शैक्षणिक परिसरों में महिला उत्पीड़न: चुप्पी, संरचना और सहयोग की राजनीति
लेखिका - डॉ अंजना झा
प्रस्तावना
शिक्षा केवल ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, स्वतंत्रता और न्याय का वाहक भी है। परंतु जब यही शैक्षणिक संस्थान — जो समाज के सर्वाधिक सभ्य और सुसंस्कृत स्थल माने जाते हैं — महिलाओं के लिए असुरक्षा, उत्पीड़न और भेदभाव का केन्द्र बन जाएँ, तो यह न केवल व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि सामाजिक और संस्थागत व्यवस्था की विफलता का भी प्रमाण है।यह मैं नहीं कह रहीं हूँ ,संदर्भ साथ में है ।क्या भारतीय समाज में पतन इस हद तक है ?(Nair, 2018; Menon, 2019)।
शोधार्थिनी से लेकर शिक्षिका और प्रशासनिक कर्मचारी तक, महिलाएँ विभिन्न रूपों में दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न और मानसिक दबाव का सामना करती हैं। यह समस्या सतह पर जितनी दिखती है, उससे कहीं अधिक गहराई में पितृसत्ता, सत्ता संरचना और संवेदनहीन सहयोग की जड़ें फैली हुई हैं (Kumar & Jha, 2020)।
समस्या के स्वरूप और प्रकार
शैक्षणिक परिसरों में महिला उत्पीड़न के अनेक रूप सामने आते हैं —
-अश्लील या दोहरे अर्थ वाले संकेत
-अनुसंधान या मूल्यांकन में पक्षपात
-प्रोन्नति या नियुक्ति में शर्तों के साथ व्यवहार
-कक्षा, सेमिनार या विभागीय बैठक में अपमानजनक भाषा
-कार्यस्थल पर सामाजिक बहिष्कार या दबाव
-यौन टिप्पणी, संदेश या स्पर्श
इन घटनाओं के परिणामस्वरूप मानसिक, सामाजिक और अकादमिक स्तर पर महिलाएँ गहरे प्रभाव और अवसाद का अनुभव करती हैं (Sahoo, 2022)।
पितृसत्ता और सत्ता संरचना की भूमिका
शैक्षणिक संस्थानों में पुरुष प्रधान सत्ता संरचना महिलाओं को निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया से दूर रखती है। इसके चलते जब उत्पीड़न होता है, तो महिलाएँ खुलकर अपनी बात नहीं रख पातीं (Chakraborty, 2017)। प्रतिरोध करने वाली महिलाओं को अक्सर "अवज्ञाकारी", "झूठी" या "संस्थान विरोधी" कहा जाता है (Desai, 2020)।
जब महिलाएँ भी बन जाती हैं मौन समर्थक
इस सामाजिक त्रासदी को और अधिक जटिल बनाता है वह क्षण, जब संस्थान की कुछ महिलाएँ भी उत्पीड़क व्यवस्था की मौन या सक्रिय सहयोगी बन जाती हैं। यह 'इंस्टीट्यूशनल गैसलाइटिंग' (Institutional Gaslighting) का एक भयावह रूप है (Banerjee, 2021)।
दोषियों को बचाने की संस्कृति
यदि आरोपी कोई वरिष्ठ शिक्षक, गाइड या प्रशासक हो, तो पूरा संस्थान उसकी छवि को बचाने में जुट जाता है। इससे पीड़िता के विरुद्ध माहौल बनता है और अन्य महिलाएँ भी चुप रहना बेहतर समझती हैं (Singh, 2016; NFIW Report, 2020)।
कानूनी ढाँचा और उसकी सीमाएँ
2013 का POSH Act (Sexual Harassment of Women at Workplace) एक ऐतिहासिक पहल थी (Government of India, 2013)। इसके तहत हर संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है। किंतु व्यवहार में:
कई कॉलेज और विश्वविद्यालय ICC की स्थापना ही नहीं करते
-समितियाँ निष्पक्ष या स्वतंत्र नहीं होतीं
-शिकायत प्रक्रिया अपारदर्शी और डरावनी होती है
(Joshi & Abraham, 2019)
समाधान के संभावित मार्ग
1. संवेदनशील और प्रशिक्षित नेतृत्व
2. स्वतंत्र, सशक्त और सक्रिय ICC
3. नियमित जागरूकता कार्यक्रम
4. पीड़िता को संरक्षण
5. महिला नेतृत्व और भागीदारी
(UGC Guidelines, 2016; NAAC Best Practices Report, 2020)
निष्कर्ष
शैक्षणिक परिसर को महिलाओं के लिए समानता, गरिमा और सुरक्षा का स्थल बनाना अनिवार्य है। अब समय है कि हम चुप्पी तोड़ें, उत्पीड़कों को जवाबदेह बनाएं, और संस्थानों को सचमुच "ज्ञान के साथ न्याय" का वाहक बनाएं।
यह आलेख मात्र नहीं है ।माननीय न्यायालय के भी संदर्भ हैं ।समय आ गया है कि इनके आलोक में हम नए शालीन समाज का निर्माण करें।
संदर्भ सूची / References
1. Banerjee, S. (2021). Women in Higher Education: Power and Patriarchy. Delhi: Oxford University Press.
2. Chakraborty, A. (2017). “Patriarchy in Indian Academia.” Economic and Political Weekly, 52(10).
3. Desai, M. (2020). Gender, Silence, and Shame in Indian Institutions. Zubaan Books.
4. Government of India. (2013). The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act. Ministry of Law and Justice.
5. Joshi, P. & Abraham, R. (2019). “ICC Effectiveness in Indian Universities.” Indian Journal of Gender Studies, 26(3), pp. 344–362.
6. Kumar, N. & Jha, A. (2020). “Gender Inequity in Indian Research Institutions.” Higher Education Quarterly, 74(4).
7. Menon, N. (2019). Recovering Justice in Indian Classrooms. Penguin India.
8. Nair, S. (2018). “Understanding Institutional Harassment.” Feminist Review, 119(1).
9. NFIW Report. (2020). Sexual Harassment in Indian Higher Education Institutions. National Federation of Indian Women.
10. Sahoo, R. (2022). “Mental Health of Harassed Women in Academia.” Indian Journal of Psychology, 89(2).
11. Singh, R. (2016). “The Culture of Silence.” The Hindu, November Edition.
12. University Grants Commission (UGC). (2016). Prevention, Prohibition and Redressal of Sexual Harassment of Women Employees and Students in Higher Educational Institutions Regulations.
13. NAAC. (2020). Best Practices in Gender Sensitization and Safe Campus Initiatives.
लेखिका - डॉ अंजना झा
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कत्थक नृत्यांगना जयपुर घराना टॉप ग्रेड दूरदर्शन कलाकार भारत सरकार
सह प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष कत्थक नृत्यांगना विभाग, (DSW) छात्र कल्याण अधिष्ठाता
राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर मध्यप्रदेश