिए कूटनीतिज्ञ हैं।
यही कारण है कि चीन ने बंदरगाहों, एयरबेस और सबमरीन बेस के निर्माण में मदद की है, जिससे वह बांग्लादेश का सबसे बड़ा हथियार विक्रेता बन गया है। भारत ने चीन के इन बढ़ते प्रभावों को लेकर चिंता जताई है, खासकर सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा को लेकर।
चीन, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत ढाका को वित्तीय मदद दे रहा है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और तकनीक में गहरी पैठ बन रही है। इससे बांग्लादेश में चीन-समर्थक भावनाओं को भी बढ़ावा मिल रहा है। चीन पद्मा रेल लिंक, पायरा और मातबारी बंदरगाहों तथा कर्णफुली सुरंग जैसी परियोजनाओं को आगे बढ़ा रहा है। ये परियोजनाएं ढाका को जोड़ने और विनिर्माण केंद्र बनाने में मदद कर रही हैं, लेकिन भारी कर्ज का जोखिम भी है।
मौजूदा स्थिति में चीन, बांग्लादेश का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बनकर पनडुब्बियां, लड़ाकू विमान और मिसाइलें बेच रहा है। उसने पेकुआ में एक सबमरीन बेस बनाया है, जिसकी क्षमता बांग्लादेश की जरूरत से कहीं अधिक है, जिससे भारत को चिंता है। लालमोनीरहाट एयरबेस के विकास में भी चीन की मदद है, जो भारत की सीमा के करीब स्थित है।
विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने कई देशों का दौरा करने के बाद अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि बांग्लादेश की बदलती राजनीतिक स्थिति भारत के लिए 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद सबसे गंभीर रणनीतिक चुनौती बन गई है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली इस समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की गई।
रिपोर्ट में बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरपंथी ताकतों की वापसी और चीन-पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव की ओर इशारा किया गया है। खासतौर पर चीन की तरफ से बांग्लादेश में एयरबेस, पनडुब्बियों के लिए बेस बनाने और जमात-ए-इस्लामी को लुभाने की कोशिशों को समिति ने उठाया है। सरकार को वहां सक्रिय विदेशी शक्तियों की गतिविधियों पर करीबी नजर रखने का सुझाव दिया गया है।
संसदीय समिति की रिपोर्ट को काफी सामयिक माना जा रहा है। बांग्लादेश में अभी जबरदस्त राजनीतिक अस्थिरता है और वहां के अतिवादी छात्र समूह लगातार भारतीय हितों के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। समिति ने कहा कि बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति वर्ष 1971 की स्थिति से अलग है, लेकिन वहां की राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी ताकतों का मिश्रण अधिक जटिल, दीर्घकालिक और संरचनात्मक चुनौती पैदा करने की क्षमता रखता है। इसका क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की पड़ोस नीति पर असर पड़ सकता है।