पत्नी कैंसर से पीडि़त, सिर पर बच्चों की जिम्मेदारी, जान जोखिम में डालकर कर रहे ड्यूटी

कोरोना महामारी के साथ पुलिस के योद्धाओं ने कैसे किया सामना

Update: 2020-05-23 13:38 GMT

ग्वालियर, न.सं.। पत्नी कैंसर की बीमारी से जूझ रही है। घर पर बच्चे अकेले हैं। तो किसी पुलिसकर्मी का अपने परिवार से तीन माह से सम्पर्क ही नहीं हुआ। बावजूद इसके कोरोना महामारी में शहर के जांबाज अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे और लगातार ड्यूटी कर लोगों की सुरक्षा करते रहे। हम यहां कुछ ऐसे ही जांबाजों की चर्चा कर रहे हैं।

गोला का मंदिर थाने में पदस्थ उपनिरीक्षक एच.एस. भदौरिया मूलत: शुक्लपुर थाना अटेर भिंड के रहने वाले हैं। सेना की एएससी कोर से सेवानिवृत्त श्री भदौरिया का पुलिस की नौकरी में आज भी जोश देखने लायक है। पत्नी प्रतिमा कैंसर की बीमारी से ग्रसित हैं और वह इस समय अपने मायके में हैं। इधर उपनिरीक्षक भदौरिया कोरोना महामारी में दो माह से भी ज्यादा समय से लगातार ड्यूटी कर रहे हैं। घर की परेशानियों और पत्नी के चौथे चरण में पहुंच चुके रोग को दरकिनार करते हुए पुलिस के इस जांबाज ने कभी भी ड्यूटी के दौरान अपने चेहरे पर थकान का ऐहसास नहीं होने दिया। जो भी आदेश मिला उसे पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ पूरा कर रहे हैं। वे ड्यूटी करने में अपने घर की परेशानी कभी आड़े नहीं आने देते। जबकि बेटा विजयप्रताप बीएसपी द्वितीय वर्ष और बेटी पारूल बाहरवीं में अध्यनरत हैं और उनके पास ही मुरार सीपी कॉलोनी में साथ रहते हैं। दोनों बच्चों के लिए श्री भदौरिया स्वयं ही खाना बनाते हैं और खिलाने के बाद ड्यूटी पर समय से पहुंचते हैं। उनका कहना है कि ड्यूटी हमारा कर्तव्य है, उसे पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। पत्नी को मायके में इसलिए छोड़ दिया कि मैं अभी कोरोना ड्यूटी में उनका ख्याल नहीं रख सकता। जबकि बच्चों की पढ़ाई है। श्री भदौरिया के वृद्ध माता-पिता गांव में अकेले हैं। पुलिस के ऐसे जांबाजों की हमें ड्यूटी के प्रति फर्ज की कंठस्थ गले से हौसला अफजाई करना चाहिए, जो जीवनसंगिनी के गंभीर रोग से जंग लडऩे, वृद्ध माता-पिता के अकेले रहने के बाद भी अपने फर्ज से पीछे नहीं हट रहे।

तीन माह से परिवार से मोबाइल पर हो रही बात-

कोतवाली थाने में पदस्थ उपननिरीक्षक जेपी सिंह टीमकगढ़ के निवासी हैं। 22 मार्च को जब लॉकडाउन की घोषणा उस समय वह ड्यूटी पर ही तैनात थे। जेपी सिंह को तीन माह से भी ज्यादा समय हो गया वह अपने घर नहीं गए हैं। उनका कहना है कि कोरोना संक्रमण के दौरान ड्यूटी से फुर्सत ही नहीं मिल पा रही है। वैसे भी अभी हमारी जरूरत लोगों की रक्षा करना है। घर तो आज नहीं कल चले ही जाएंगे लेकिन फर्ज और ड्यूटी पहले है। परिवार से मोबाइल पर ही बात कर लेते हैं। जब उनसे परिवार की समस्याओं के बारे में पूछा तो हंसते हुए कहा कि समस्याएं तो लगी रहती हैं, लेकिन ऐसे समय बार-बार नहीं आते। अभी हमारे अधिकारियों को हमारी जरूरत है।

पिता को कैंसर, अवकाश लेने से किया इंकार-

जनकगंज थाने में आरक्षक कमल सिंह बैच नम्बर 2383 का भी कोरोना संक्रमण के दौरान ड्यूटी करने का जज्बा देखने लायक है।इमलिया दतिया के रहने वाले कमल के पिता कोकसिंह को 26 मार्च को ब्लेडर में समस्या होने पर उन्होंने ग्वालियर बुलवा लिया। चिकित्सक को दिखाने और जांच के बाद पता चला कि पिता को कैंसर है। कमल से थाना प्रभारी प्रीति भार्गव ने अवकाश लेने की बात कही लेकिन आरक्षक कमल ने यह कहकर मना कर दिया कि इस समय थाने को मेरी आवश्यकता है। कमल ने बताया कि वह सुबह नौ बजे पिता की कीमोथैरेपी कराने जाते हैं और दोपहर बारह बजे लौटते हैं। फिर दोपहर दो बजे से रात 12 बजे तक लगातार ड्यूटी करते हैं। ऐसे आरक्षक कमल सिंह पर भी पुलिस को नाज है, जिसने कोरोना संक्रमण काल में जी-जान से अपना फर्ज निभाते हुए ड्यूटी की।

कोरोना संक्रमण काल में ऐसे कई पुलिसकर्मी हैं, जो प्वाइंटों पर चौबीस घंटे तैनात हैं। कुछ पुलिस कर्मियों के परिवार में कैंसर सहित अन्य गंभीर रोग होने के बाद भी उन्होंने अवकाश नहीं लिया।

नवनीत भसीन

पुलिस अधीक्षक 

कोरोना वैश्विक महामारी में पुलिस के जवान मुस्तैदी के साथ हर मोर्च पर तैनात रहे और इनके योगदान काफी सराहा गया। ग्वालियर पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन ने भी कोरोना संक्रमण के दौरान शहर की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद रखा और अपने अधीनस्थ अधिकारियों व कर्मचारियों की हौसला अफजाई भी की। उनकी यही खासियत का महत्व उस समय ज्यादा बढ़ जाता है, जब अपने ताऊ का शिवपुरी में निधन हो जाने के बाद भी उन्होंने वहां जाना उचित नहीं समझा और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए कोरोना वैश्विक महामारी के खिलाफ मोर्चा संभाले रहे। जवानों ने उनसे प्र्रेरणा ली और परिवार में कैंसर जैसे गंभीर रोग होने के बाद भी वह घर नहीं गए और ड्यूटी पर चौबीस घंटे सातों दिन तैनात रहे। स्वयं पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन ने कभी भी सफलता का श्रेय स्वयं न ओढ़ते हुए हमेशा अधीनस्थों को आगे रखा। जिससे उनका मनोबल लगातार आगे बढ़ता रहा। जिससे कर्मचारियों को लगा कि जब उनका मुखिया हमेशा आगे है तो फिर वह पीछे क्यों रहे।

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