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शारदीय नवरात्र : मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना से होती हैं भय से मुक्ति

Update: 2021-10-12 09:11 GMT

वेब डेस्क। शारदीय नवरात्र के छठवें दिन माता दुर्गा के सप्तम स्वरूप की पूजा की जाती है। सप्तमी से ही भक्तगण मंदिरों व घरों में माता का जागरण आदि भी करते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित विवेक ने बताया कि माता का सातवां रूप कालरात्रि का माना गया है और उनकी पूजा से शत्रुओं को नाश होता है।

पं. विवेक का कहना है कि सप्तमी की पूजा सुबह अन्य दिनों की तरह ही होती, परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्टान व कहीं-कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है।

मां दुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सातवें दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए।

संसार में कालों का नाश करने वाली देवी 'कालरात्री' ही है। ये भक्तों के सभी दुख, संताप को हर लेती है। दुश्मनों का नाश करने के साथ ही माता मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं। कहा जाता है कि मां कालरात्रि भक्तो की ग्रह बाधाओं को दूर करने के साथ ही उनके अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय को भी दूर कर देती हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।

मां कालरात्रि की पूजा का महत्व

मां कालरात्रि की पूजा जीवन में आने वाले संकटों से रक्षा करती हैं। मां कालरात्रि शत्रु और दुष्टों का संहार करती हैं। मां कालरात्रि की पूजा करने से तनाव, अज्ञात भय और बुरी शक्तिओं दूर होता है। मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण है। कृष्ण वर्ण के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि की 04 भुजाएं हैं। पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए दुर्गा मां ने मां कालरात्रि का रूप लिया था।

मां कालरात्रि की पूजा विधि

नवरात्रि के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से साधक के समस्त शत्रुओं का नाश होता है। हमे माता की पूजा पूर्णतया: नियमानुसार शुद्ध होकर एकाग्र मन से की जानी चाहिए। माता काली को गुड़हल का पुष्प अर्पित करना चाहिए। कलश पूजन करने के उपरांत माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत से तिलक कर पूजन करना चाहिए और मां काली का ध्यान कर वंदना श्लोक का उच्चारण करना चाहिए। इसके बाद मां का स्त्रोत पाठ करना चाहिए। पाठ समापन के पश्चात माता जो गुड़ का भोग लगा लगाना चाहिए। तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए।

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