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2000 में पहली बार जनता ने सीधे चुना महापौर, पहले अप्रत्यक्ष प्रणाली से होते थे चुनाव

Update: 2022-06-24 08:28 GMT

ग्वालियर,न.सं.। ग्वालियर नगर निगम में महापौर का चुनाव पहले अप्रत्यक्ष तरीके से हुआ करता था। वर्ष 2000 में पहली बार जनता ने सीधे महापौर का चुनाव यिका। थोड़ा पीछे चलें तो 1969 में नगर परिषद के चुनाव हुए। इस चुनाव में 52 में से 42 पार्षद चुनकर आए, जबकि 10 पार्षदों में निर्वाचित सदस्यों द्वारा नामांकित किया गया। इस बीच ग्वालियर नगर निगम ने एक बार फिर अपने कार्य क्षेत्र का विस्तार किया। अपने अधिकार क्षेत्र को 289 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित करने के लिए शहर के पड़ोस में स्थित अन्य 75 गांवों को अपनी सीमा में शामिल कर लिया।

ग्वालियर नगर निगम का 24 मई 1983 को फिर से पुनर्गठन किया गया और 10 नामांकित सदस्यों और महापौर के साथ निर्वाचित सदस्यो की संख्या 52 हो गई। इस परिषद का कार्यकाल 1987 में समाप्त हुआ। इसके बाद 7 वर्षो तक चुनाव नहीं हुए और बतौर प्रशासक आईएएस अधिकारी नियुक्त हुआ। लंबे अरसे बाद अधिकारियों के हाथों में जिम्मा रहने के बाद दिग्विजय सिंह के शासन काल में 1994 में जाकर निगम के चुनाव हुए। इस बार सदस्यों की संख्या 66 तक बढ़ा दी ई। इनमें से 60 सदस्य जनत द्वारा चुने गए जबकि 6 पार्षदों को सरकर द्वारा नामित किया गया।

1994 में ही राज्य सरकार ने परिषद के अध्यक्ष का पद सृजित किया जिसे पार्षदों द्वारा चुना जाना था । यह पुराने उप महापौर का ही रूप था सन् 2000 में निगम चुनाव की प्रक्रिया बदल दी गई, और पांच साल के कार्यकाल के लिए परिषद बनाने पार्षदों के साथ महापौर को जनता द्वारा सीधे चुना गया। 2004 में फिर से चुनाव हुए। नई परिषद में 60 निर्वाचित पार्षदों के अलावा महापौर सरकार द्वारा नामित 6 सदस्य कार्यरत रहे। 2014 में जनता द्वारा नवनिर्वाचित जाने वाले पार्षदो की संख्या 66 तक पहुंच गई। दरअसल पड़ौस के गांवों को शहर में लिाकर 6 नाए वार्ड दिए गए। वर्तमान में भी यही स्थिति है। 

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