Mumbai Local Train Blast: दो दशकों तक जांच और सुनवाई का नतीजा - 189 मौत का कोई गुनहगार नहीं, सवाल वही - आखिर हमला किया किसने?

Update: 2025-07-21 17:14 GMT

Mumbai Local Train Blast

Mumbai Local Train Blast : देर से मिला न्याय, अन्याय से कम नहीं होता लेकिन अगर दो दशकों की देरी के बावजूद न्याय न मिले तो उसे क्या कहा जाएगा...11 जुलाई 2006 की शाम को सैकड़ों लोगों का परिवार बिखर गया। कई बच्चे अनाथ हुए कई महिलाएं विधवा और बूढ़े माता - पिता बेसहारा हुए। दो दशक के इन्तजार के बाद 21 जुलाई 2025 को उनके हाथ लगी खाख। न्याय तो दूर मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल बम ब्लास्ट में हुई 189 मौत का अब कोई आरोपित भी नहीं है।

साल 2015 में MCOCA कोर्ट ने 12 आरोपितों को दोषी मानते हुए मृत्युदंड और आजीवन कारावास का दंड दिया था। 19 साल बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सभी आरोपितों को बरी कर दिया। इसका कारण जांच में शामिल कई तकनीकी खामियां हैं। पुलिस न तो ठीक गवाह ला पाई, न साक्ष्य दिखा सकी, न उनकी पहचान करा सकी। लिहाजा अदालत ने आरोपितों को छोड़ दिया।

क्या हुआ था 11 जुलाई, 2006 की शाम :

यूं तो मुंबई की लोकल ट्रेन कभी नहीं रुकती लेकिन 12 जुलाई को लोकल ट्रेन रोक दी गई थी। कारण था मुंबई की लोकल ट्रेन में हुए एक के बाद एक बम धमाके। 11 जुलाई, 2006 की शाम 6:23 बजे से 6:28 बजे के बीच, पश्चिमी लाइन पर उपनगरीय ट्रेनों के प्रथम श्रेणी के डिब्बों में एक के बाद एक सात बम विस्फोट हुए।

शाम का वक्त इसलिए चुना गया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मारे जाएं। मुंबई के नौकरीपेशा और कामगार लोग इन्हीं ट्रेनों से सफर करते हैं। पहला विस्फोट माहिम, बांद्रा और मीरा रोड पर ठीक शाम 6:23 बजे हुआ। शुरुआत में खबर आई कि, ब्लास्ट सिलेंडर फटने के कारण हुआ है लेकिन बोरीवली में शाम 6:28 बजे जब ब्लास्ट हुआ तो स्पष्ट हो गया कि, लोकल ट्रेन्स में सीरियल बम ब्लास्ट हो रहा है। भारत में ब्लास्ट के लिए पहली बार कुकर बम का इस्तेमाल किया गया था। कुकर बम में आरडीएक्स का इस्तेमाल करते हुए टाइम बम बनाया गया।

कहानी आगे बढ़े उससे पहले जानिए ये बम बनाने की ट्रेनिंग कहां दी गई :

ऑपरेशन सिंदूर के समय भारत ने पाकिस्तान के कई टेरर कैम्प ध्वस्त किए थे। इन्हीं में से एक था बहावलपुर टेरर कैंप। मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल बम ब्लास्ट के तार भी इसी कैंप से जुड़े थे। यहीं उन लोगों को ट्रेनिंग मिली जिन्होंने लोकल ट्रेन में कुकर बम रखे।

बहावलपुर में सिमी और लश्करे तैयबा के दो गुटों की बैठक हुई। इस बैठक बाद 50 लड़ाकों को ट्रेनिंग दी गई। इस ट्रेनिंग कैम्प में भारत से गए कुछ लोग भी शामिल थे। ऐके 47 के अलावा उन्हें डेटोनेटर और कुछ छोटे बम बनाकर विस्फोट करना सिखाया गया। ATS की जांच में फैजल शेख नाम के एक व्यक्ति का नाम सामने आया था जो दो बार पाकिस्तान में ट्रेनिंग के लिए गया था। 2006 के बम ब्लास्ट के लिए 6 लोग तैयार किए गए थे। इनको ट्रेनिंग के बाद भारत भेज दिया गया। भारत - पाकिस्तान में आवाजाही के लिए ये आतंकी बांग्लादेश बॉर्डर का सहारा भी लेते थे। ATS ने मकोका कोर्ट को बताया था कि, कुछ आतंकी बांग्लादेश के रास्ते भारत में आए तो कुछ नेपाल के रास्ते।

कांडला पोर्ट के जरिए 20 किलो RDX मुंबई में लाया गया :

मुंबई में ये सभी अलग - अलग जगह पर रहे। विस्फोट के लिए आरडीएक्स की जरूरत थी। गुजरात के कांडला पोर्ट के जरिए 20 किलो RDX मुंबई में लाया गया। आतंकियों को अमोनियम नाइट्रेट की भी जरूरत थी जो मुंबई में ही खरीदा गया। इन लोगों तक हवाला के जरिए पैसे पहुंचाए जाते थे।

हमले के लिए 8 प्रेशर कुकर खरीदे गए। RDX, अमोनियम नाइट्रेट और कील डालकर प्रेशर कुकर बम बनाया गया। 11 जुलाई की सुबह ये आतंकी प्रेशर कुकर बम के साथ तैयार थे। शाम के लिए प्रेशर कुकर का टाइमर सेट किया गया क्योंकि इस समय ट्रेन में भीड़ ज्यादा होती है।

पहला धमाका खार रोड - सांता क्रूज ट्रेन में हुआ :

सात लोकल ट्रेन को निशाना बनाया गया। सात अलग - अलग गुट में ये आतंकी बट गए और चर्च गेट से प्रेशर कुकर ट्रेन में प्लांट किए गए। पहला धमाका खार रोड - सांता क्रूज ट्रेन में हुआ। दो - दो मिनट के अंतराल में हुए यह बम धमाके बेहद खतरनाक थे। माहिम में 43, सांता क्रूज - 22, मीरा रोड भायंदर - 32, माटुंगा - 28, खार - 9, बोरीवली रेलवे स्टेशन - 26 लोग मारे गए। ब्लास्ट में करीब 800 लोग घायल हुए। कुछ लोगों के पैर कट गए तो कुछ लोगों के हाथ कट गए। क्षत - विक्षत शवों और खून से मुंबई की लोकल ट्रेन के कोच लाल हो गए थे।

कश्मीर और गुजरात का बदला लेने के लिए किया था हमला :

हमले की जिम्मेदारी ली थी लश्करे कहार (लश्करे तैयबा से जुड़ा दल) ने। आतंकियों ने कहा कि, इन हमलों का उद्देश्य कश्मीर और गुजरात का बदला लेना है। ATS के अनुसार हमले का एक अन्य उद्देश्य गुजरातियों को निशाना बनाना था। इसलिए मुंबई लोकल ट्रेन फर्स्ट क्लास में बम प्लांट किए गए। आतंकियों को लगता था कि, इस क्लास में अधिकतर गुजराती सफर करते हैं।

केपी रघुवंशी उस समय ATS चीफ थे। मुंबई पुलिस और एटीएस की सात टीमों ने मामले की जांच की। पहली गिरफ्तारी कमाल अंसारी नाम के व्यक्ति की हुई। करीब 4 महीने बाद पहली चार्जशीट दायर हुई। अप्रैल 2007 में पूरक चार्जशीट दायर हुई।

मकोका में पांच दोषियों को मौत की सजा :

आठ साल से ज़्यादा चली सुनवाई के बाद, मकोका के तहत विशेष अदालत ने सितंबर 2015 में पांच दोषियों को मौत की सजा और सात अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

मामले के दोषी 18 साल से ज़्यादा समय से यरवदा और अमरावती केंद्रीय कारागारों सहित राज्य भर की विभिन्न जेलों में बंद हैं। विशेष अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उन्होंने याचिकाएं दायर की थीं और तब से मामला लंबित था।

मृत्युदंड की सजा पाने वाले पांच दोषियों में बिहार के कमाल अहमद मोहम्मद वकील अंसारी, मुंबई के मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, ठाणे के एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, सिकंदराबाद के नवीद हुसैन खान और महाराष्ट्र के जलगांव के आसिफ खान बशीर खान शामिल हैं। इन सभी को बम लगाने का दोषी पाया गया।

तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद मजीद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और ज़मीर अहमद लतीफुर रहमान शेख को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। एक आरोपी, वाहिद शेख को नौ साल जेल में बिताने के बाद निचली अदालत ने बरी कर दिया।

इस तरह मामले में कुल 13 अभियुक्त थे, जिनमें से एक को मकोका के तहत विशेष अदालत ने बरी कर दिया था। 12 में से पांच को मौत की सजा सुनाई गई थी, जिनमें से एक की महामारी के दौरान जेल में मृत्यु हो गई और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस मामले में 92 अभियोजन पक्ष के गवाहों सहित 250 गवाह थे और साक्ष्य 169 खंडों में फैले थे और मृत्युदंड के फैसले लगभग 2,000 पृष्ठों के थे।

दोषियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने तर्क दिया कि महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा "यातना" देकर प्राप्त किए गए उनके "न्यायेतर इकबालिया बयान" कानून के तहत अस्वीकार्य हैं।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि दोषियों को झूठे मामले में फंसाया गया था, वे निर्दोष थे और बिना किसी ठोस सबूत के 18 साल से जेल में सड़ रहे थे। अपनी ओर से, महाराष्ट्र सरकार ने दोषियों की अपील का विरोध करते हुए दावा किया कि जांच एजेंसी ने यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश किए हैं कि यह अभियुक्तों को मौत की सज़ा देने के लिए "दुर्लभतम" मामला है।

बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति अनिल एस. किलोर और न्यायमूर्ति श्याम सी. चांडक की विशेष पीठ ने अभियोजन पक्ष के कुछ गवाहों की विश्वसनीयता और कुछ आरोपियों की पहचान परेड (टीआईपी) पर सवाल उठाए। पीठ ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया और उन सभी को 25,000 रुपये के निजी मुचलके भरने का निर्देश दिया।

बचाव पक्ष के वकीलों के मामले में तथ्य पाते हुए, पीठ ने कहा कि, अभियोजन पक्ष (Prosecutors) "प्रत्येक मामले में आरोपियों के खिलाफ उचित संदेह से परे अपराध साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।"

न्यायमूर्ति किलोर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "यह सुनिश्चित करना कठिन है कि अपीलकर्ता अभियुक्तों ने वह अपराध किया है जिसके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है और सजा सुनाई गई है। इसलिए, अभियुक्तों के फैसले और दोषसिद्धि व सजा के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।"

सवाल वही का वही...

दो दशकों की लंबी जांच और सुनवाई, सैकड़ों गवाहों की गवाही के बाद भी 11 जुलाई, 2006 की उस काली शाम का सच सामने नहीं आया। 189 लोगों के परिवारों के दिलों में बस्ता दर्द आज भी वैसा ही है जैसा उस दिन था। हर धमाके के साथ न केवल जिंदगियां बिखरीं बल्कि उम्मीदें भी चूर-चूर हो गईं।

बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला जिसके तहत सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया, एक कड़वी सच्चाई है। जो बताती है कि, न्याय की राह कितनी लंबी और कठिन हो सकती है। आज, 21 जुलाई 2025 को, जब पीड़ित परिवार अदालत के आदेश को पढ़ रहे हैं तो उनके हाथों में सिर्फ खालीपन है। कोई जवाब नहीं, कोई सजा नहीं, सिर्फ सवाल—आखिर गुनहगार कौन है?

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