Supreme Court: बिहार में SIR की टाइमिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, बोला - थोड़ी देर हो गयी
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नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। गुरुवार को इस विषय पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा - क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने का अधिकार है, अपनाई गई प्रक्रिया और इस प्रक्रिया का समय।
अदालत ने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि, 'यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर के तहत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको जल्दी कार्रवाई करनी चाहिए थी, अब थोड़ी देर हो गयी है। बिहार में SIR को नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है?'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं, चुनाव आयोग कह रहा है कि वह 30 दिनों में पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करेगा। उन्होंने कहा कि वे आधार पर विचार नहीं करेंगे और वे माता-पिता के दस्तावेज़ भी मांग रहे हैं। वकील का कहना है कि यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि उसने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया इतनी देर से क्यों शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन क्या इसे आगामी चुनाव से महीनों पहले ही शुरू कर देना चाहिए था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पूरा देश आधार के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि आधार नहीं लिया जाएगा। सिंघवी का दावा है कि यह पूरी तरह से नागरिकता की जाँच करने की प्रक्रिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है वह लोकतंत्र की जड़ों और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान करने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं।
चुनाव आयोग के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और अगर मतदाता ही नहीं हैं तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को कानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते।