मैं एक गड्ढा हूं।
सड़क पर पड़ा हुआ, अनदेखा, अनचाहा, अनाथ।
मुझे किसी भगवान ने नहीं बनाया, ना ही मैं किसी कारीगर की कला का नमूना हूं।
मैं पैदा हुआ हूं भ्रष्टाचार की कोख से, और पला हूं प्रशासन की लापरवाही की गोद में।
हर रोज लाखों लोग मेरे ऊपर से गुजरते हैं, गालियां देते हैं, नाराज होते हैं।
कुछ मुझे देख कर डरते हैं, कुछ झुंझलाते हैं…
लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि मैं क्यों हूं, कैसे हूं, और किसने मुझे यहां छोड़ा।
मैं नहीं, मेरा जन्म करने वाले दोषी हैं...
मैं उन ठेकेदारों का नतीजा हूं, जिन्होंने सड़क बनाने के नाम पर बजट तो डकार लिया, पर निर्माण अधूरा छोड़ दिया।
मैं उन अधिकारियों की लापरवाही का जीता-जागता सबूत हूं, जिनके फाइलों में तो सब कुछ सही है, लेकिन ज़मीन पर मैं अब भी जिंदा हूं।
मैं सब जानता हूं।
मैंने देखा है कैसे मेरी वजह से बाइकें फिसलीं, कारें पलटीं, जानें गईं।
मैंने बच्चों को हँसते-खेलते देखा, फिर उन्हें गिरते, रोते और घायल होते देखा।
कभी-कभी सोचता हूं,
क्या मेरे ‘माता-पिता’ को मुझ पर शर्म आती है जब वे मेरे ऊपर से गुजरते हैं?
या वो भी आम आदमी की तरह मुझे कोसकर आगे बढ़ जाते हैं?
मैं कागज़ों में मिटाया गया, ज़मीन पर अब भी जिन्दा हूं
सरकारी रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2020 में भारत में 3,564 लोग गड्ढों की वजह से मारे गए।
2021 में 3,625 और 2022 में 4,446...
लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा भयावह है।
मुझे पता है, क्योंकि हर दिन, मैं किसी ना किसी की ज़िंदगी तबाह करता हूं।
मुझे देखकर शायद कुछ डॉक्टर खुश होते होंगे
"अगर ये न होता तो घायल मरीज कहां से आते?"
क्या ऐसा सोचते होंगे?
सतना का सच: तीन बच्चियों की मौत का जिम्मेदार भी मैं ही हूं
13 अप्रैल 2025, सतना जिले की वो काली दोपहर मैं कभी नहीं भूल सकता।
राजकुमार चौरसिया की तीन बेटियां, चंचल, प्यारी, नन्हीं जिंदगियां —
सड़क निर्माण के लिए खोदे गए एक गड्ढे में डूब गईं।
बारिश ने मुझे पानी से भर दिया, और आम तोड़ते हुए वे मासूम बच्चियां उसमें गिर गईं।
मैं उन्हें निगल गया।
मुझे ठीक से भरा नहीं गया था, न ही कोई चेतावनी बोर्ड था, न कोई सुरक्षा।
उनकी मौत की जिम्मेदारी भी मेरी नहीं, बल्कि उन लोगों की है जिन्होंने मुझे अधूरा छोड़ा।
मैं मरना चाहता हूं… पर कोई मेरी हत्या नहीं करता
मैं चाहता हूं कि मुझे मिटा दिया जाए।
मुझे भर दिया जाए, ताकि कोई और परिवार बर्बाद न हो।
कोई और मां अपने बच्चे को मेरी वजह से न खोए।
लेकिन नहीं…
मुझे जिंदा रखा जाता है, बार-बार, हर गली-मोहल्ले, हर शहर-गांव में।
मैं एक गड्ढा हूं, लेकिन सिर्फ एक गड्ढा नहीं...
मैं हूं एक चीख़, खराब व्यवस्था की, भ्रष्ट नीति की, प्रसाशन की नाकामी की।