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शॉर्टफिल्म संडे में छा रहे ग्वालियर के यतीन्द्र चर्तुवेदी

विवेक पाठक

Update: 2020-08-02 01:15 GMT

आकाशवाणी ग्वालियर के अधिकारी रहे यतीन्द्र चतुर्वेदी जी आवाज के जादूगर तो हैं ही इन दिनों अभिनय की पिच पर भी जमकर हाथ आजमा रहे हैं। पहले शार्ट फिल्म संझा से उन्होंने शुरुआत की और अब संडे शॉर्ट फिल्म से वे रंग जमा रहे हैं। यह फिल्म, इसका विषय और इसमें यतीन्द्र जी की अदाकारी खूब पसंद की जा रही है। इस फिल्म में रिटायरमेंट के बाद जीवनसाथी के चले जाने के विछोह पर बात की गई है तो ललित के किरदार में यतीन्द्र चतुर्वेदी ने संदेश दिया है कि सुख के साथ दुख भी आते हैं मगर जीवन कभी खत्म नहीं होता। जीवन मूल्यवान है इसलिए इसे खुलकर जीना चाहिए। गम आ भी जाए तो हंसने और मुस्कुराने के मौके निरंतर तलाशने चाहिए।

यतीन्द्र चतुर्वेदी की की यह फिल्म स्वर्गीय संदीपन विमलकांत नागर जी ने साकार की है। वे फिल्म के निर्देशक के साथ पटकथा लेखक रहे हैं। संदीपन जी की फिल्म निर्माण की पारी काफी लंबी रहने वाली थी और यह तो केवल उनके फिल्म निर्माण की शुरुआत थी मगर काल पर किसी का वश नहीं चला। प्रख्यात फिल्म पटकथा लेखक डॉ. अचला नागर के पुत्र संदीपन विमलकांत बीच सफर से दुनिया से चले गए। संदीपनजी वरिष्ठ थियेटर कलाकार के थे। उन्होंने स्वास्तिक रंग मंडल मथुरा की जिम्मेदारी खूब जिम्मेदारी से निभाई एवं अनेक नाटकों का सफल मंचन किया। उन्होंने मथुरा में रहते हुए नाटक एवं रंगमंच को निरंतर समृद्ध किया। उनके भाई सिद्धार्थ नागर भी फिल्म लेखन के क्षेत्र में मुंबई में काम कर रहे हैं। मां अलका नागर की तो फिल्म जगत में राष्ट्रीय पहचान रही है। इसके बाबजूद स्वर्गीय संदीपनजी का मथुरा से मोह नहीं छूटा एवं वे मुंबई की जगह मथुरा में ही अपने रंगमंच एवं थियेटर के लिए डटे रहे। वे एक उत्कृष्ट अभिनेता थे।

तिग्मांशु धूलिया ने जब मुरैना के एथलीट पान सिंह तोमर के बीहड़ में उतरने पर फिल्म बनाई तो हमें संदीपन जी भी इस फिल्म में दिखाई दिए। जब पान सिंह तोमर की जमीनी विवाद पर अपने चचेरे भाइयों के साथ पंचायत लगी थी तो गांव में कलेक्टर पहुंचे थे। कलेक्टर के उस किरदार में और कोई नहीं संदीपन विमकलकांत नागर ही थे। जिन्होंने कुछ मिनिटों के संवाद से ही फिल्म में अपनी छाप छोड़ दी थी। संदीपन जी ने अपने अपने मथुरा के पुराने मित्र यतीन्द्र चतुर्वेदी को पहले संझा फिल्म में भी मौका दिया था। यतीन्द्र बताते हैं कि शु्रति पुरी, संदीपनजी आदि के साथ यह फिल्म बुजुर्गों के अवसाद को सामने लाने के कारण चर्चा में रही। फिल्म में यतीन्द्र चतुर्वेदी बुजुर्ग मित्र को हौंसला देते दिखे थे। संडे इस प्रयास की अगली कड़ी है जो सकारात्मकता का संदेश देती है। इस फिल्म को बहुत ही रोचकता से फिल्माया गया है। फिल्म में हमें यतीन्द्र चतुर्वेदी के साथ शु्रति पूरी, राजेश श्रीवास्तव की शानदार अदाकारी के फिर से दीदार होंगे। नैनीताल और मथुरा में शूट हुई इस फिल्म में बेहतर अभिनय के लिए यतीन्द्र चतुर्वेदी जी और उसकी टीम को बारंबार बधाई। 

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