भारतीय राजनीति का काला अध्याय आपातकाल

Update: 2023-06-23 19:45 GMT

रमेश गुप्ता

आपातकाल लगने के कारण तत्कालीन सरसंघचालक माननीय श्री बालासाहेब देवरस ने संघ को भंग करने के आदेश दे दिए थे। उनका मन्तव्य इतना था कि जब संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया है तो इसकी गतिविधियां चलाना उचित नहीं है साथ ही संघ के जो कार्यकर्ता गिरफ्तार नहीं हुए थे उन्हें भी गिरफ्तारी से बचाना था। संघ की गतिविधियां सामान्यतया शाखा और बैठके होती थी। इसे बन्द कर दिया गया और कुछ नए रास्ते खोजे गए जिससे कार्यकर्ता आपस में मिल बैठ सकें। इस हेतु भजन मंडली का गठन किया गया जो किसी मंदिर में बैठकर साप्ताहिक अथवा सुविधाजनक दिवस पर होती थी। भजन गायकों, संगीतकारों एवं भक्तों के सम्मेलन प्रारम्भ हो गए। समाप्ति के पश्चात आपसी बात हो जाती थी। कुछ स्थानों पर सत्यनारायण की कथा जैसे आयोजन प्रारम्भ किए गए। संघ की शाखा में भारतीय खेल होते थे अब कबड्डी, वालीबॉल, क्रिकेट आदि के क्लब बनाए गए। संध्या अथवा सवेरे में स्पोर्ट्स क्लब गतिशील हो गए। कुछ गांवों में रामायण पाठ शुरू हो गया, जहां प्रतिदिन रामायण पाठ व आरती पश्चात प्रसाद वितरण होने लगा। नगरों में साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित की जाने लगी उसमें साहित्य चर्चा के साथ- साथ राष्ट्र चर्चा भी होने लगी। जिसमें आपातकाल, नसबन्दी और सत्याग्रह की भी दबे- छुपे बात हो जाती थी।

सायं शाखाओं के एकत्रीकरण को कबड्डी स्पर्धा, खो-खो स्पर्धा आदि में परिवर्तित कर दिया गया। कॉलेज के विद्यार्थियों के चर्चागट प्रारम्भ हो गए। जहां अन्य विषयों के साथ- साथ आपातकाल पर भी चर्चा हो जाती थी। इन मिलन समारोह से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा और मीसाबन्दियों के परिवारों को सहयोग करने हेतु कार्यकर्ताओं की टोली तैयार हो गई। जो उनके परिवारों को विभिन्न प्रकार से सहयोग करते रहे। इन गतिविधियों में महिलाएं भी पीछे नहीं रही। भजन-पूजन, सत्यनारायण अथवा अन्य त्योहारों पर मिलना-जुलना प्रारम्भ हो गया और गुप्तरूप से हस्तलिखित परचे बनना शुरू हो गए जो वितरित होते रहे। इन महिलाओं द्वारा मीसाबन्दी परिवारों को विभिन्न प्रकार से सहयोग देना प्रारम्भ किया गया। ये परिवार अपने घरों के सदस्यों की गिरफ्तारी के कारण समाज से अलग-थलग पड़ गए थे। इस आपातकाल में अनेक सदस्य काल-कवलित हो गए उनकी अन्त्येष्टि की व्यवस्था करना भी महत्वपूर्ण कार्य था। मीसाबन्दी परिवार के बच्चों को अथवा उनकी पत्नियों को भी रोजगार दिलाए गए। अनेक लोगों ने विभिन्न प्रकार से मीसाबन्दी परिवारों को सहयोग दिया जाने लगा। विशेष कर परीक्षाकाल में बच्चों को पढ़ाना, बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाना और उसका उपचार कराना। एक ओर महत्वपूर्ण कार्य था। मीसाबन्दी परिवार को पैरोल की व्यवस्था करना, उन्हें कारागार में मिलाने ले जाना और वापस उनके घरों पर छोड़ना। इस प्रकार संघ के कार्यकर्ता विभिन्न गतिविधियां चलाते रहे।आपातकाल लगते ही 25 जून की रात्रि को श्री जयप्रकाशजी, श्री मोरारजी भाई, श्री बालासाहेब देवरस व अनेक विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया गया। पश्चात श्री अटलजी, अड़वाणीजी, श्री मधुदण्डवतेजी और चन्द्रशेखरजी भी गिरफ्त में आ गए। श्रीमती इन्दिराजी का क्रोध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बादलों जैसा फट पड़ा। सम्पूर्ण देश में संघ के संघचालकों, कार्यवाहों एवं प्रचारकों को चुन-चुनकर गिरफ्तार किया गया। इसके साथ ही संघ के अनुशांगिक संगठनों जैसे विश्व हिन्दू परिषद, वनवासी कल्याण परिषद, भारतीय मजदूर संघ और विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई। श्रीमती इन्दिराजी को पता था कि लोक संघर्ष समिति द्वारा जो सत्याग्रह चलाया जा रहा है उसके पीछे संघ के हजारों कार्यकर्ताओं का योगदान है। अत: उन्होंने बड़ी निर्दयतापूर्वक संघ के सामान्य कार्यकर्ताओं, संघ से सहानुभूति रखने वालों एवं जो कभी संघ की शाखाओं में गए हो ऐसे लोगों को भी गिरफ्तार करने का सिलसिला चालू रखा। यद्यपि संघ ने त्वरित निर्णय लेकर अपनी दैनन्दिन गतिविधियों को बन्द कर दिया था और अपने प्रचारकों को भूमिगत होने के निर्देश भी दे दिए थे। इस कारण सम्पूर्ण देश में कार्यरत 1356 प्रचारकों में से केवल 189 ही गिरफ्तार हो पाए थे। शेष 1167 प्रचारक भूमिगत होकर जनजागरण व कारागार में निरुद्ध बन्दी कार्यकर्ताओं के परिवार की देखभाल करते रहे।

उन दिनों संघ की ओर से आदरणीय माधवरावजी मुले एवं श्री दत्तोपंतजी ठेंगड़ी भूमिगत होकर आन्दोलन की बागडोर सम्भालते रहे। देशभर में भूमिगत प्रचारकों ने संचार व्यवस्था आन्दोलन की रूपरेखा, कारागार में बन्द और बाहर के विपक्षी नेताओं से सम्पर्क सूत्र स्थापित कर लिए थे। उन दिनों गुजरात में श्री बाबूभाई पटेल की सरकार थी। अत: अहमदाबाद राष्ट्रीय गतिविधियों का केन्द्र बन गया था। तत्कालीन प्रान्त प्रचारक श्री लक्ष्मणरावजी इनामदार व दक्षिण विभाग प्रचारक श्री केशवरावजी देशमुख के मार्गदर्शन में श्री नरेन्द्र भाई मोदी और उनके अनेक साथियों ने विपक्षी नेताओं के आवागमन, रहवास, बैठक एवं गुप्तरूप से प्रकाशन एवं सम्पूर्ण देश में वितरण की व्यवस्थाओं को सम्भाल लिया था। इसका विस्तृत विवरण श्री नरेन्द्रभाई मोदी द्वारा लिखित गुजराती पुस्तक संघर्ष मा गुजरात में वर्णित है। यहां अपने मालवा क्षेत्र में संघ के कार्यकर्ताओं का जाल बिछा हुआ था। बचे हुए प्रचारकों को स्थान बदल कर कार्य करने का निर्देश देने से यह त्वरित लाभ हुआ कि वे गिरफ्तार नहीं हो सके। इन्दौर की पुलिस रतलाम अथवा भोपाल के प्रचारकों को नहीं जानती थी और भोपाल, रतलाम, मन्दसौर आदि स्थानों की पुलिस शाजापुर, देवास, भोपाल अथवा नीमच के प्रचारकों को नहीं जानती थी। दूसरा सबसे बड़ा कारण यह भी था कि ये सभी प्रचारक प्रसिद्धि परांमुखता से दूर थे। संघ में प्रचारक को मार्गदर्शक माना जाता है। पदाधिकारी नहीं होते हैं अत: उनके विषय में न तो समाचार-पत्रों में और न ही अन्य किसी स्थान पर कुछ छपता है। अब इन सभी ने स्थान बदल कर, धोती-कुर्ता छोड़कर और अपनी बोली में परिवर्तन कर कार्य प्रारम्भ कर दिया। इस कारण इनको पहचानना मुश्किल हो गया था। कुछ लोगों ने पेन्ट- बुशर्ट पहना, कुछेक कमीज-पायजामें में दिखाई देने लगे। मूंछों वालों ने क्लीन शेव और बिना मूंछों वालों ने कटारेदार बड़ी-बड़ी मूंछे बढ़ा ली। कुछ प्रचारक दाढ़ीधारक बन गए तो कुछ बुलगानिनकट दाढ़ी रखना प्रारम्भ कर दिया था। यहां तक की सरदार जैसी दाढ़ी व वेशभूषा बनाई और पंजाबी में बात करना भी सीखा। कुछ समय पूर्व हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी का समाचार-पत्रों में सरदार वेश में चित्र प्रकाशित हुआ था। वास्तव में वे उन दिनों अहमदाबाद में प्रचारक थे और भूमिगत होकर अनेक गतिविधियां संचालित कर रहे थे। इन सभी प्रचारकों ने मीसाबन्दियों के परिवारों से सम्पर्क करना प्रारम्भ कर दिया था। प्रारम्भ में कुछ परिवारों ने इनसे दूरी बनाकर रखी थी कि आप लोगों के कारण हमारे बच्चे मीसा में बन्द कर दिए गए। (लेखक मीसाबंदी एवं स्वदेश के पूर्व संचालक हैं)

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