राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गृह संपर्क अभियान: शताब्दी वर्ष में स्वयंसेवकों का घर-घर संवाद
आशीष कुमार ‘अंशु’
आज का युग संचार क्रांति का युग है। एक क्लिक पर संदेश दुनिया के दूसरे कोने तक पहुँच जाता है। सोशल मीडिया पर किसी भी बात के वायरल होने में सेकंड लगते हैं। फिर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने शताब्दी वर्ष (2025) में एक पुरानी और श्रमसाध्य पद्धति चुनी है-घर-घर जाकर व्यक्तिगत संपर्क। यह निर्णय पहली नज़र में आश्चर्यजनक लगता है, लेकिन गहराई से देखें तो यही संघ की सबसे बड़ी ताकत है।
जब हर बात डिजिटल हो गई है, तब संघ ने जानबूझकर घर-घर जाकर बात करने का रास्ता अपनाया है। यही कारण है कि नवंबर 2025 से शुरू हुआ यह गृह संपर्क अभियान सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि संघ की कार्यपद्धति और दर्शन का जीवंत प्रमाण बन गया है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब व्हाट्सएप, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे मंच उपलब्ध हैं, तब संघ दरवाज़े खटखटाने क्यों निकला? इसका उत्तर दो स्तरों पर है। पहला-आज का डिजिटल माध्यम जितना तेज़ है, उतना ही भ्रम और फेक न्यूज़ का कारखाना भी है। संघ के बारे में दशकों से गढ़े गए मिथक-कि वह हिंसक है, संकीर्ण है या केवल ऊँची जाति का संगठन है-सोशल मीडिया पर बिना किसी फैक्ट-चेक के वायरल हो जाते हैं। इन अफवाहों की उम्र बढ़ाने में एल्गोरिदम की भूमिका सबसे बड़ी है।
लेकिन जब कोई स्वयंसेवक आपके ड्राइंग रूम में बैठकर चाय पीते हुए बताता है कि संघ क्या है, कैसे काम करता है, और उसकी शाखाएँ रोज़ सुबह बच्चों को खेल-खेल में राष्ट्रप्रेम सिखाती हैं, तो फेक न्यूज़ का जादू टूट जाता है। सीधा संवाद सबसे मजबूत फैक्ट-चेक होता है।
दूसरा और अधिक गहरा कारण सामाजिक है। आज परिवार और समाज में मिलना-जुलना कम होता जा रहा है। शादी का कार्ड भी व्हाट्सएप पर आ जाता है। रिश्तेदारों से मिलने की जगह फॉरवर्ड मैसेज ले रहे हैं। मोबाइल ने दूरी तो कम की, लेकिन रिश्तों की गर्माहट भी छीन ली। कहा जाने लगा है-“मोबाइल घटेगा, तभी परिवार बढ़ेगा।” ठीक यहीं संघ की पुरानी संपर्क पद्धति प्रासंगिक हो उठती है।
संघ का स्वयंसेवक या प्रचारक जब किसी परिवार में बैठता है, तो वह मेहमान नहीं बनता, परिवार का सदस्य बन जाता है। बच्चा उसकी गोद में चढ़ जाता है, बुज़ुर्ग उससे अपनी पुरानी यादें बाँटते हैं, और गृहिणी चाय बनाकर लाती है। बातचीत में कोई औपचारिकता नहीं होती। यही संघ की ‘कुटुंब प्रबोधन’ की अवधारणा है-परिवार को जागृत करना, उसे जोड़ना और उसे राष्ट्र का अभिन्न अंग बनाना।
यह गृह संपर्क अभियान केवल प्रचार नहीं है। यह पाँच बड़े संदेशों को घर-घर पहुँचाने का माध्यम है, जिन्हें संघ ने ‘पंच परिवर्तन’ या ‘पंच कर्तव्य’ का नाम दिया है-
कुटुंब प्रबोधन- परिवार को मजबूत और जागृत बनाना
सामाजिक समरसता- जाति, स्पर्श और क्षेत्र की दीवारें तोड़ना
पर्यावरणयुक्त जीवनशैली- जल, जंगल, ज़मीन, जीव और जन का संरक्षण
स्वदेशी- अपने उत्पाद, अपनी संस्कृति, अपना स्वाभिमान
नागरिक कर्तव्य- मतदान, कानून पालन और समाज सेवा जैसे दायित्वों का बोध
हर घर में स्वयंसेवक भारत माता का चित्र और ‘पंच परिवर्तन’ का पत्रक भेंट करते हैं। चित्र इसलिए कि दीवार पर टंगा माँ का स्वरूप रोज़ याद दिलाए, और पत्रक इसलिए कि लिखित संदेश घर के किसी भी सदस्य तक पहुँचे और आगे बढ़े।
अभियान की व्यापकता अद्भुत है। पूरे देश में लाखों स्वयंसेवक 20-20 और 50-50 की टीमों में जुटे हैं। केवल अवध क्षेत्र में ही 40 लाख घरों से संपर्क का लक्ष्य है। 80 हज़ार कार्यकर्ता सड़कों पर हैं। शहरों में सोसाइटी-दर-सोसाइटी और गाँवों में बस्ती-दर-बस्ती संपर्क किया जा रहा है। अलग-अलग टीमें प्रबुद्धजनों, डॉक्टरों, वकीलों और व्यापारियों से भी मिल रही हैं।
नवंबर से शुरू हुआ यह अभियान दिसंबर के अंत तक कई स्थानों पर चलेगा, जबकि कुछ जगहों पर जनवरी तक भी बढ़ सकता है। लेकिन इस अभियान की सबसे खूबसूरत बात यह है कि यह एकतरफ़ा प्रचार नहीं है। स्वयंसेवक सिर्फ अपनी बात नहीं कहते, बल्कि परिवार की बात सुनते भी हैं। कोई पानी की समस्या बताता है, तो स्वयंसेवक उसे नोट कर संबंधित सेवा प्रकल्प से जोड़ते हैं। कोई जातीय तनाव की बात करता है, तो सामाजिक समरसता की बैठकों का सिलसिला शुरू होता है। इस तरह गृह संपर्क केवल संदेशवाहक नहीं, बल्कि समाज की नब्ज़ पकड़ने का माध्यम भी बन रहा है।
शताब्दी वर्ष में यह अभियान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि संघ 100 वर्ष पूरे होने पर आत्ममंथन भी कर रहा है। डॉ. हेडगेवार ने 1925 में जो बीज बोया था, वह आज वटवृक्ष बन चुका है। लेकिन वटवृक्ष को भी नई मिट्टी और नया पानी चाहिए। आज का युवा डिजिटल दुनिया में रहता है, वह तर्क और प्रमाण चाहता है।
गृह संपर्क के माध्यम से संघ उसी युवा को आमंत्रित कर रहा है-आओ, शाखा पर आकर देखो कि हम क्या करते हैं। कोई दबाव नहीं, कोई ज़बरन भर्ती नहीं, सिर्फ निमंत्रण। और आश्चर्यजनक रूप से हज़ारों परिवारों ने कहा-“हम ज़रूर आएँगे।”
आज जब राजनीतिक ध्रुवीकरण चरम पर है, संघ ने जानबूझकर राजनीति से दूर एक शुद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान चलाया है। न कोई चुनावी नारा, न कोई राजनेता मंच पर-सिर्फ स्वयंसेवक और समाज। यही संघ की शक्ति है। वह कभी जल्दबाज़ी में परिणाम नहीं चाहता। एक-एक परिवार, एक-एक व्यक्ति को जोड़ता है, और सौ वर्षों में करोड़ों तक पहुँच जाता है।
यह गृह संपर्क अभियान तकनीक का विरोध नहीं, बल्कि तकनीक की सीमाओं को समझने का प्रतीक है। डिजिटल माध्यम संदेश पहुँचा सकते हैं, लेकिन विश्वास नहीं बना सकते। विश्वास तो आँखों में आँखें डालकर, हाथ मिलाकर और चाय की चुस्कियों के बीच ही बनता है।
संघ ने शताब्दी वर्ष में वही पुराना मंत्र दोहराया है“व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण”। और इसके लिए सबसे छोटी इकाई है-परिवार। जब लाखों घरों में भारत माता का चित्र लगेगा और पंच परिवर्तन की चर्चा होगी, तब एक मौन क्रांति शुरू हो चुकी होगी। वह क्रांति जिसे न कोई कैमरा कैद कर पाएगा, न कोई ट्रेंडिंग हैशटैग बना पाएगा, लेकिन जो आने वाले दशकों तक भारत के चरित्र को मजबूत करती रहेगी।