स्वदेश विशेष: क्रांतिवीर शमशेर सिंह भोसले (पारधी ) का स्वतंत्रता की लड़ाई में बलिदान
स्वदेश विशेष : भारत को स्वतंत्र हुए 77 वर्ष हो गए हैं, हमने अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव भी मना लिया। क्या हम मानसिक रूप से स्वाधीन हुए हैं। इस पर विचार करने की आवश्यकता है, विशेषकर जनजातीय समाज को लेकर। अंग्रेजों ने इस समाज के लिए जो सामाजिक मान्यताएं स्थापित की थी, क्या भारतीय मानस उसे ध्वस्त कर पाया। यह तमाम प्रश्न तब उठते हैं जब हम घुमंतू समाज के बारे में विचार करते हैं। घुमंतू जनजाति के लोग राष्ट्र रक्षा के लिए जीवन समर्पित करने वाले राष्ट्रभक्त समाज है।
राजाश्रय में यह लोग राज्य पर घात करने वाले दुश्मनों की जानकारी एकत्र करने के लिए वेश बदलकर घूमा करते थे। इनका मूल निवास वनांचल की पहाड़ी क्षेत्र रहा है। इस तरह पारधी समाज का निर्माण हुआ। यह एक तरफ जानकारी एकत्र करते थे दूसरी और घुसपेठियों से छापामार युद्ध करके वहीं मार गिराते थे।
यह समूह देश में जिस क्षेत्र में रहा वहां के रहन-सहन और संस्कृति में घुल मिल गया और पारधी समाज कहलाया। इनका योगदान छत्रपति शिवाजी महाराज के समय भी रहा है। पारधी समाज एक बहादुर और जुझारू समुदाय रहा है, जिसने मराठा साम्राज्य के निर्माण और रक्षण में अप्रत्यक्ष लेकिन अहम भूमिका निभाई। पारदी समाज के लोग शूरवीर तथा जंगल और पहाड़ियों के अच्छे जानकार थे।
उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए गुप्तचर का काम किया। वे दुश्मन की सेना की गतिविधियों की जानकारी इकट्ठा कर मराठा दरबार तक पहुँचाते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज की सबसे बड़ी ताकत गनीमी कावा (गुरिल्ला युद्ध नीति) में पारदी समुदायों का अच्छा अभ्यास था। उन्होंने युद्ध में सहयोग, दुश्मनों पर छोपेमारी, मार्गदर्शन और रसद पहुँचाने का कार्य किया।
पहाड़ी दुर्गम और घने जंगलों वाले क्षेत्र में मार्गदर्शन और सुरक्षित रास्तों की पहचान करने में पारदी समाज मददगार रहा। पारदी समाज के लोग विश्वसनीय और तेज यात्री माने जाते थे, जो गुप्त सूचनाएँ सुरक्षित रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाते थे। पारदी समाज के कुछ योद्धा सीधे तौर पर छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में शामिल थे और सीमांत क्षेत्रों की सुरक्षा में तैनात रहते थे इसी समाज के लोगों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भी अपना योगदान दिया।
पारधी समाज के ऐसे ही वीर स्वाधीनता सेनानी थे क्रांतिवीर शमशेर सिंह भोसले पारधी । उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम लेकिन अत्यंत साहसी क्रांतिकारी थे। क्रांतिवीर शमशेर सिंह ने उस समय क्रांति का नेतृत्व संभाला, जब अधिकांश आदिवासी समूह शोषण और उपेक्षा के शिकार थे। उन्होंने अंग्रेजी राज के विरुद्ध आवाज उठाई और आदिवासियां को स्वराज के लिए उठ खड़ा होने की प्रेरणा दी।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले ही शमशेर सिंह ने काठेवाड़ नागपुर और आसपास के क्षेत्रों में पारधी, वाघरी और अन्य आदिवासी समूहों को संगठित किया। जनवरी 1857 में उन्होंने 1,500 से अधिक आदिवासियों को हथियारों के साथ संगठित किया। जनवरी 1857 में उन्होंने 1500 से अधिक आदिवासियों को हथियारों और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।
उन्होंने ओखा, अमरावती और गुजरात सीमा तक अंग्रेजों से संघर्ष किया। शमशेर सिंह भोसले के नेतृत्व में लड़ी गई लड़ाईयों में पारंपरिक गुरिल्ला शैली का उपयोग किया गया, जिसमें जंगलों और पहाड़ियों का सहारा लिया गया। उनका उद्देश्य केवल स्वतंत्रता पाना नही था, बल्कि समाज में जनजातीय स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता और शैक्षणिक जागरूकता को भी पुनर्जीवित करना था। समशेर सिंह की योजना से ब्रिटिश शासन भयभीत हो गया और ब्रिटिश सरकार ने एक एक्ट पारित किया जिसका नाम था। Criminal Tribes Act, 1871.
इस एक्ट के तहत ब्रिटिश सरकार ने समशेर सिंह को ‘खतरनाक विद्रोही’ घोषित किया और उनकी गिरफ्तारी के लिए इनाम रखा। शमशेर सिंह को 1858 की शुरुआत में पकड़ लिया गया। अंग्रेजों ने उन्हें कड़ी यातनाओं के बाद 1 अप्रैल 1858 को फांसी दे दी। स्वाधीनता के लिए इस वीर क्रांतिकारी के बलिदान को कम ही लोग जानते हैं। उन्हें लुटेरे के रूप में प्रचारित किया जाता है। वर्तमान में पारदी समाज संकट में है ,उनका जीवन सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से काफी चुनौतीपूर्ण है।
पारधी समाज ऐतिहासिक रूप से एक घुमंतू जनजाति के रूप में जाना जाता है, जिसे ब्रिटिश काल में ‘अपराधी जनजाति’ घोषित कर दिया गया था। पारधी समाज के लोग आज भी समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग रहते हैं। उन्हें कई बार अपराधियों की तरह देखा जाता है। ये लोग अधिकतर गांव के बाहर झुग्गी-झोपडि.यों या अस्थायी बस्तियों में रहते हैं, जिससे उन्हें बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है।
कई पारधी परिवारों के पास आधार कार्ड, राशन कार्ड आदि पहचान पत्र नहीं होते, जिससे उन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। अधिकांश बच्चे स्कूल नहीं जाते। जिसका कारण भेदभाव एवं सामाजिक असंतुलन है। वर्तमान में देश की परिस्थिति अलग है, हम स्वतंत्र हैं विकास के नये सोपानों पर कार्य चल रहा है ऐसे में इन पारदी समाज को समग्र विकास की मुख्य धारा में शामिल करना आवश्यक है।
Er. अचित पाठक ( शिक्षक एवं विचारक)