आतंक का एलीट क्लास

डॉ. कृपाशंकर चौबे

Update: 2025-11-16 09:22 GMT

विश्व मानवता सदियों से आतंक की भयावह परछाइयों से त्रस्त रही है। कभी यह आतंकवाद अज्ञानता, अशिक्षा और गरीबी की उपज माना जाता था, किंतु इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आतंकवाद का रंग-रूप पूरी तरह बदल गया है। अब यह समाज पर उच्च तकनीकी शिक्षित और कट्टर जिहादी विचारधारा से भरे मस्तिष्कों का कहर बनकर टूट रहा है। आधुनिक आतंकवाद की सबसे चिंताजनक प्रवृत्ति यह है कि इसमें उच्च शिक्षित और तकनीकी रूप से सक्षम युवाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। ये आतंकवादी विश्व की शांति और स्थिरता को किसी भी हद तक रौंदने पर आमादा हैं। इंजीनियर, डॉक्टर, आईटी विशेषज्ञ और शोधकर्ता अपने उच्च ज्ञान के सहारे साइबर हमले, डिजिटल फंडिंग और डिजिटल ब्रेनवॉशिंग जैसी गतिविधियों से आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।

थोड़ा पीछे जाएँ तो सितंबर 2001 में अमेरिका पर किए गए ट्विन टावर हमले का मास्टरमाइंड मोहम्मद अट्टा जर्मनी से अर्थन प्लानिंग की पढ़ाई करके आया था और उसके कई सहयोगी—जैसे हानी हंजूर, ज़ियाद जर्राह—विमानन प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके थे और योजना को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अल-कायदा से प्रशिक्षण प्राप्त था।इसी प्रकार 2005 के लंदन बम धमाके का मुख्य आरोपी मोहम्मद सिद्दीक़ ख़ान ब्रिटेन में शिक्षक था। वर्ष 2016 के बांग्लादेश धमाकों में शामिल अधिकांश आतंकवादी प्राइवेट यूनिवर्सिटी से पढ़कर निकले थे। नवंबर 2025 के फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल और दिल्ली कार ब्लास्ट का मास्टरमाइंड मुजम्मिल गनई एक डॉक्टर है तथा उसके सभी सहयोगी भी उच्च शिक्षित हैं।

स्पष्ट है कि आतंकवाद और चरमपंथ केवल अशिक्षा और गरीबी का नतीजा नहीं हैं। चूँकि पढ़े-लिखे लोगों को ट्रैक करना तथा पहचानना अपेक्षाकृत कठिन होता है, ऐसे लोगों पर सामान्य सामाजिक निगरानी भी नहीं रहती, अतः शिक्षित आतंकवादियों को अनुकूल वातावरण आसानी से उपलब्ध हो जाता है। कट्टरपंथी संगठन सोशल मीडिया, एन्क्रिप्टेड ऐप्स और ऑनलाइन सामग्री द्वारा पढ़े-लिखे, उद्देश्यहीन युवाओं को ‘मिशन विशेष’ के आकर्षण के जाल में फँसा कर उन तक आसानी से पहुँच बना लेते हैं। हाल ही में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ ने अपना कार्य विस्तार करते हुए मसूद अजहर की बहन सादिया अजहर को ‘जमात-उल-मोमिनात’ का प्रमुख बनाया है। इस विंग का उद्देश्य महिलाओं को इस्लामी कर्तव्यों और जिहाद के प्रति जागरूक करके मुजाहिदीन बनाना है। भारत में इस आतंकी महिला विंग का नेतृत्व डॉक्टर शाहीन सईद को सौंपा गया है।

क्या अब भी यह समझना कठिन है कि महिलाओं को डिजिटल माध्यमों से ब्रेनवॉश करके उन्हें स्लीपर सेल या फंडिंग एजेंट के रूप में उपयोग में लाते हुए भारत में एक नए प्रकार के जिहाद की घोषणा कर दी गई है? इससे यह भी सिद्ध होता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मतलब कट्टरपन से बचाव नहीं है; बल्कि यह कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के लिए एक वैश्विक, सहज और सुविधाजनक मार्ग का निर्माण कर देता है। इस एलीट आतंकवाद का लक्ष्य समाज में भय पैदा करना, उसे बाँटना, कन्वर्जन एवं मतांतरण के लिए शांति तथा स्थिरता को भंग करना, तथा समाज में जातीय और धार्मिक विभाजन को बढ़ाकर उसकी सामाजिक बुनावट को कमजोर करना है। आतंकी हमले न केवल आंतरिक अशांति का कारण बनते हैं, बल्कि इससे देशों के बीच अविश्वास बढ़ता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंध, व्यापार, पर्यटन और आर्थिक सहयोग कमजोर पड़ते हैं।

इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जहाँ एक ओर भारत वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल करने की ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर सुशिक्षित आतंकवाद उसकी कमर तोड़ रहा है। ट्विन टावर से लेकर दिल्ली धमाके तक सभी घटनाओं का समान पैटर्न यह बताता है कि आतंकवादी अब अज्ञानता से नहीं, बल्कि ज्ञान के गलत दिशा में मुड़ने तथा एक कट्टरपंथी विचारधारा विशेष से संचालित हो रहे हैं। भारत की आंतरिक गतिकी सदा ही समावेशी संस्कृति के निर्माण तथा उसके संरक्षण-पोषण की रही है। ऐसे में एक वर्ग विशेष द्वारा उसकी आंतरिक शांति में बारंबार खलल डालने के प्रयासों का उचित उपाय करने का समय अब आ चुका है।

(लेखक किशोर न्याय बोर्ड सदस्य तथा स्वतंत्र लेखक हैं)

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