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एक भावुक अग्रज एक निर्भीक संपादक

अतुल तारे

Update: 2018-09-01 08:55 GMT

यह मेरा व्यक्तिगत रूप से दुर्भाग्य रहा है कि श्रद्धेय भाईसाहब (श्री राजेन्द्र शर्मा) के मार्गदर्शन में, सानिध्य में काम करने का अवसर मुझे नहीं मिला है। कारण जब मैं देश की ही नहीं अपितु विश्व में पत्रकारिता की अनोखी पाठशाला 'स्वदेश' में कलम पकडना सीख रहा था भाईसाहब की राजधानी भोपाल में व्यस्तताएं बढ़ चुकी थीं। पर हाँ यह मेरा सौभाग्य अवश्य रहा है कि उनका स्नेह, आशीर्वाद सदा मेरे साथ रहा है और है। जब भी उनसे भेंट होती है तो एक अग्रज के नाते वह अपनी चिर-परिचित स मोहित करती स्मित मुस्कान से हमेशा पूछते हैं ''कैसे हो अतुल, सब ठीक" मेरी जितनी उम्र नहीं है भाईसाहब का पत्रकारिता जीवन है अत: यह मेरी पात्रता ही नहीं कि मैं उनके यशस्वी पत्रकारिता जीवन पर लिखूं। हाँ इस अवसर पर मनपूर्वक हृदय से आशीर्वाद की आकांक्षा के साथ उन्हें शुभकामनाएं।

मेरा ऐसा मानना है और मेरा ही क्या पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ा हर कोई इससे सहमत होगा कि श्री राजेन्द्र शर्मा सिर्फ एक व्यक्ति का नाम नहीं है। वे पत्रकारिता की अपने आप में एक पाठशाला हैं, विश्वविद्यालय हैं। मालवा क्षेत्र का एक युवा जो मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्रद्धेय कुशाभाऊ ठाकरे के निर्देश पर ग्वालियर आता है और राष्ट्रीय विचारों का शंखनाद 'स्वदेश' के माध्यम से करता है। तकनीकी रूप से आप उन्हें 'स्वदेश' के स्थानीय संपादक से प्रधान संपादक, प्रबंध संचालक आदि कुछ भी कहें, और यह उनकी अपनी एक यशस्वी यात्रा है। 'स्वदेश' भोपाल, रायपुर पत्र समूह की गंगोत्री ग्वालियर ही रही है जिसने कालांतर में एक अलग धारा के रूप में अपनी पहचान स्थापित की। पर उससे भी बड़ा सच और यथार्थ यह है कि 'स्वदेश' को उन्होंने अपने पसीने से सींचा है, अपनी लेखनी से तेवर दिए हैं और अपने अद्भुत प्रबंधकीय कौशल से विस्तार दिया है। इसलिए राजेन्द्र जी की 50 वर्ष की पत्रकारिता यात्रा वस्तुत: 'स्वदेश' के विस्तार की भी एक यात्रा है। आज देश भर में राष्ट्रीय विचारों के प्रति जो सकारात्मक भाव हम देख रहे हैं उसमें 'स्वदेश' जैसे वैचारिक पत्रों का अहम स्थान है और 'स्वदेश' यह भूमिका निभा सका इसके पीछे राजेन्द्र जी जैसे कर्मठ, धैर्यवान संपादक हैं जिन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में एक यशस्वी पत्रकारों की पौध तैयार की। वे सिर्फ संपादक ही नहीं रहे, ग्वालियर में वह अपने सहयोगियों के लिए हमेशा एक बड़े भाई की तरह रहे। एक नहीं ऐसे कई भावुक उदाहरण 'स्वदेश' परिसर में आज भी सुनाए जाते हैं याद किए जाते हैं जो आंखों को नम करते हैं। यही नहीं 'स्वदेश' परिसर में एक भावुक अग्रज की भूमिका निभाने वाला एक निर्भीक एवं तीखे तेवरों वाला संपादक भी कैसे हो सकता है, यह भी उन्होंने दिखलाया है।

आज राजेन्द्र जी 'स्वदेश' भोपाल एवं रायपुर पत्र समूह के संपादक हैं। यह उनकी ही जीवटता है कि बाजारवादी पत्रकारिता के युग में यह अपने स्वयं के पुरुषार्थ पर समूह का संचालन कर रहे हैं। नि:संदेह यह दुष्कर कार्य है पर वे कर रहे हैं, सतत कर रहे हैं। वे नि:संदेह अभिनंदन के अधिकारी है वंदन के अधिकारी हैं। 'स्वदेश' ग्वालियर समूह की ओर से उनके यशस्वी जीवन की कामना के साथ अनंत शुभकामनाएं।

हार्दिक शुभकामनाएं    

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