समस्या नहीं आशीर्वाद है "संयुक्त परिवार"

वर्तमान परिवेश में संयुक्त परिवार की प्रासंगिकता

Update: 2023-08-04 15:37 GMT

परिवर्तन प्रकृति प्रदत्त नियम है। बिना परिवर्तन के सृजनशीलता सम्भव नहीं है। मनुष्य के जीवन में विकास एक सतत प्रक्रिया है और इसके लिए व्यवस्था का होना नितांत आवश्यक है। मनुष्य बदलते परिवेश में मनुष्य आवश्यकतानुसार सर्वमान्य व्यवस्था बनाता है। समाज एक व्यवस्था है। समाज को चलाने के लिए परिवार भी एक व्यवस्था है। प्राचीनकाल से ही भारत मे संयुक्त परिवार की अवधारणा रही है लेकिन पाश्चात्य के प्रभाव में बहकर हमने एकल परिवार को अपनाया। लेकिन एकल परिवार में आज भी सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। इसकी भरपाई का एकमात्र विकल्प संयुक्त परिवार ही है। यही कारण है कि आज भी कई एक परिवार समाज के लिए मिसाल बन हुए हैं। ऐसा ही एक परिवार है दिल्ली का बंसल परिवार।

दिल्ली के रविंद्र बंसल परिवार की तो बात ही निराली है उनकी माता जी का भी कुछ समय पहले ही देहांत हुआ है। उनके परिवार में उनकी माताजी, पत्नी कमलेश 3 पुत्र ,3 पुत्र वधुएं, पोते- पोतियां एक छत के नीचे आधुनिकता, विकास की इस दौड़ में एक दूसरे का हाथ था। परिवार में मजबूती से झंझावात का मुकाबला कर रहे हैं। बंसल जी की पत्नी कमलेश जी से जब मैंने संयुक्त परिवार के विषय में बात की तो उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे बच्चे भी बुजुर्गों के साथ का महत्व समझते हैं । कम खोना, पाना बहुत ज्यादा। बच्चे बेफिक्र होकर अपने काम पर जाते हैं। छोटे बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं। बहुएं कामकाजी हैं तब भी जितना सहयोग हो उससे ज्यादा करती हैं, नौकरी के बावजूद भी । मैं एक बात बहुत अच्छी तरह से महसूस करती हूं कि मेरी लड़की को ससुराल जाकर जो सुविधा मिले, वही मुझे मेरी बहू को भी देनी है । केवल मेरा ही योगदान नहीं है इस परिवार को संभाल कर रखने में, बच्चों ने भी अपनी तरफ से पूरा सहयोग दिया है। सभी मिलकर प्रयास कर रहे हैं तभी संयुक्त परिवार चल रहा है।

मैं एक बात पूरे विश्वास के साथ कहना चाहूंगी कि इन संयुक्त परिवारों के बच्चे, एकल परिवारों में पल रहे बच्चों से ज्यादा आत्मविश्वासी, संयमी, कुशाग्र व शांत स्वभाव के अपनी जड़ों से जुड़े हैं तथा समाज सेवा के कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। ऐसे परिवारों में मुख्यतः तलाक की स्थिति बहुत ही कम देखने को मिलती है। 

विकसित देशों में परिवार विघटन का प्रतिशत बहुत अधिक है। अगर हम विकसित अमेरिका की बात करें तो वहां तलाक का प्रतिशत 41प्रतिशत है जबकि हिंदुस्तान में है केवल एक प्रतिशत ।

एक बात और शोध से सामने आई है कि ऐसे बच्चे जिनके पेरेंट्स सिंगल पैरंट है वहां पर बच्चों के अंदर क्राइम, ड्रग्स, किशोरावस्था में गर्भपात की समस्याएं अत्यधिक हैं। परिवार में पिता सुरक्षा देता है वह बच्चों का आदर्श होता है। अगर दोनों मां-बाप व परिवार साथ है तो बच्चों की परवरिश बहुत बेहतर होती है और ऐसे में बूढ़े माता-पिता को भी सुरक्षा का एहसास होता है । हमारे पड़ोस में, हमारे परिवार में हम कितने लोगों को जानते हैं, कितने लोग हमारे मुश्किल समय में हमारा साथ देंगे, यह विचार मनुष्य में आत्मविश्वास की वृद्धि करता है।

भारत के परिवारों में तलाक के मामले कम ही देखने को मिलते हैं। इसके पीछे का कारण यही है कि हम अभी भी अपने परिवारों से, माता-पिता से जुड़े हुए हैं जो हमें सही और गलत निर्णय में हमारी सहायता करते हैं। आधुनिकता के इस दौर में हम अपने परिवारों से दूर महानगरों की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे अपनों पर भी भरोसा नहीं कर पाते, यहां तक कि अगर माता-पिता दोनों कामकाजी हैं जो कि महानगरों में रहने के लिए बाध्यता (आवश्यक) भी है क्योंकि इसके बगैर बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाना, उनके सपनों को पूरा करना संभव नहीं है। वे घर से निकलते हुए सबसे पहले बच्चों को यही हिदायत देते हैं कि किसी भी परिचित, अपरिचित व्यक्ति के लिए घर के दरवाजे नहीं खोलने हैं। अपरिचित की तो बात समझ में आती है परिचित के लिए भी नहीं क्योंकि महानगरों की इस दौड़ ने हमें अपनों से ही दूर कर दिया है ।अविश्वास की ऐसी खाई पैदा कर दी है जिसको पाटना संभव नहीं है। अभी भी समय है अगर इस खाई को हमने नहीं पाटा, आपसी भरोसे को जिंदा नहीं रखा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे बच्चें हमसे दूर हो जाएंगे।महानगरों में फ्लैट कल्चर ने इतना प्रभाव डाल दिया है कि लोग पड़ोसियों से, परिवार के लोगों से जुड़ ही नहीं पाते, ना ही आत्मीय संबंध बन पाते हैं। बच्चे सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों के साथ और पूरी दुनिया के साथ बात करते हैं लेकिन अपने ही परिवार में माता-पिता, भाई-बहन और कजिन इनसे दूर होते जा रहे हैं।

मुश्किल और तनाव के समय में ये बच्चे तब दूसरों से अपने सुख दुख को बांटने के लिए भी तैयार नहीं होंगे। भरे पूरे परिवार समस्या नहीं आशीर्वाद हैं। संयुक्त परिवार उस वट वृक्ष की छांव के समान हैं जो मनुष्य को जिम्मेदार व सफल बनाने में, उसे परेशानी से लड़ने में ताकत देता है तथा सकारात्मक सोच का भाव पैदा करता है जो मनुष्य के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। अपने बड़ों का साथ दें, सहारा बनें और अपने बच्चों को एक सुरक्षित बचपन दें। पूरे संसार में भारत के संयुक्त परिवारों का जो उदाहरण दिया जाता है उसे भारत में भी अब हमें संभाल कर रखना होगा तभी वसुधैव कुटुंबकम् का जो सपना हमारे ऋषि-मुनियों ने देखा था वह पूर्ण होगा।

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