हनुमानगढ़ में किसानों का आक्रोश और विकास की दिशा

Update: 2025-12-12 05:57 GMT

जस्थान के हनुमानगढ़ जिले के टिबी इलाके में निर्माणाधीन एथेनॉल फैक्ट्री के विरोध में किसानों का हिंसक प्रदर्शन कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। यह घटना प्रशासन और स्थानीय लोगों, विशेषकर किसानों, के बीच संवाद की कमी और अविश्वास की गहरी खाई को उजागर करती है।

किसान पिछले 15 महीनों से इस फैक्ट्री का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। उनकी मुख्य चिंताएं स्पष्ट हैं। उन्हें डर है कि यह फैक्ट्री भूजल का अत्यधिक दोहन करेगी और इससे निकलने वाला प्रदूषण उनकी उपजाऊ जमीन और इंदिरा गांधी नहर के पानी को दूषित कर देगा। यह क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, और किसानों के लिए पानी और मिट्टी की गुणवत्ता जीवन-मरण का प्रश्न है।

किसानों को इस बात का भी डर है कि इथेनॉल संयंत्र से प्रदूषण बढ़ेगा और क्षेत्र की उपजाऊ जमीनें बर्बाद हो जाएंगी। 18 नवंबर को पुलिस सुरक्षा में फैक्ट्री निर्माण दोबारा शुरू होने के बाद से आंदोलनकारियों का आक्रोश लगातार बढ़ रहा था।

हालांकि प्रशासन और फैक्ट्री प्रबंधन ने किसानों को आश्वस्त करते हुए बार-बार दावा किया कि फैक्ट्री सभी पर्यावरणीय मानकों का पालन कर रही है और इससे प्रदूषण नहीं फैलेगा। उनके अनुसार, यह परियोजना स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करेगी और राष्ट्रीय हरित ऊर्जा लक्ष्यों के अनुरूप है।

हालांकि, ये दावे स्थानीय समुदाय का विश्वास जीतने में विफल रहे। पिछले दिनों महापंचायत के बाद भड़की हिंसा, जिसमें फैक्ट्री की दीवारें तोड़ी गईं और वाहन फूंके गए, यह साबित करती है कि किसानों का धैर्य जवाब दे गया।

इस पूरे प्रकरण में प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं। शांतिपूर्ण चरने के दौरान किसानों की बात को अनसुना करना और बाद में पुलिस बल की मौजूदगी में निर्माण कार्य फिर से शुरू करवाना, तनाव को बढ़ाने वाला कदम साबित हुआ। स्थानीय लोगों और पुलिस के बीच झड़प में एक विधायक सहित कई प्रदर्शनकारी घायल हुए, और इलाके में इंटरनेट सेवाएँ बंद करनी पड़ीं।

विकास आवश्यक है, लेकिन स्थानीय समुदाय की चिंताओं को पूरी तरह नजरअंदाज करके या उन्हें केवल कानून-व्यवस्था की समस्या मानकर थोपे गए विकास टिकाऊ नहीं हो सकते। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह किसानों के साथ पारदर्शी और सार्थक संवाद स्थापित करें। केवल कागजी आश्वासनों की जगह, एक स्वतंत्र और विश्वसनीय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन कराया जाना चाहिए, जिसके परिणाम सार्वजनिक हों और किसानों को संतुष्ट कर सकें।

कानून हाथ में लेना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, लेकिन सरकार को भी समझना होगा कि शांतिपूर्ण विरोध को दबाने से आक्रोश और हिंसा ही जन्म लेगी। हनुमानगढ़ की घटना एक चेतावनी है कि औद्योगिक विकास और कृषि हितों के बीच संतुलन बनाना नितांत आवश्यक है, और इसमें स्थानीय जनता का विश्वास जीतना ही एकमात्र रास्ता है।

राजस्थान सरकार को चाहिए कि वह दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के किसान आंदोलन से सबक लेकर हर हाल में कोई ठोस समाधान निकाले। राष्ट्रविरोधी ताकतें राजस्थान के इस किसान आंदोलन पर नजरें टिकाए हुए हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये ताकतें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हवा दे रही हों।

हनुमानगढ़ में मचा भारी बवाल निश्चित रूप से किसी बड़े खतरे की आहट है। जिस तरह बेकाबू भीड़ ने गाड़ियां जलाई, उससे लगता है कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से किया गया। बेहतर यही होगा कि सरकार और किसान संगठन मिलकर कोई बीच का रास्ता निकालें।

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