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देवीपाटन मंडल के चारों जिलों में स्थापित हैं पांडव कालीन शिव मंदिर

देवीपाटन मंडल के चारों जिलों बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा और बलरामपुर पर भगवान शिव की कृपा युगों-युगों से बरसती रही है।

Update: 2021-07-20 14:50 GMT

अतुल अवस्थी/देवीपाटन। औढरदानी भगवान शिव का प्रिय  महीना पवित्र सावन चल रहा है। वेद, पुराण और शास्त्र बताते हैं कि सावन माह में भगवान शिव की उपासना से सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। कोरोना के चलते कांवड़ यात्रा पर रोक है। ऐसे में कोरोना से डरिए तो जरूर लेकिन भगवान शिव की जय- जय कार की आवाज मंद मत कीजिए। वैसे भी देवीपाटन मंडल के चारों जिलों बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा और बलरामपुर पर भगवान शिव की कृपा युगों-युगों से बरसती रही है। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय मंडल के इन्हीं जनपदों के जंगलों में बिताया था। इस दौरान युधिष्ठिर,  भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव ने भगवान शिव की आराधना करते हुए जगह-जगह शिवलिंग की स्थापना की। मंडल के चारों जनपदों में इस समय 6,000 से अधिक छोटे-बड़े शिव मंदिर स्थापित हैं। 

बलरामपुर को जहां छोटी काशी का दर्जा मिला हुआ है वही प्रसिद्ध देवी पाटन मंदिर शिव और सती के अटूट प्रेम की गवाही है। जबकि गोंडा में विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थापित है। बहराइच श्रावस्ती के पांडव कालीन शिव मंदिरों की कहानी आस्था को और मजबूत करते हैं। ऐसे में स्वदेश के शब्दों में मंडल के चारों जनपदों के प्रसिद्ध शिव मंदिरों की कहानी पढ़िए और भगवान शिव की जय जयकार कर अपना इह लोक और परलोक सँवारिए।



बहराइच में है धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा स्थापित शिवलिंग

हिमालय की तलहटी में बसे बहराइच में पांडव कालीन मंदिरों की श्रृंखला में सिद्धनाथ पीठ, जंगली नाथ और मंगली नाथ शिव मंदिर शामिल है। मान्यताओं के मुताबिक इन शिव मंदिरों में जलाभिषेक करने मात्र से ही लोगों कि दुख दर्द दूर हो जाते हैं। पुराणों के पन्ने पलटे तो पता चलता है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने शिवलिंग की स्थापना करके भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की थी। सिद्धनाथ मंदिर के महामंडलेश्वर स्वामी रवि गिरी महाराज बताते हैं कि इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग की स्थापना अज्ञातवास के समय धर्मराज युधिष्ठिर ने की थी, इस स्थल पर महाभारत काल में पांचों पांडव शिव की पूजा अर्चना करते थे, जहां आज लोगों की असीम मान्यताएं पूरी होती हैं। उधर बहराइच के नवाबगंज थाना क्षेत्र में स्थित प्राचीनकालीन शिव मंदिर मंगली नाथ और मटेरा कस्बे के निकट स्थित जंगली नाथ मंदिर मैं स्थापित शिवलिंग भी पांडव कालीन बताया जाता है। जहां के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं को दुखों से छुटकारा मिलता है। 



श्रावस्ती में भीम ने बसाया था गांव, की थी शिव की पूजा

नेपाल सीमा से सटे बहराइच जिले के उत्तर श्रावस्ती स्थित है। जिले का मुख्यालय भिनगा है। बुजुर्ग बताते हैं कि महाभारत काल में पाण्डव 12 वर्ष वनवास व्यतीत करने के बाद अज्ञातवास का एक वर्ष बिताने के लिए बहराइच श्रावस्ती गोंडा बलरामपुर के जंगलों में भटके थे। उसी समय वर्तमान श्रावस्ती के  सोहेलवा वन क्षेत्र में भी पांडवों का समय गुजरा था। उस समय भीम ने एक गांव की स्थापना की थी जिस कारण उस गांव को भीम गांव के नाम से जाना जाता था। बाद में समय के साथ भीम गांव का नाम बदलते-बदलते भिनगा हो गया। भीम गांव से उत्तर दिशा में 35 किलो मीटर पर भगवान आशुतोष की  आधार शिला रखी है जो विभूतिनाथ नाम से प्रसिद्ध है। 



गोंडा के पृथ्वीनाथ में स्थापित है सबसे बड़ा शिवलिंग

गोंडा जिले के खरगूपुर क्षेत्र में पृथ्वीनाथ मंदिर स्थित है। जिला मुख्यालय से पृथ्वीनाथ मंदिर की दूरी लगभग 28 किलोमीटर है। यह मंदिर वास्तुकला का नायाब नमूना माना जाता है। पृथ्वीनाथ को 'लिंगम' भी कहा जाता है। इतिहास और पुराणों के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि पृथ्वीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग विश्व का सबसे ऊंचा शिवलिंग है, पुराणों के मुताबिक द्वापर युग में ही अज्ञातवास बिताते समय भीम ने यह शिवलिंग भी स्थापित किया था। इस मंदिर के प्रति शिव भक्तों की अगाध आस्था और श्रद्धा है। 



छोटी काशी के नाम से मशहूर है बलरामपुर

बलरामपुर जिले में सवा हजार से अधिक छोटे बड़े शिव मंदिर स्थापित है। इसके चलते बलरामपुर जिला छोटी काशी के नाम से भी मशहूर है। बलरामपुर भी नेपाल की उपत्यका में स्थित है। जिले के तुलसीपुर कस्बा से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध सिद्ध शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर स्थापित है। यह शक्तिपीठ देश के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। पुराणों के मुताबिक देवीपाटन शक्तिपीठ शिव और सती के प्रेम का प्रतीक स्वरूप है। वही ललिया थाना क्षेत्र के देवपुरा गांव में 400 साल से अधिक प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि 400 साल पूर्व महामारी फैली थी। मंदिर की स्थापना के साथ ही महामारी खत्म हो गई थी। इस मंदिर में भी आस्था और श्रद्धा हिलोरे लेती दिखती है। मंदिर के अंदर दीवार पर प्राचीन वास्तुकला का नमूना देखने को मिलता है।

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