मृदा संरक्षण के साथ पोषक तत्वों को बनाए रखने पर ध्यान देने की आवश्यकता
कृषि विवि में व्याख्यान आयोजित
ग्वालियर, न.सं.। फसल उत्पादन के लिए हमारे पास मिट्टी की सीमित आपूर्ति है। हमारी पृथ्वी पर कुल 13 अरब हैक्टेयर भूमि में से 27 प्रतिशत चरगाह, 32 प्रतिशत वन तथा 11 प्रतिशत भूमि ही फसल उत्पादन के लिए योग्य है। हमें मृदा संरक्षण के साथ उसमें मौजूद पोषक तत्वों को बनाये रखने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। देश में फसल उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है परंतु उर्वरकों के अधिकाधिक एवं असंतुलित प्रयोग से मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। यह बात बुधवार को राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में राज विजय भाषण श्रृंखला के अंतर्गत फसल उत्पादन एवं मृदा स्वास्थ्य में दीर्घकालिक नाइट्रोजन उर्वरक के प्रबंधन पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नईदिल्ली के पूर्व नेशनल फेलो प्रोफेसर तथा वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इनसा) के वैज्ञानिक डॉ. विजय सिंह ने कही।
उन्होंने कहा कि भारत में 2015 में प्रयोग की जाने वाली नाइट्रोजन उर्वरक की मात्रा 16.30 प्रतिशत बढक़र 2020 में 18 प्रतिशत हो गयी। अत: हमें देश के किसानों को यह बताना होगा कि वह उत्पादन के अधिक लालच में उर्वरकों का इतना अधिक प्रयोग न करें, जिससे मृदा की उर्वरता नष्ट हो जाएं। समन्वित उर्वरक प्रबंधन से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही मृदा को उपजाऊ बनाये रखा जा सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविन्द कुमार शुक्ला द्वारा की गई। डॉ. शुक्ला ने कहा कि आज का यह व्याख्यान जिसमें फसलों में वृद्धि व विकास के लिए नाइट्रोजन उर्वरक महत्वपूर्ण है, परंतु हमें इसका फसलों पर आवश्यकता के अनुरूप ही प्रयोग करना चाहिए। इस अवसर पर निदेशक अनुसंधान सेवाएं डॉ. संजय शर्मा, निदेशक विस्तार सेवाएं व परियोजना समन्वयक डॉ. वाय. पी. सिंह, कुलसचिव अनिल सक्सेना, कार्यपालन यंत्री डॉ. एच.एस. भदौरिया, सह-परियोजना समन्वयक डॉ. अखिलेश सिंह, विश्वविद्यालय के कर्मचारी व विद्यार्थी मौजूद रहे।