प्रसंगवश: मौलाना द्वारा सपा सांसद डिम्पल यादव पर बयानबाजी का देशभर में विरोध और अखिलेश की चुप्पी के निहितार्थ
लेखक - आशीष शिंदे
आज सब चुप हो न, कल को जब कोई इस इतिहास की दुहाई दे तो बवाल मत करना
वर्तमान का घटित ही भविष्य में जाकर इतिहास बनता है। इतिहास सिर्फ इतिहास होता है। आपको अच्छा लगे या न लगे। इतिहास की कड़वी बातों पर जल भुनकर आप जमाने में आग लगा दो। बवंडर खड़े कर दो या लोकतंत्र में मिली लिबर्टी का बेजा लाभ लेकर शक्ति प्रदर्शन कर डालो। आप सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करने जैसे आपराधिक कृत्य कर दो या फिर लोगों को चुप रहने को बाध्य कर दो। इतिहास कभी नहीं बदलता। इतिहास कभी पीछा भी नहीं छोड़ता।
ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी के द्वारा डिम्पल यादव को लेकर सार्वजनिक रूप से जो कुछ कहा गया, वो इतिहास बन गया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान सांसद और यदुवंश कुल गौरव अखिलेश यादव की इस घटना पर चुप्पी भी इतिहास में दर्ज हो गई है। अखिलेश की पत्नी और सपा सांसद डिंपल के द्वारा मामले को ढांकने वाले स्टेटमेंट देना भी इतिहास में लिखा जा चुका है।
सत्ता और राजपाठ प्राप्त करने के लिए या उसे बचाए रखने के लिए लालची राजनेताओं ने आताताईयों, लुटेरों, विधर्मियों के सामने कैसे कैसे समझौते किए होंगे! ये घटना उसे भी समझने में सहायक है। अनुयाई तब भी ऐसे ही चुप रहे होंगे जैसे आज अखिलेश, डिंपल और सपा के अनुयाई हिंदू चुप हैं। चुप इसलिए हैं कि मुसलमान वोटों के बिना सत्ता सिंहासन तक पहुंचना समाजवादी पार्टी के लिए नामुमकिन है।
यहां हिंदू मुस्लिम शब्द इसलिए लिख रहा हूं, कि जिस मीटिंग में डिंपल गई थीं वह मस्जिद में हुई थी और मौलाना रशीदी ने साड़ी पहने हिंदू डिम्पल यादव की तुलना, हिजाब में वहां मौजूद मुस्लिम इकरा हसन से करते हुए डिंपल के बारे में "नंगा" शब्द इस्तेमाल किया था। ये सारा घटनाक्रम इतिहास में दर्ज हो चुका है।
मौलाना द्वारा हिंदू अपमान के साथ साथ एक महिला के अपमान में की गई बयानबाज़ी के विरोध में देश भर में तीखी प्रतिक्रिया दी जा रही है। लेकिन अखिलेश को मौलाना द्वारा उनकी पत्नी पर की गई गंदी टिप्पणियों पर आपत्ति नहीं है, आपत्ति मौलाना के विरोध पर है। वो बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं। इसी तरह दो दिन चुप रहीं डिम्पल यादव भी अपनी अंतर्रात्मा की आवाज को दबा कर पति की राजनैतिक मजबूरी, सत्ता प्राप्ति के सपने और भविष्य में राजपाठ प्राप्ति की संभावनाओं को देखते हुए लिबलिबे बयान दे रही हैं। चूंकि जब राजा रानी को ही कोई फर्क नहीं पड़ा तो सपा के सैनिक भला क्यों आग बबूला हों।
इस घटना में राजनीति का तिलस्मी चेहरा भी देखिए, कि सपा के हिंदू कार्यकर्ताओं के स्थान पर पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा से ही कुछ स्थानों पर मौलाना के विरोध में सांकेतिक विरोध कराया गया और उसका भरपूर प्रचार प्रसार हुआ। ताकि ये साबित किया जा सके कि मौलाना के बयान से तो हिंदुओं से ज्यादा तकलीफ मुसलमानों को हुई है। इतिहास में इसकी अलग तरह से व्याख्या की जाएगी कि "जब हिंदू महिला के अपमान पर सारे हिंदू चुप थे तब मुसलमान सड़कों पर विरोध कर रहा था।"
गढ़ा हुआ इतिहास (मोल्डेड हिस्ट्री) इस तरह ही लिखा जाता है।
इस वाकये से आप समझ सकते हैं कि राजपाठ प्राप्ति की लोलुपता, हवस या अधीरता आदमी को किस स्तर तक ले जाती है। सत्ता के सिंहासन को सुरक्षित रखने या उस तक पहुंचने के रास्तों में किस किस तरह के समझौते करने पड़ते हैं। जो समझौते करते हैं उन्हें फर्क कोई नहीं पड़ता। उन्हें कुल, जाति, मर्यादा, आन, बान, शान कुछ भी दिखाई नहीं देता।लेकिन इतिहास में दर्ज ऐसी बातें उठाकर ही भविष्य में कोई कुरेद देता है तो वो लोग इसे अपना अपमान समझ बैठते हैं, जो समझौते के स्थान पर कुर्बानी देने को महानता मानते। लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि जब सत्ता के लिए अस्मिता के साथ ऐसे समझौते होते हैं तब ये लोग कहां चले जाते हैं।
हिंदू अस्मिता के साथ हुई इस घटना को लेकर इतिहास वही बोलेगा, जो हो चुका। लेकिन भविष्य में कोई व्यक्ति जब इस घटना को सीख लेने के उदाहरण के तौर पर सकारात्मक सोच से भी जन समुदाय के सामने रखेगा तब जरूर कुछ लोगों की तलवारें म्यान में से बाहर आकर उनकी जुबान काटने की बातें करेंगी। ऐसे शूरवीरों की वो सारी तलवारें अभी तो म्यान में जंग से गल रही हैं, और यह भी इतिहास में लिखा जा रहा है।
राजनीति ये भी है कि इतिहास से सबक लेकर सुधार करने के बजाए, भड़को और जातिविद्वेष की लौ को भड़काकर अपनों से लड़ो। इसे ही आजकल शूरवीरता का ज़ामा पहना दिया गया है। यानी जब समझौतों से राजनैतिक लाभ मिले समझौते करो और जब भड़कने से लाभ मिले तो भड़क जाओ, कुछ लोगों के लिए यही राजनीति है। इति।