हर दीपावली को जब हम पहले दीये की बाती को रोशन करते हैं तो हृदय में एक हलचल सी मच जाती है। यह पल सहसा ही हमें उन कहानियों की ओर मोड़ देता है जहाँ बचपन से लेकर अब तक की तमाम ज्योति यात्राएँ साथ चलती है। यह पर्व केवल स्मृति यात्रा भर ही नहीं है बल्कि इस तथ्य की भी बारम्बार पुष्टि है कि प्रकाश के सामने मनुष्य ने सदा ही सिर झुकाया है। मानव सभ्यता की समस्त गाथाओं, वैज्ञानिक खोजों और भव्य अट्टालिकाओं के निर्माण में प्रकाश की कहानी इस हद तक धँसी हुई है कि हम उसका उल्लेख करना भी प्रायः भूल जाते हैं।
दीये की टिमटिमाती लौ केवल उत्सव का प्रतीक नहीं है बल्कि मानवीय स्थिति और संवेदनाओं का दर्पण है। आदिम समय में जब दो पत्थरों को रगड़ने से पहली चिंगारी निकली होगी तो उसमें भय और विस्मय दोनों ही भाव एक साथ उभरे होंगे। उस अँधेरे कोने से जगमगाते झाड़-फ़ानूसों तक, संशय की दीवारों से विश्वास के महलों तक की यह यात्रा अपने आप में किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं है।
निस्संदेह प्रारम्भिक दौर में प्रकाश की उपस्थिति ने जंगली जानवरों से सुरक्षा प्रदान की, सर्दी से बचाव किया लेकिन इसके साथ ही उसने हमारी चेतना को भी प्रज्ज्वलित कर दिया। भौतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक रूपों में यह प्रकाश हर जगह विराजमान था। इसकी रोशनी ने संभावनाओं के अनगिनत द्वार खोल दिए। जो सबसे बड़ी खोज होने लगी, वह थी भीतर के प्रकाश की। संभवतः यही कारण रहा कि मिस्र से लेकर भारत तक, यूनानियों से लेकर मेसोअमेरिकन एज़्टेक तक, हर सभ्यता ने प्रकाश को दिव्य बनाया। सूर्य तो देव बन ही गए, उनके साथ न जाने कितने ही देशों की पौराणिक कथाओं में अग्नि के देवी-देवताओं का रोचक वर्णन मिलता है।
हर पौराणिक गाथा में प्रकाश जागरूकता है। यह भ्रम के अंधकार के विलीन होने पर उभरती स्पष्टता है। हमारे आंतरिक अप्रकाशित संसार में जब भी चेतना का नन्हा सा दीपक टिमटिमाता है, वही अंतर्दृष्टि मानव मन की एक छोटी दीपावली बन जाती है। जब हम दीया जलाते हैं, तो हम सिर्फ़ घर-दीवारों को ही रोशन नहीं करते। बल्कि हम प्रतीकात्मक रूप से अपने भीतर के उस स्याह कोने को भी रोशन कर रहे होते हैं जहाँ भय रहता है, जहाँ स्मृतियाँ छिपी होती हैं, जहाँ आत्मा संवाद की आवश्यकता महसूस करती है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रकाश सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करता है जबकि अंधकार चिंता को जन्म देता है। यह हमें उस निश्चितता से वंचित करता है जिसकी हमारे मन को लालसा होती है। प्रकाश में, चीज़ें परिभाषित होती हैं और अंधकार में विलीन हो जाती हैं। यह विलीनता हमारे सबसे बड़े भय को दर्शाती है जो है- नियंत्रण और पहचान का खो जाना। इसलिए हम अपनी सड़कों, घरों, कोने-कोने को रोशन करते हैं। प्रकाश हमारी ढाल बन हमें आश्वस्त करता है कि हम खोए नहीं हैं।
प्रकाश का प्रत्येक त्योहार, नवीनीकरण का एक कार्य है। दीपावली, हमारी आंतरिक प्रक्रिया का एक बाहरी अनुष्ठान है। हम जो दीपक द्वारों पर रखते हैं, वे चेतना की चौखट के प्राचीन रूपक हैं। घरों की सफाई करना, बिखरे हुए को व्यवस्थित करना, नए वस्त्र धारण करना- ये कार्य भावनात्मक धूल को साफ करने, आशा के लिए जगह बनाने और स्पष्टता को आमंत्रित करने की इच्छा ही है।
जब हम भक्ति भाव के साथ दीया जलाते हैं तो इस विश्वास की पुष्टि कर रहे होते हैं कि रात चाहे कितनी भी काली क्यों न हो, अच्छाई जीवन के तूफ़ानों से बचा सकती है। लेकिन सच्चा प्रकाश, अंधकार का अभाव नहीं है बल्कि बिना किसी भय के उसमें चलना सीखना है।
विज्ञान हमें बताता है कि प्रकाश हमारे मूड को नियंत्रित करता है। सूर्य का प्रकाश सेरोटोनिन को सक्रिय करता है जबकि कृत्रिम प्रकाश उसे बिगाड़ देता है। लेकिन आत्मा प्रकाश के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करती, वह अर्थ के प्रति प्रतिक्रिया करती है। खिड़की पर टिमटिमाता मिट्टी का एक दीया, हमें हज़ारों नियॉन बल्बों से अधिक गहरी शांति दे सकता है।
हम वो ज्योति रक्षक प्रजाति हैं जो दिवंगतों के लिए मोमबत्तियाँ जलाते हैं, ईश्वर के लिए दीपक जलाते हैं, और जब डरते हैं तो टॉर्च जलाते हैं। भाई-बहिन का पावन पर्व रक्षाबंधन हो या शौर्य गाथाओं में युद्ध भूमि प्रस्थान का चित्र, उनमें भी शुभकामनाओं का एक दीया सदा ही दमकता रहा है।
प्रकाश के प्रति हमारा यह आकर्षण हमारे नैतिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास की कहानी है। हम पत्थरों, मशालों से बल्बों, एलईडी तक, घी-तेल के दीयों से कृत्रिम प्रकाशिकी तक पहुँच गए हैं, लेकिन मानव हृदय अभी भी एक ज्योति के सामने घुटने टेकता नज़र आता है।
दरअसल प्रकाश की खोज करना समझ की खोज करना है। समझ कहती है कि जब तक हम बाती जलाना बंद नहीं करते, अंधकार जीत नहीं सकता। बाहर का अंधकार हमेशा रहेगा, लेकिन हम समझदारी, दया, जिज्ञासा, ज्ञान और करुणा के माध्यम से प्रकाश उत्पन्न करने की क्षमता के साथ पैदा हुए हैं। हमें इस तथ्य पर विश्वास रखना होगा कि ईमानदारी से रखी गई एक छोटी सी झिलमिलाहट भी सदियों के अंधकार को पीछे धकेल सकती है।
प्रीति अज्ञात
अहमदाबाद, गुजरात