अटल कार्यकर्ता,निष्णात प्रशासक और संवेदनशीलता का समुच्चय
जन्मदिन पर विशेष
डॉ. अजय खेमरिया
नरेंद्र सिंह तोमर का वैशिष्ट्य केवल नरेंद्र मोदी सरकार के सफलतम कृषि मंत्री के रूप में ही नही है अपितु उनके व्यक्तित्व के बहुआयामी फलक को हर भाजपा को कार्यकर्ता को समझने की आवश्यकता है।वस्तुत: विधायक,सांसद और मंत्री होना इतना महत्वपूर्ण नही है जितना उत्कर्ष के शिखर पर पहुँचकर भी कार्यकर्ता बना रहना है। नरेंद्र सिंह तोमर भाजपा ही नहीं देश के ऐसे ही बिरले नेताओं में हैं जो हर दायित्व के साथ खुद को कार्यकर्ताभाव के साथ संयुक्त रखने में सफल रहे हैं।
देश के नीति निर्माण में नरेंद्र सिंह तोमर की प्रमुख भागीदारी इस गौरवमयी और अनुकरणीय सन्देश को भी समाज जीवन में प्रतिस्थापित करती है कि राजनीति केवल धूर्तता, बेईमानी, अंध प्रतिस्पर्धा और धनी मानी पृष्ठभूमि से ही निर्धारित नहीं होती है, बल्कि ईमानदारी और अनुशासन भी इसका अहम शाश्वत पथ है। ग्वालियर की धरती ने भारत की संसदीय परम्परा को नायाब नगीने दिये हैं अटल जी, माधवराव सिंधिया, राजमाता सिंधिया की महान संसदीय परम्परा को नरेंद्र सिंह तोमर ने जिस खूबसूरती और विशिष्टता के साथ आगे बढ़ाया है वह अंचल लिए गौरवान्वित करने वाला लोक विमर्श भी है।
इसे इस अर्थ में भी समझने की जरूरत है कि कैसे एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का युवा अपने ध्येय के लिए समर्पित भाव से आगे बढ़ता है और यह संसदीय व्यवस्था कैसे इसे अपने आँचल से संपुष्ट करते हुए देश के सियासी नवरत्नों में स्थापित कर देती है। सिफ़र् सत्ता के लिए सियासत का वरण करने वाले नए लोगों के लिए नरेंद्र सिंह तोमर एक रोल मॉडल भी हैं। लेकिन इस मॉडल में कोई शॉर्ट कट नहीं है, एक पूरी साधना है, एक अनुशासन है, एक वैचारिक अधिष्ठान है और इन सबके साथ संयम एवं संतुलन का एक अति विशिष्ट समावेश भी। नरेंद्र सिंह तोमर होने का मतलब अपने आप में एक संगठन शास्त्र भी है। जो यह बुनियादी सीख देता है कि यह जीवन केवल सत्ता के लिए नहीं बल्कि समाज के लिए भी समानांतर रूप से उपयोगी है। जब आप समाज के लिए अपने संगठन के माध्यम से स्वयं को समर्पित कर देते है तब यह समाज और संगठन व्यवस्था खुद आपको नरेंद्र सिंह तोमर बना देती है। मप्र की सियासत में वे अकेले ऐसे नेता हैं जिनका कोई राजनीतिक शत्रु नहीं हैं। यही उनकी समन्वयक की असली निशानी है। यही उनका मौलिक वैशिष्ट्य है जो उन्हें अद्भुत सा बनाता है। यही एकमात्र कारण है कि दिल्ली दरबार में एक से एक एकेडेमिक्स पृष्ठभूमि वाले नेताओं के इतर दुनिया के सबसे लोकप्रिय और ताकतवर नेताओं में एक नरेंद्र मोदी को ग्वालियर के आर्यनगर की तंग गली से आया यह शख्स पसन्द आता है।
हर कठिन टास्क को बगैर तनाव और शोर शराबे के अंजाम तक पहुंचाने की निष्णात विद्या में नरेंद्र सिंह के आगे कोई नहीं टिकता है, फिर चाहे मामला कृषि और ग्रामीण विकास को नया जनोन्मुखी चेहरा देना हो या सियासी कूटनीतिक ऑपरेशन। हर मोर्चे पर नरेंद्र सिंह ने खुद को प्रमाणित किया है। वे पार्टी के ऐसे नेता हैं जो हर काम को आज भी कार्यकर्ता भाव के साथ करते है। जरा सोचिये नरेंद्र सिंह आज जिस ताकतवर मुकाम पर हैं वहाँ होकर कोई अहंकार और गलतफहमी का शिकार क्यों न हो? लेकिन नरेंद्र सिंह अगर इस सबसे से अछूते हैं तो इसके पीछे उनकी मजबूत वैचारिकी और जड़ों से जुड़ाव ही है।
वैचारिक दृढ़ता ही उन्हें अपने कार्यकर्ता भाव को खुद के विराट हो चुके व्यक्तित्व से ओझल नहीं होने देती है पिछले चार विधानसभा चुनावों में लोगों ने उन्हें पार्टी के संकटमोचक की भूमिका में देखा। 2008 और 2013 में उनके संगठन कौशल की मिसाल आज देश भर में नजीर के तौर पर दी जाती है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह कहना कि "हम दो जिस्म एक जान हैं" असल में सत्ता और संगठन के समन्वय का एक अद्वितीय दर्शन ही है। यह साम्य ठीक वैसा ही जैसा मोदी जी और अमित शाह में चुनावी अभियानों में दिखता रहा है। यानी सत्ता और संगठन दोनों के लिए नरेंद्र तोमर ने एक नया व्याकरण रचा जिसे आज की उनकी मौजूदा पोजीशन के निर्धारक तत्व के रूप में समझने की भी आवश्यकता है। आप उनकी मुसकुराहट से उनकी प्रसन्नता का आकलन तो कर सकते हैं लेकिन किसी भाव भंगिमा से आप उनकी नाराजगी का अंदाजा नहीं लगा सकते। इसका मतलब यह नहीं है कि सियासत की निर्ममता औऱ बदले के गुर उनसे अछूते हैं।
अटल जी ने ग्वालियर मेले में घूमते हुए ये पंक्तियां लिखी थीं-
भीड़ में खो जाना, यादों में डूब जाना
अस्तित्व को अर्थ देता है, जीवन को सुगन्ध देता है
देश के ग्रुप ऑफ मिनिस्टर के सदस्य नरेंद्र सिंह आपको अपने इलाके की चाय की दुकानों या पानी पूरी के ठेले पर आनंद तलाशते मिलें तो वे अपने अस्तित्व को अर्थवान और जीवन को अपनत्व से सुगन्धित करते ही दिखते है। ऐसे सुगन्धित जीवन की खुशबू अनवरत बिखरती रहे। आज जन्मदिन पर सबकी यही कामना है।