भिंड - दतिया लोकसभा : 1989 से भाजपा विजय रथ पर सवार, कांग्रेस 12 बार चुनाव हारी

अनिल शर्मा

Update: 2024-03-29 12:00 GMT
भिंड - दतिया सीट पर कांग्रेस बदल देती है प्रत्याशी

चंबल अंचल मे1967 मे भिंड-दतिया संसदीय क्षेत्र अस्तित्व मे आया था तब से जनसंघ व भाजपा का वर्चस्व कायम है यदि इस सीट के चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाले तो कांग्रेस 12 चुनाव हारी है। महज दो बार पूर्व प्रधानमंत्री स्व इन्दिरा गांधी की लहर में चुनाव जीत पाई। जबकि भाजपा सिर्फ एक बार 1984 मे पराजित हुई उसके बाद 1989 से लगातार विजय रथ पर सवार है इसलिए इस सीट को भाजपा का गढ़ कहा जाता है। जबकि केंद्र व प्रदेश मे जब काँग्रेस का दबदबा भी था तब भी वह भिंड -दतिया से लोकसभा मे प्रतिनिधित्व नही कर पायी, हार के पीछे के कारण काँग्रेस ने अपने आत्ममंथन मे खोजे होंगे पर चुनावी परिणाम इतिहास बताता है कि बार-बार प्रत्याशी बदलना और बाहर के उम्मीदवार थोपना भी उसके हार की एक बजह हो सकती है। 

परिसीमन में मुरैना से प्रथक हुई अनारक्षित भिंड -दतिया संसदीय क्षेत्र से काँग्रेस ने 1967 मे वीरेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया था वे जनसंघ के यशवंत सिंह कुशवाह से बुरी तरह हारे थे, पुराने खाटी काँग्रेस नेता बताते है कि वीरेंद्र सिंह बाहरी पूंजीपति उम्मीदवार थे उन्होने उस जमाने मे चुनाव मे खूब खर्चा किया था। 1967 मे साइकिल रेडियो को संपन्नता की निशानी माना जाता था तब उन्होने कार्यकर्ताओ को प्रचार के लिए एक ट्रक नई साइकिले मंगाकर बाटी थी फिर भी चुनाव हार गए थे। 1971 मे काँग्रेस ने दिग्गज नेता नरसिंहराव दीक्षित को टिकट दिया। वे काँग्रेस सरकार मे गृहमंत्री भी रहे थे जो जनसंघ की राजमाता विजयाराजे सिंधिया से पराजित हुये। 1977 मे आपातकाल के बाद काँग्रेस के खिलाफ पूरे देश मे वातावरण था तब काँग्रेस ने फिर एक दिग्गज नेता राघवराम चौधरी को मैदान मे उतारा जो लहार से विधायक भी रहे थे उन्हे विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार रघुवीर सिंह राजा साहव मछण्ड ने हराया था। 

गोवर्धन के प्रसाद से कालीचरन शर्मा को मिल गया था काँग्रेस का टिकट

स्व. पं. कालीचरन शर्मा को 1980 मे टिकट मिलने की भी एक दिलचस्प कहानी है। पंडित जी ने पंचायत चुनाव से राजनीति शुरुकर जनपद अध्यक्ष, मण्डल अध्यक्ष रहे फिर सांसद चुन गए थे। वे गोवर्धन बाबा के परम भक्त रहे इसलिए प्रतिमाह मथुरा गोवर्धन की परिक्रमा के बाद दिल्ली जाकर इंदिरा गांधी को प्रसाद देने पहुचते थे। इंदिरा गांधी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुई और 1980 मे टिकट दे दिया। भिंड - दतिया संसदीय क्षेत्र के इतिहास के पन्ने मे काँग्रेस का एक सुनहरा पेज भी है जिस पर काँग्रेस के दिग्गज नेताओ की हार के बाद कालीचरन शर्मा ने 1980 मे विजय पताका फहराकर काँग्रेस का खाता खोलने का इतिहास लिखा था। उन्होने जनता दल के रमाशंकर सिंह को हराया। 1980 में ही भाजपा का गठन हो चुका था लेकिन भाजपा चुनाव मैदान से बाहर थी जबकि जनता दल दो भागों में बट गया था जनता दल एस से रमाशंकर सिंह व जनता दल से निवर्तमान सांसद रघुवीर सिंह मछण्ड चुनाव मैदान मे थे और दोनों ही हार गए। 

भिंड से हारी वसुंधरा राजे सिंधिया दो बार रहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री

1984 मे पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में पूरे देश मे काँग्रेस की लहर चली तब काँग्रेस नेता माधवराव सिंधिया ने दतिया राजघराने के कृष्णसिंह जुदेव को टिकट दिलाया और भाजपा से राजमाता की बेटी बसुंधरा राजे सिंधिया (Vasundhara Raje Scindia) चुनाव मैदान मे उतरी थी जो चुनाव हार गई। इस सीट पर भाजपा पहला और अभी तक का आखरी चुनाव हारी थी। इस चुनाव की सबसे रोचक बात यह भी थी कि भाजपा-कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशी पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे। वसुंधराराजे सिंधिया ने इस हार के बाद दोबारा यहां से चुनाव नहीं लड़ा। उन्होंने ससुराल यानी राजस्थान में राजनीति की और वहीं स्थापित हो गईं। इस हार के छह महीने बाद ही राजस्थान के धौलपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद वर्ष 1989 में राजस्थान के झालावाड़ से लोकसभा का चुनाव जीतीं। वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री भी बनीं। वसुंधरा राजे भाजपा की संस्थापक सदस्य विजयाराजे सिंधिया की पुत्री होने के नाते राजनीतिक पृष्ठभूमि की थीं, जबकि कांग्रेस के कृष्ण सिंहजूदेव गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के थे। उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया पहली बार राजनीति में लेकर आए थे।

1989 के बाद नही मिली काँग्रेस को जीत

वर्ष 1989 में कांग्रेस ने निवर्तमान सांसद कृष्ण सिंह जु देव को पुनः टिकट दिया तो भाजपा ने काँग्रेस के बागी दिग्गज नेता नरसिंह राव दीक्षित को उम्मीदवार बनाया। लेकिन काँग्रेस को लगातार तीसरी बार जीत हासिल नही हुई। वर्ष 1991 में काँग्रेस ने उम्मीदवार बदला और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने अपने पत्रकार मित्र उदयन शर्मा को चुनाव मैदान मे भेजा लेकिन भाजपा के योगानंद सरस्वती से चुनाव हार गए। 1996 मे काँग्रेस ने झांसी के रहने वाले पंडित विश्वनाथ शर्मा को टिकट दिया। उन्हे भाजपा के डॉ रामलखन ने बुरी तरह हराया, काँग्रेस जमानत तक न बचा पायी। काँग्रेस ने 1998 मे बालेंदु शुक्ल, 1999 व 2004 में सत्यदेव कटारे को उम्मीदवार बनाया था। उसके बाद काँग्रेस ने 2009 में सीट आरक्षित होने के बाद डॉ भागीरथ प्रसाद, 2014 में इमरती देवी व 2019 मे देवाशीश जरारिया को टिकट दिया जो सभी चुनाव हारे।

बाहरी उम्मीदवार जिनको नही हुई जीत नसीब

इस संसदीय सीट से काँग्रेस ने वीरेंद्र सिंह, पत्रकार उदयन शर्मा, पंडित विश्वनाथ शर्मा, बालेंदु शुक्ल, इमरती देवी को टिकट देकर चुनाव मैदान मे उतारा था जिनको जीत हासिल नही हुई। जबकि भाजपा ने वसुंधरा राजे सिंधिया एक बार पराजित हुई। 

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