लोककल्याण ने उन्हें अविस्मरणीय बना दिया
लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर की जयंती आज
जो मनुष्य हर घड़ी, हर पल, प्रत्येक स्थिति में एक समग्रता के साथ जब अपने जीवन ध्येय के पथ पर बढ़ता चला जाता है तो उसके जीवन में किसी प्रकार की कमी या त्रुटि की संभावना रह ही नहीं जाती है... मनुष्य जीवन में जब कोई ी-पुरुष संपूर्णता की सीमा रेखा का यथोचित पालन करती/करता दिखाई दे, तब उसे हम मनुष्य रूप में दिव्य आत्मा, महान आत्मा अथवा ईश्वरीय दूत के रूप में भी स्वीकार करते हैं... कलियुग में ऐसे ही महान व्यक्तित्वों की प्रसुता यह भारतभूमि रही है... सद्मनुष्यों के व्यक्तित्व-कृतित्व एवं प्रेरणादायी जीवन के कारण यह धरा अपना संतुलन बनाए हुए है... जब कभी इस संतुलन में असामनता आती है तो हमें अकाल, सूखा, भूकंप, बाढ़, सुनामी या ऐसी ही प्रकृतिजनित विनाशलीला झेलकर ईश्वर निर्मित प्राकृतिक संतुलन को स्वीकार करना पड़ता है... ऐसे में प्रेरणादायी व्यक्तित्व ही तो हमें यह भान कराते हैं कि लोक-कल्याण की भावना के साथ किए जाने वाले कार्य, उसमें समानता व पारदर्शिता का भाव ही मनुष्य जीवन को संपूर्णता प्रदान करता है... ऐसे कई शासक एवं शासिकाएं इस धरा पर आए और अपने ईश्वर निर्धारित अपने कृतित्व के द्वारा सैकड़ों वर्षों बाद भी जनमानस के बीच न केवल सम्मान-गर्व से स्मरण किए जाते हैं, बल्कि उन्हें ईश्वरीय अवतार के रूप में आज भी जनता-जनार्दन अर्थात् प्रजा अपने 'हृदय सिंहासनÓ पर विराजमान करके उन्हें लोकमाता, लोकदेवता, राष्ट्रसेवक, प्रजापालक के रूप में स्वीकार करती है... हिंदवी स्वराज के उद्घोषक शिवाजी महाराज, राजपूताना शासक एवं भारतभूमि के गौरव के लिए राजा होकर भी वनों का संकटपूर्ण जीवन जीने वाले महाराणा प्रताप या फिर प्रजा के सुख-दुख को अपने परिवार का, स्वयं का सुख-दुख मानने वाली कुशल प्रशासिका लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर का जीवन ऐसे ही ईश्वरीय दूत के रूप में स्वीकार किया जाता है... यह धरा ऐसी भावपूर्ण प्रसूता है, जहां ओजमयी हस्तियों का जन्म हुआ, जिन्होंने अपने कार्य से स्वयं का वर्तमान ही सार्थक नहीं किया, भूत-भविष्य के मान से भी मनुष्य जीवन के लिए ऐसी कसौटियां निर्धारित की, जो आज भी समाज-राष्ट्र जीवन के लिए किसी कुशल शासक-प्रशासक के जीवन का अनिवार्य अंग होना चाहिए... अहिल्याबाई होलकर का पूरा जीवन अनुपम प्रेरणा की वह मशाल है, जो सहों वर्षों तक मनुष्य जीवन के अंधकार को तिरोहित करने का निमित्त बनेगी... उनका जीवन सदियों तक भारत के प्रशासकीय नीति-नियंताओं को भी समाज-राष्ट्र हित से जुड़े विषयों और उसकी अनिवार्यता उपबंधों से परिचय करवाकर रामराज्य वाली शासन व्यवस्था के लिए प्रेरित करता रहेगा... शिवाजी से लेकर अहिल्याबाई तक के जीवनवृत्त का यही तो संदेश है कि इस मनुष्य जीवन को रामराज्य की संकल्पना हेतु आहुत करके प्रत्येक मनुष्य में श्रीराम की मर्यादा, अनुशासन, कृतित्व एवं व्यक्तित्व का निर्माण चीरकाल तक होता रहे... अहिल्याबाई ने परिवार के साथ शासन और प्रजा के बीच समन्वय का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया... शासक-प्रशासक कैसा होना चाहिए..? उसमें किन गुणों का होना जनहित में अतिआवश्यक है..? लोकतंत्र की सर्वोच्च पंचायत 'संसद भवनÓ में लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर की स्थापित प्रतिमा के साथ संक्षेप विवरण में उल्लेखित शब्दों से इसका ज्ञान हमें होता है... लोकमाता के विषय में वहां लिखा है कि - 'ऐश्वर्यवती वैरागिनी अष्टावधानी राजधर्मिणी रणरागिणी समरांगणी क्षेत्र धर्म संवर्धिनी निष्पक्ष न्यायदायिनी कर्मवती संजीवनी अहिल्या प्रजा हितकारिणी...Ó एक ऐसी सर्वगुण सम्पन्न लोकशासिका जिन्होंने परिवार, समाज, प्रजा, धर्म व राष्ट्र विषयक मानबिन्दुओं के परिपालन हेतु अपने जीवन के सुख को विस्मृत करते हुए सेवाभावी शासिका की पराकाष्ठा को पार करके दिखाया... तभी तो वे आज मनुष्य के लिए लोकमाता रूप में वंदनीय, पूज्यनीय, प्रात: स्मरणीय, पुण्यश्लोका के रूप में मान्य है... जीवन के बहुत छोटे से कालखंड में लोकमाता ने घर-परिवार, शासन, धर्म व देश-दुनिया के लिए वह सबकुछ किया, जो सैकड़ों वर्षों तक प्रेरणादायी है और रहेगा... तभी तो मराठी के महाकवि मोरोपंतजी ने काव्य रूप आर्या में लिखा है कि -
'देवी! अहिल्याबाई यावी भेंटावयास सत्वर ती।
तूं पुण्य कीर्ति हे ही गंगे दोघी जणी हि सत्वर ती।।Ó
लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को बाल्यकाल से ही दुखों-संकटों के पहाड़ का सामना करना पड़ा... लेकिन उन्होंने कभी भी हिम्मत न हारकर अपनी प्रजासेवी भूमिका का त्याग अथवा विस्मरण नहीं किया... जीवनकाल में ही उनके परिवार के अधिकांश लोगों का देहावसान हो गया था... उस दुख की चरमसीमा का सामना करके उन्होंने अपनी प्रजा का पालन किसी पुत्रवत किया... इसीलिए तो अपने जीवनकाल में ही देवी लोकमाता के रूप में प्रजाजनों के हृदय सिंहासन पर विराजमान हो गई थीं और आज भी जनता उन्हें कुशल प्रजासेविका के रूप में देखकर अपने जनप्रतिनिधियों/जनसेवकों से भी ऐसी ही निश्छल, निष्कपट, नीति-नीयत की आस लगाए बैठी है... वे आलौकिक अष्ठावधानी व्यक्तित्व की धनी थी... भारत में मनुष्य रूप में ऐसी असामान्य और तेजमयी ी शासिका थीं, जिन्होंने धुरंधर राजनीतिज्ञों के साथ लोहा लेकर अपनी प्रशासक श्रेष्ठता का संधान किया... वे श्रेष्ठ कूटनीतिज्ञ, अत्यंत कुशल प्रशासक, भविष्य का अनुमान लगाकर त्वरित निर्णय लेने वाली अद्भुत दूरदृष्टि रखने वाली नायिका थीं... राज्य की सुरक्षा के लिए सदैव जागरूक व तत्पर रहते हुए यथासंभव कौशल के साथ चतुराई व तार्किक रूप से दबाव-प्रभाव के द्वारा राजनीतिज्ञ सफलता प्राप्त करना ही उनका गुण था... आवश्यकता पड़ने पर सैन्य कार्रवाई के साथ स्वयं तलवार लेकर मैदान में कूदने की उनकी वीरांगना छवि भी प्रजा को हिम्मत दिलाती थी... वे विरोधियों-शत्रुओं की चालों को तुरंत पढ़ लेती थी, क्योंकि वे जितनी सहज-सरल शासिका थीं, उतनी ही श्रेष्ठता से राजकाज के निर्णयों का निर्वाह करती थीं... जनसेवा, कला, संस्कृति, निर्माण, साहस, समाज सुधार, सहज-सरल न्याय व्यवस्था, धर्मनिष्ठ जीवन एवं परिवार को धुरी बनाकर परिवार प्रबंधन एवं मातृशक्ति में घर-परिवार के साथ उद्यमी भाव विकसित करने का ऐतिहासिक कार्य अहिल्याबाई ने किया... तभी तो मोरोपंतजी ने उनकी जीवन झांकी पर लिखा है-
देवी अहिल्याबाई झालीस जगत्रयात तू धन्या।
न न्याय धर्म निरता अन्या कलिमाजी ऐकिली कन्या।
अर्थात् - देवी अहिल्याबाई तुम तीनों लोकों में धन्य हो, तुम्हारे जैसी न्याय और धर्मपरायण ी कलियुग में दूसरी नहीं हुई... क्या आज के शासक और नीति-नियंता ऐसे शाश्वत चरित्र से सीख लेंगे..?
(लेखक स्वदेश इंदौर के संपादक हैं)