लोकेन्द्र सिंह
संयोग देखिये कि जब भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसी समय उसे विश्व के प्रभावशाली देशों के संगठन 'जी-20Ó की अध्यक्षता का अवसर प्राप्त हुआ है। भारत को एक वर्ष के लिए जी-20 की अध्यक्षता का यह अवसर मिला है, जिसमें भारत 200 से अधिक जी-20 बैठकों का आयोजन करेगा। विभिन्न मुद्दों को लेकर होने वाली इन बैठकों में दुनियाभर से विद्वान एवं राजनयिक आएंगे। निश्चित ही भारत अपने आतिथ्य के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनके मन को आकर्षित करने में सफल रहेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने बीते वर्षों में निरंतर संपर्क-संवाद से जी-20 समूह में शामिल देशों के साथ जो संबंध विकसित किए हैं, उन्हें मित्रता का और गहरा रंग देने का भी यह अवसर है। व्यापक आर्थिक मुद्दों के साथ ही व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे ज्वलंत मुद्दों पर आयोजित होनेवाली बैठकों में जब जी-20 के प्रतिनिधि एवं विषय विशेषज्ञ आएंगे, तब वे भारत से इन मुद्दों पर सम्यक दृष्टिकोण लेकर भी जाएंगे। ये ऐसे विषय हैं, जिन पर दुनिया बात तो कर रही है, लेकिन ठोस समाधानमूलक पहल इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि समाधान की दृष्टि में सार्वभौमिक मूल्यों का अभाव है। जैसे पर्यावरण के मुद्दे पर सामर्थ्यशाली देश स्वयं तो भोगवादी प्रवृत्ति को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है परंतु विकासशील देशों से वे अपेक्षा कर रहे हैं कि कार्बन उत्सर्जन इत्यादि में कमी लाने के लिए प्रयास करें। भारत अपनी परंपरा के आलोक में उक्त विषयों पर जी-20 की बैठकों के दौरान विश्व का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। भारत ने जिस जोश एवं उत्साह के साथ जी-20 की अध्यक्षता का स्वागत किया है, उसे स्वीकारा है, उसे देखकर यह समझा जा सकता है कि वर्तमान नेतृत्व ने पहले से कोई भावभूमि तैयार कर रखी है, जिस पर खड़े होकर वह भारतीय मूल्यों के आधार पर विश्व के प्रभावशाली देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रगाढ़ करेगा। कहना होगा कि भारत के पास यह ऐसा स्वर्णिम अवसर है, जो विश्वपटल पर भारत के कल्याणकारी विचार एवं मूल्यों की पुनर्स्थापना में सहायक सिद्ध होगा।
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले समूह जी-20 की अध्यक्षता मिलने के साथ ही भारत ने सकल विश्व का मंगल करने वाली भारतीय संस्कृति का प्रसार प्रारंभ कर दिया। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के अपने एक वर्ष के कार्यकाल का केंद्रीय भाव 'वसुधैव कुटुम्बकमÓ और 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्यÓ रखा है। दरअसल, भारत दुनिया को संदेश देने का काम कर रहा है कि इस धरती पर रहनेवाले हम सब एक ही परिवार के लोग हैं, इसलिए हम सबका भविष्य एक ही है। इसलिए सबको मिलकर इस प्रकार के निर्णय करने होंगे, जिनमें सबका साझा हित हो। कहीं भी मानवता विरोधी गतिविधि चलती है, तब ऐसा नहीं मानना चाहिए कि उसका असर हम पर नहीं होगा। चूंकि हम सबके हित एक-दूसरे से जुड़े हैं, इसलिए प्रभाव पड़ना स्वभाविक है। इसको समझने के लिए रूस-यूक्रेन का युद्ध, नवीनतम और सबसे सटीक उदाहरण है। दो देशों के बीच युद्ध चल रहा है लेकिन उसका असर दुनियाभर में दिखायी दे रहा है। एक दौर था जब विश्व के बड़े देश यथा- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन इत्यादि आतंकवाद को वैश्विक मुद्दा नहीं मानते थे। भारत ने वैश्विक पटल पर यह स्थापित करने का भरसक प्रयास किया कि भले ही दुनिया को लग रहा होगा कि आतंकवाद केवल भारत के लिए समस्या है लेकिन सही मायने में यह समूची मानवता एवं दुनिया के अन्य देशों के लिए भी खतरा बनेगा। भारत की इस बात को बहुत जल्द ही दुनिया ने अनुभव कर लिया, जब अमेरिका और ब्रिटेन से लेकर फ्रांस तक आतंकवाद के हमले हुए। जी-20 में जिन विषयों पर चर्चा होने वाली है, वे सब भी ऐसे ही विषय हैं, जिनसे सबके हित प्रभावित होते हैं। जब तक उन विषयों को लेकर आम सहमति नहीं बनेगी, तब तक समाधान निकलना कठिन है। इसलिए भारत का प्रयास है कि उक्त विषयों पर आम सहमति बने। इसी दिशा में भारत यह भाव जगाने का प्रयास कर रहा है कि यह दुनिया एक परिवार है और हमारे हित-अहित साझा हैं। उल्लेखनीय है कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुम्बकमÓ का विचार भारत की संस्कृति ही रखती आई है। महोपनिषद के मंत्र- 'अयं बन्धुरयंनेति गणना लघुचेतसाम, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकमÓ- का अनुसरण करके हम सभी के लिए एक बेहतर, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण दुनिया बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के लिए जो शुभंकर जारी किया है, वह भी भारतीय मूल्यों को दुनिया में संचारित करता है। (लेखक समीक्षक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।)