मुरैना में सेना-पुलिस में भर्ती होने वाले युवाओं को 12 वर्षों से मुफ्त प्रशिक्षण दे रहे हैं जोगेंद्र
एक समय था जब चंबल का नाम आते ही दस्यु, बंदूक और खौफ की तस्वीर आंखों के सामने उभर आती थी। लेकिन वक्त बदला है। आज उसी चंबल की धरती से देशभक्ति, अनुशासन और सेवा की एक नई कहानी लिखी जा रही है। इस बदलाव की एक मजबूत कड़ी हैं मुरैना जिले के जोगेंद्र सिंह गुर्जर-एक ऐसा युवा, जिसने बिना किसी स्वार्थ के सैकड़ों सपनों को वर्दी पहनाई है।
पिछले 12 वर्षों से जोगेंद्र उन गरीब, मध्यमवर्गीय और संसाधनविहीन युवाओं के लिए उम्मीद की किरण बने हुए हैं, जो पुलिस या सेना में भर्ती होकर देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हैं, लेकिन सही मार्गदर्शन और संसाधनों के अभाव में पीछे रह जाते हैं। मुरैना और ग्वालियर में वे पूरी निष्ठा के साथ शारीरिक प्रशिक्षण देते हैं.वह भी बिल्कुल मुफ्त। न फीस, न प्रचार, न कोई निजी लाभ.सिर्फ देशसेवा का संकल्प।
सुबह की सख्त कसरत, दौड़, कूद-फांद, अनुशासन और आत्मविश्वास जोगेंद्र की ट्रेनिंग सिर्फ शरीर नहीं गढ़ती, बल्कि मन और सोच को भी मजबूत बनाती है। उनका लक्ष्य युवाओं को केवल भर्ती परीक्षा पास कराना नहीं, बल्कि उन्हें जिम्मेदार, अनुशासित और राष्ट्र के प्रति समर्पित नागरिक बनाना है। उनके लिए हर चयनित युवक-युवती सबसे बड़ा पुरस्कार है।
ऐसे मिली प्रेरणा
विज्ञान में स्नातक जोगेंद्र सिंह गुर्जर मूल रूप से मुरैना के जरेरुआ गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने ग्वालियर में रहकर पढ़ाई की। उनके पिता पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हैं। पढ़ाई के साथ-साथ जोगेंद्र एक बेहतरीन एथलीट भी रहे और कॉलेज स्तर पर कई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लिया।
उन्होंने स्वयं भी पुलिस भर्ती की तैयारी की थी, लेकिन कद कम होने के कारण चयन नहीं हो सका। उसी वर्ष तत्कालीन पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने पुलिसकर्मियों के बच्चों को मिलने वाली कद की छूट समाप्त कर दी थी। यह असफलता जोगेंद्र को तोड़ नहीं सकी, बल्कि उन्हें नई दिशा दे गई। उन्होंने ठान लिया कि वे उन युवाओं के लिए रास्ता बनाएंगे, जिन्हें शारीरिक परीक्षा के लिए कहीं कोई व्यवस्थित प्रशिक्षण नहीं मिलता।
यही सोच लेकर वर्ष 2013 में उन्होंने मुरैना के डॉ. भीमराव अंबेडकर स्टेडियम में महज 5–6 युवाओं के साथ प्रशिक्षण शुरू किया। आज यह कारवां सैकड़ों युवाओं तक पहुंच चुका है और लगातार आगे बढ़ रहा है।
संघर्ष और संतोष
जोगेंद्र अपने परिवार का पालन-पोषण गिट्टी-पत्थर के काम से करते हैं। वे मुस्कुराकर कहते हैं, “जब पुलिस या सेना में चयनित युवक-युवतियां मुझसे मिलने आते हैं और पैर छूते हैं, तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। यही मेरी सबसे बड़ी कमाई है।
दरअसल, यह कहानी सिर्फ जोगेंद्र सिंह गुर्जर की नहीं है, बल्कि उस सोच की है जो समाज को मजबूत बनाती है, युवाओं को भटकाव और दुर्व्यसनों से दूर रखती है और चंबल जैसे इलाके को एक नई पहचान देती है—देश के रक्षकों की नर्सरी के रूप में।
प्रयास के ठोस परिणाम
• 700 से अधिक युवा सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेज में चयनित
• 150 युवा अग्निवीर के रूप में चयनित
• 200 से अधिक युवा चयनित होकर प्रदेश के 12 जिलों में पुलिस और विशेष सशस्त्र बलों में सेवाएं दे रहे हैं
• 42 युवतियां पुलिस में चयनित
• वर्तमान में 200 युवाओं का प्रशिक्षण जारी
संघ अधिकारियों से मिली दिशा
जोगेंद्र सिंह गुर्जर के इस निस्वार्थ कार्य के पीछे कहीं न कहीं सेवा और राष्ट्रनिर्माण की वह भावना भी है, जिसे उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े सेवा कार्यों से प्रेरणा के रूप में मिली। भले ही वे प्रत्यक्ष रूप से संघ से न जुड़े हों, लेकिन संघ से जुड़े चेतन जी और सेवा भारती से जुड़े रामेंद्र जी का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन उन्हें लगातार मिलता रहा है।
इन्हीं लोगों ने जोगेंद्र को यह समझाया कि यदि संसाधन नहीं हैं, तो भी सेवा का रास्ता बंद नहीं होता। समाज के लिए कुछ करने का जज्बा ही सबसे बड़ा साधन होता है। यही कारण है कि जोगेंद्र का प्रशिक्षण केवल भर्ती की तैयारी तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें अनुशासन, चरित्र निर्माण और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यबोध भी शामिल है।