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स्वदेशी, स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता को लेकर स्वदेश की ऑनलाइन संगोष्ठी

'देश के उत्थान के लिए स्वदेशी अवधारणा आवश्यक'

Update: 2020-05-17 17:45 GMT

ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। दुनिया की तरह भारत भी चीनी वायरस की त्रासदी से बुरी तरह जूझ रहा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था पूरी तरह पंगु होकर रह गई है। इसीलिए आज आवश्यकता स्वदेशी स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की है। इसी अवधारणा को लेकर इन दिनों देश में कई तरह के प्रबोधन आदि चल रहे हैं, ताकि व्यक्ति स्वयं आत्मनिर्भर बन सकें। इसी प्राचीन अवधारणा को लेकर स्वदेश ने रविवार को एक ऑनलाइन 'राष्ट्रीय विमर्श' परिचर्चा का आयोजन किया। जिसमें उद्योगपति, समाजसेवी, प्रबुद्धजन एवं शिक्षाविद् शामिल रहे। इन सभी का मत था कि स्वदेशी, स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता से ही देश आगे बढ़ सकता है। हमें किसी विदेशी मदद की आवश्यकता नहीं है। देश में वे सभी प्रचुर मात्रा में संसाधन मौजूद हैं, जिसके जरिए हम आगे बढ़ सकते हैं।

झूम ऐप के माध्यम से आयोजित परिचर्चा में मप्र चेंबर ऑफ कॉमर्स के मानसेवी सचिव डॉ. प्रवीण अग्रवाल ने कहा कि स्वदेशी अपनाकर हम एक दूसरे क्रेता विक्रेता को पर्याप्त लाभ दे सकते हैं। आज समय आ गया है कि हम अपने संसाधनों से ही आत्मनिर्भर बनें, इससे देश मजबूत होगा।

प्रसिद्ध वास्तुविद्, स्वदेश के संचालक एवं भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अजय बंसल ने कहा कि स्वदेशी से स्वावलंबी और स्वावलंबन से आत्मनिर्भरता आती है। यह तीनों कडिय़ां एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इसकी कड़ी बनी रहना चाहिए। यदि हम खुद अपना उत्पाद बनाकर बेचेंगे तो आत्म निर्भरता तो आएगी ही। इसके लिए सामाजिक ज्ञान की बेहद आवश्यकता है।

स्वदेशी जागरण मंच के विभाग संयोजक डॉ. लोकेंद्र सिंह ने कहा कि आज देखने में आ रहा है कि हम प्राचीन भारत की ओर बढ़ रहे हैं, जो छोटे काम धंधे थे, उसी पटरी पर हम लौट रहे हैं। स्वदेशी का यही विचार है इसी मार्ग पर चलकर आत्म निर्भरता आएगी।

लघु उद्योग भारती के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एवं संभागीय प्रभारी मनोज अग्रवाल ने कहा कि मात्र तीन माह में लोगों को यह पता लग गया कि स्वदेशी का कितना महत्व है। दृढ़ इच्छाशक्ति से स्वदेशी में ही जीवन है। हमें स्वावलंबी बनने के लिए इससे अच्छा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा। भारत की जमीन पर बहुत से ऐसे स्रोत हैं, जिससे स्वदेशी उत्पाद से देश को आत्मनिर्भर बना जा सकता है।

शहर के जाने-माने चार्टर्ड अकाउंटेंट अरुण डागा ने कहा कि यह समय ऐसा है ऐसे में हमें चिप्स बाहर से लाकर खरीदने की आवश्यकता नहीं है। हम स्वदेशी उत्पाद से अपना काम आसानी से चला सकते हैं। आवश्यकता सिर्फ उन जरूरी वस्तुओं की है जो हमारे यहां नहीं बन पातीं। उन्हें ही आयात किया जाए।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मेक इन इंडिया की बात कुटीर उद्योग और मजदूरों के लिए कही गई है। इन उद्योगों से पर्याप्त रोजगार के अवसर और देशी उत्पाद बाजार में लाकर आत्मनिर्भर बना जा सकता है।

भाजपा की प्रदेश प्रदेश प्रवक्ता एवं समाजसेवी नीरू सिंह ज्ञानी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तूफान के इस दौर में नैया पार लगाने का काम कर रहे हैं। जिससे अब हम विदेशी वैशाखियों से मुक्त होकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। इसी का परिणाम है कि इस महामारी के दौरान हाइड्रो क्लोरोक्वीन जैसी दवा अन्य देशों की मांग पर भारत ने भेजी है।

जीवाजी विश्वविद्यालय अध्ययन शाला में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक डॉ. कल्पना शर्मा ने कहा कि स्वदेश में गुणवत्तापूर्ण उत्पादन की कोई कमी नहीं हैं। हम इस समय ऐसे दौर में हैं जिसमें विदेशी उत्पाद की आवश्यकता नहीं है। आत्म शक्ति के बल पर हम अर्थव्यवस्था को अपने पैरों पर खड़ा करने मैं सक्षम हैं। कार्यक्रम का संचालन सुरेश हिंदुस्तानी ने किया।

यह श्रमिकों का पलायन नहीं, घर वापसी है

परिचर्चा में वक्ताओं ने वर्तमान में श्रमिकों के बारे में भी अपनी राय व्यक्त की। इस परिचर्चा में कहा गया कि आज मजदूरों की घर वापसी को पलायन का नाम दिया जा रहा है, जो पलायन नहीं बल्कि घर वापसी है। पलायन तो उन्होंने बहुत पहले अपने गांव से किया था। अब तो वे अपने घर जा रहे हैं। लेकिन कुछ ताकतों द्वारा समाज में यह भ्रम पैदा किया जा रहा है कि मजदूरों का पलायन हो रहा है।


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