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भगवान बुद्ध का धम्म मानवता के लिए है : प्रधानमंत्री मोदी

Update: 2021-10-20 07:45 GMT

कुशीनगर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को कुशीनगर में महापरिनिर्वाण मंदिर परिसर में अभिधम्म दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान बुद्ध का धम्म मानवता के लिए है।प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भगवान बुद्ध आज भी भारत के संविधान की प्रेरणा हैं। उनका धम्म-चक्र भारत के तिरंगे पर विराजमान होकर हमें गति दे रहा है। आज भी भारतीय संसद में कोई जाता है तो इस मंत्र 'धर्म चक्र प्रवर्तनाय' पर उसकी नजर जरूर पड़ती है।

 धम्म मानवता के लिए - 

उन्होंने भारत-श्रीलंका के मजबूत प्राचीन संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि श्रीलंका में बौद्ध धर्म का संदेश सबसे पहले भारत से सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा ले कर गए थे। माना जाता है कि आज के ही दिन 'अर्हत महिंदा' ने वापस आकर अपने पिता को बताया था कि श्रीलंका ने बुद्ध का संदेश कितनी ऊर्जा से अंगीकार किया है। इस समाचार ने यह विश्वास बढ़ाया था कि भगवान बुद्ध का संदेश पूरे विश्व के लिए है और उनका वासा के अंत का प्रतीक।

बुद्ध का बुद्धत्व है- अंतिम जिम्मेदारी की भावना - 

उन्होंने कहा कि बुद्ध इसलिए ही वैश्विक हैं, क्योंकि बुद्ध अपने भीतर से शुरुआत करने के लिए कहते हैं। भगवान बुद्ध का बुद्धत्व है- अंतिम जिम्मेदारी की भावना। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब दुनिया पर्यावरण संरक्षण की बात करती है, क्लाइमेट चेंज की चिंता जाहिर करती है, तो उसके साथ अनेक सवाल उठ खड़े होते हैं। लेकिन, अगर हम बुद्ध के सन्देश को अपना लेते हैं तो 'किसको करना है', इसकी जगह 'क्या करना है, इसका मार्ग अपने आप दिखने लगता है।उन्होंने भगवान बुद्ध के कथन "अप्प दीपो भव" यानी अपने दीपक स्वयं बनो का हवाला देते हुए कहा कि जब व्यक्ति स्वयं प्रकाशित होता है, तभी वह संसार को भी प्रकाश देता है। यही भारत के लिए आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा है। यही वो प्रेरणा है जो हमें दुनिया के हर देश की प्रगति में सहभागी बनने की ताकत देती है।

वासा के अंत का प्रतीक -

उल्लेखनीय है कि यह दिन बौद्ध भिक्षुओं के लिए तीन महीने के वर्षा प्रस्थान-वर्षावास या वासा के अंत का प्रतीक है। इस दौरान वे विहार और मठ में एक स्थान पर रहते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस कार्यक्रम में श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, दक्षिण कोरिया, नेपाल, भूटान और कंबोडिया के गणमान्य भिक्षुओं के साथ-साथ विभिन्न देशों के राजदूत भी शामिल हुए।

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