परिवार में तीन बच्चे जरूरी: संघ संभालता है सब कुछ; यह सोचना पूरी तरह गलत, शताब्दी समारोह में बोले भागवत
Mohan Bhagwat in RSS Centenary Celebrations : दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के 100 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनसंख्या नीति, शिक्षा, संस्कृत, और अखंड भारत जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि देश की जनसंख्या को संतुलित और पर्याप्त रखने के लिए प्रत्येक परिवार में तीन बच्चे होने चाहिए। सरसंघचालक भागवत ने यह भी जोर देकर कहा कि संस्कृत का ज्ञान भारत की पहचान को समझने के लिए जरूरी है और शिक्षा में गुरुकुल प्रणाली को शामिल करना चाहिए। बीजेपी अध्यक्ष चुने जाने को लेकर मोहन भागवत ने कहा कि यह सोचना पूरी तरह ग़लत है कि संघ सब कुछ संभालता है। अगर हमें ऐसा करना होता, तो क्या इसमें इतना समय लगता?
सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारत की जनसंख्या नीति का जिक्र करते हुए कहा कि 1998 और 2002 में बनी नीति में स्पष्ट है कि किसी भी समुदाय की जनसंख्या दर 2.1 से कम नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “2.1 का मतलब है कि प्रत्येक परिवार में तीन बच्चे होने चाहिए। इससे माता-पिता और बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रहता है, और देश की जनसंख्या भी संतुलित रहती है।” भागवत ने सुझाव दिया कि हर नागरिक को तीन बच्चों पर विचार करना चाहिए ताकि जनसंख्या नियंत्रित और पर्याप्त रहे।
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने अखंड भारत को एक सच्चाई बताया और कहा कि यह केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि भारत की वास्तविकता है। उन्होंने RSS के पूर्व प्रमुख एम.एस. गोलवलकर (गुरुजी) का जिक्र करते हुए कहा कि संघ ने विभाजन का विरोध किया था, लेकिन उस समय संगठन की ताकत कम थी। विभाजन रोकने के लिए कई कोशिशें की गईं, लेकिन सफलता नहीं मिली।
सरसंघचालक मोहन भागवत ने शहरों के नामकरण पर चल रही बहस पर कहा कि आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों या सड़कों के नाम नहीं होने चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया, “मैंने मुस्लिम नामों का विरोध नहीं कहा। वीर अब्दुल हमीद और अब्दुल कलाम जैसे नाम होने चाहिए।” जातिगत आरक्षण पर उन्होंने संविधान सम्मत आरक्षण का समर्थन करते हुए कहा कि दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि के अनुसार, समाज के कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने के लिए सभी को मदद करनी चाहिए।
शिक्षा पर बात करते हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने नई शिक्षा नीति (NEP) की तारीफ की और कहा कि इसमें पंचकोशीय शिक्षा का विचार शामिल है, जिसमें कला, खेल, और योग को महत्व दिया गया है। उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति को कला का ज्ञान होना चाहिए। संगीत ऐसा हो जो सभी को भाए।” संस्कृत को बढ़ावा देते हुए उन्होंने गुरुकुल प्रणाली को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की वकालत की। भागवत ने कहा, “भारत की पहचान को समझने के लिए संस्कृत जरूरी है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि बाध्यता से विरोध पैदा होता है।”
सबकुछ संघ नहीं तय करता
बीजेपी अध्यक्ष चुने जाने को लेकर सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि इस सवाल पर कि सब कुछ संघ तय करता है, यह पूर्णतः गलत बात है। मतभेद हो सकते हैं, मनभेद नहीं हो सकता है। सब कुछ संघ तय करता है, यह बिल्कुल गलत बात है, यह नहीं हो सकता है। मैं शाखा चलाता हूं तो मैं इसका एक्सपर्ट हूं। लेकिन जो राज्य चला रहे हैं वो उस फील्ड में एक्सपर्ट हैं। इसलिए हम तय नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ सलाह दे सकते हैं। अगर हम तय करते तो इतना समय लगता क्या? टेक योर टाइम...