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आज भी याद है अटल जी की सादगी

Update: 2019-03-18 19:19 GMT

मतदाताओं में बढ़ी जागरुकता, राष्ट्रहित में करने लगे हैं मतदान

ग्वालियर/प्रशांत शर्मा। समाज में आए परिवर्तन, तेजी से बढ़ते सोशल और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कारण मतदाताओं में काफी जागरुकता आई है। अब राष्ट्रहित के मुद्दों पर चुनाव होने लगा है। ज्यादातर मतदाता अब राष्ट्रहित में मतदान करने लगे हैं। समाज में आ रहे इस बदलाव के कारण अब चुनाव के तौर तरीकों में भी बदलाव आ रहा है। इसका असर देश में होने वाले हर चुनाव में दिखाई दे रहा है। तीन दशक पहले जनप्रतिनिधि आम जनता के लिए पूरे 12 माह अपने कार्यालय में आमद देते थे और मतदाताओं से उनका सीधा संवाद होता था, लेकिन अब यह प्रथा धीरे-धीरे कम होती जा रही है। प्रत्याशी चुनाव के समय ही अधिक सक्रिय नजर आते हैं। नेताओं में भी पहले की तरह सादगी नहीं रही। यह कहना है जीवाजी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डॉ. धीरेन्द्र सिंह चंदेल का। स्वदेश से चर्चा के दौरान श्री चंदेल बताया कि हमें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी की सादगी का वह दृश्य आज भी याद है, जब हम अटल जी को यहां होने वाले शिक्षक सम्मेलन के लिए बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित करने गए थे। वह दृश्य आज भी आंखों के सामने घूमता है। श्री चंदल ने बताया कि हम जब अटल जी से मिलने उनकी बहन के घर गए तो वह खुले में पटिया पर बैठे आमजन की तरह स्नान कर रहे थे। स्नान से निवृत्त होने के बाद जब हम अटल जी से मिले तो उनकी सादगी देखकर हम बहुत प्रभावित हुए। आज भी अटल जी जैसे नेता देशवासियों के दिलों में छाए हुए हैं।

तब किसी के मन में नहीं होती थी कोई दुर्भावना

श्री चंदेल कहते हैं कि उस समय का चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं होता था। प्रतिद्वंदिता तो होती थी, लेकिन किसी के मन में किसी भी नेता के प्रति कोई दुर्भावना नहीं होती थी। बहुत ही साफ-सुथरे और सादगी से चुनाव होते थे। श्री चंदेल ने बताया कि 1980 से पहले तक जो चुनाव हुए, उनकी बात ही अलग थी। सभी को चुनाव का इंतजार रहता था। हालांकि अब सोशल और इलेक्ट्रोनिक मीडिया की वजह से लोगों में जागरुकता बढ़ गई है और लोग अच्छा-बुरा समझने लगे हैं।

मतदाताओं से मुलाकात के लिए भी सोशल साइट

श्री चंदेल बताते हैं कि वर्तमान में चुनाव की तैयारियों में जुटे प्रत्याशियों के प्रचार-प्रसार का अंदाज ही बदल गया है। पहले प्रत्याशियों द्वारा जिस ठेठ और पुराने अंदाज में प्रचार-प्रसार किया जाता था, वह वर्तमान चुनावों में तकरीबन गायब हो चुका है। अब चुनाव के प्रचार-प्रसार में पूरी तरह से सोशल साइट का सहारा लिया जाता है। गली-मौहल्लों में होने वाली बैठकें और चौपालें अब नहीं हो रहीं। यहां तक कि जनसंपर्क या मतदाताओं से मुलाकात के लिए भी सोशल साइट का ही सहारा लिया जा रहा है।

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