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ग्वालियर किले स्थित तेली के मंदिर में अंग्रेजों ने खोली थी सोडा फैक्ट्री, भेजते थे लंदन

जानिए ऐसे ही अन्य ऐतिहासिक इमारतों से जुड़े रोचक तथ्य

Update: 2020-06-04 15:34 GMT

ग्वालियर। ग्वालियर शहर सुंदर स्मारकों और मंदिरों से भरा हुआ है। ग्वालियर की विरासत में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए यहाँ बहुत सारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थान हैं। ग्वालियर की शान किले से शहर का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। इसके अलावा भी शहर में कई ने पर्यटन स्थल है, जो हर साल हजारों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते है। अलग- अलग शौक वाले लोगों के लिए यहाँ उनकी रूचि के अनुसार पर्यटन स्थल है।जैसे की इतिहास प्रेमियों के लिए ग्वालियर किला, गुजरी महल, मानमंदिर पैलेस, सूरजकुंड आदि। 

 वहीँ ईश्वर प्रेमियों के लिए गुरुद्वारा दाताबंदी छोड़, गोपाचल पर्वत, सूर्य मंदिर, तेली का मंदिर, सहस्त्रबाहु का मंदिर, आदि ग्वालियर एक ऐतिहासिक नगरी होने के साथ संगीत नगरी भी कहलाती है। संगीत सम्राट तानसेन की समाधि इस बात की गवाह है।इसके साथ ही भारत के एकमात्र सरोद घराने से जुड़ा सरोद घर।सूफी संत और गायकी के लिए प्रसिद्ध मोहम्मद गॉस का मकबरा।1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की नायिका महमरानी लक्ष्मी बाई की एवं अंत समाय में उनका साथ देने वाले साधुओं की समाधि भी प्रमुख पर्यटन स्थल है।  

1. ग्वालियर का किला: इतिहास प्रेमियों के लिए -


यह शहर का सितारा आकर्षण है और ग्वालियर के दर्शनीय स्थलों के लिए बहुत अच्छा है। इस ऐतिहासिक शहर के हर नुक्कड़ से किला दिखाई देता है। ऊंची चट्टान पर बसा ग्वालियर का किला भारत के सबसे अभेद्य किलों में से एक माना जाता है। ग्वालियर में घूमने के लिए सबसे अच्छे पर्यटन स्थलों में से एक, मुगल सम्राट बाबर द्वारा इसे 'भारत में किलों के बीच मोती' के रूप में भी जाना जाता है। यह किला भव्य है, इसलिए यदि आप पूरे किले को देखना चाहते हैं तो पूरा दिन निकाल दें।

2. जय विलास पैलेस: औपनिवेशिक काल का प्रतिबिंब -


जय विलास पैलेस ग्वालियर शहर में सबसे सुंदर स्थानों में से एक है। यह भव्य महल मध्य प्रदेश की भव्यता और संस्कृति का प्रतीक है। इसका निर्माण ग्वालियर के महाराजा, जयाजी राव सिंधिया द्वारा किया गया था, ताकि तत्कालीन राजकुमार वेल्स के राजा एडवर्ड सप्तम का भव्य स्वागत हो सके। आज, सिंधिया परिवार के शाही वंशज भी यहां रहते हैं और महल के अंदर एक संग्रहालय है। महल के लेआउट पर औपनिवेशिक काल का एक मजबूत प्रतिबिंब है।

3. गुजरी महल : इतिहास को जानने के लिए-



यह इतिहास प्रेमियों के लिए है। यह पुरातत्विक़  संग्रहालय किले के अंदर स्थित है।15 वीं शताब्दी का यह महल ग्वालियर के शासकों के लिए एक महान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। आपको यहां बाग गुफा चित्रों की छवियों का एक बड़ा संग्रह भी दिखाई देगा। यहाँ भगवान् नृसिंह, दुर्गा, बुद्ध, महावीर, सबसे अधिक प्रसिद्ध शालभंजिका की मूर्ति यहाँ स्थित है।  4. मान मंदिर पैलेस:शाही भव्यता का प्रतीक  किले के उत्तर-पूर्वी छोर पर स्थित, मान मंदिर महल 1486 और 1516 के बीच तोमर शासक मान सिंह तोमर द्वारा बनाया गया था। महल समय के साथ पहले जैसा नहीं रहा, और कुछ हिस्सा ढह गया है।  इसके बावजूद महल के अवशेष अभी भी उस युग की सुंदर नक्काशियों और डिजाइनों को दर्शाते हैं।

महल में दो खुले कोर्ट हैं जिनमें दो स्तरों पर अपार्टमेंट हैं। मुगलों द्वारा बाद में निर्मित भूमिगत जेल भी हैं। यह वही जगह थी जहाँ औरंगज़ेब ने अपने भाई मुराद को बंदी बनाया और अफीम का इस्तेमाल करके उसे धीरे-धीरे जहर देकर मार डाला। यहाँ पास ही में एक जौहर कुंड है। जहां13 वीं शताब्दी में इल्तुतमिश की सेना द्वारा बलात्कार से बचने के लिए विभिन्न राजपूत महिलाओं ने सामूहिक आत्महत्या की थी। यह महल जहाँगीर महल, शाहजहाँ महल और गुजरी महल जैसे अन्य स्मारकों से घिरा हुआ है।  

4 . सास बहू का मंदिर : पद्मनाभ मंदिर 


ग्वालियर किले में स्थित यह मंदिर शानदार मूर्तिकला का अध्भुत नमूना है।  इसका निर्माण 1093ई. में कछवाहा राजाओं द्वारा  बनवाया गया। बताया जाता है की कछवाहा राजा की पत्नी भगवान् विष्णु की परम भक्त थी।  जिसकी इच्छानुसार राजा ने भगवान् विष्णु का बड़ा मंदिर बनवाया।  कुछ समय बाद राजा के बेटे की शादी हुई और उसकी पुत्रवधु भगवान् शिव की परम भक्त थी।  जिसके लिए भगवान् शिव का बड़ा मंदिर बनवाया गया।  कछवाहा की राजा की पत्नी और बहु द्वारा इन मंदिरों में पूजा की जाती थी।  इसलिए यह मंदिर सास-बहु के मंदिर नाम से प्रसिद्ध हो गए। इन दोनों मंदिरों की नक्काशी और मूर्तिकला देखने योग्य है। इस मंदिर के मध्य में एक वर्गाकार प्रकोष्ट है, जिसके तीन ओर द्बार मंडप हैं और चोथी ओर एक गर्भगृह है, जोकी अब रिक्त है। 

 5. सूरज कुंड - एक खूबसूरत तालाब 



सूरज कुंड एक खूबसूरत तालाब है जो ग्वालियर किले में स्थित है। यह 8 वीं सदी में राजा सूरज सेन के बारे में पौराणिक या लोक कथाओं से अपना महत्व प्राप्त करता है। कहानी के अनुसार, राजा कुष्ठ रोग से पीड़ित था, और भाग्य के अनुसार उसे किले के पास ग्वालिपा नामक एक ऋषि मिले। ऋषि ने राजा से कहा कि इस तालाब का कुछ पानी पी लो। उसने वैसा ही किया और राजा कुष्ठ रोग से ठीक हो गया। राजा ने शहर का नाम ऋषि ग्वालिप के नाम पर रखा और उसके बाद शहर को ग्वालियर कहा जाने लगा। सूरज कुंड का नाम राजा के नाम पर रखा गया है, और यह पौराणिक कहानी को याद करता है। मिथक के साथ तालाब का सुंदर आसपास का क्षेत्र इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल बनाता है।  

6.गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़- गुरु की दयालुता का प्रतीक 



यह गुरुद्वारा सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह साहब का स्मारक है।  इतिहास के अनुसार मुगल बादशाह जहांगीर ने सैन्य गतिविधियां  चलाने के आरोप में ग्वालियर किले में कैद कर लिया था। जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया था। जब बादशाह ने उन्हें छोड़ने का आदेश दिया तब गुरु ने अपने साथ 52 हिन्दू राजाओं की रिहाई मांग ली। जहाँगीर ने आदेश दिया कि जो भी गुरु का जामा पकड़ेगा उसे छोड़ दिया जायेगा। इसके बाद गुरु का जामा  पकड़ 52 कैदी बादशाह की जेल से रिहा हो गए।  इसके बाद से गुरु हरगोविंद सिंह दाता बंदी छोड़ कहलाये।  जिनकी याद में साल 1970 में यहाँ गुरूद्वारे का निर्माण किया गया। 

7 .सूर्यमंदिर - कोणार्क की प्रतिमूर्ति 


 यहाँ स्थित सूर्य मंदिर उड़ीसा के कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर की प्रतिकृति है।  सूर्यदेव को समर्पित यह मंदिर शहर का प्रमुख मंदिर एवं पर्यटन स्थल है। इसका निर्माण प्रसिद्ध उद्योगपति जीडी बिड़ला ने सन् 1988 में करवाया था। इस मंदिर की खासियत यह है की सूर्य की पहली किरण मंदिर में स्थित भगवान सूर्य की प्रतिमा पर पड़ती है। मंदिर के बाहरी दीवारों को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जबकि अंदरूनी हिस्सा सफेद संगमरमर से निर्मित है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र पत्थरों पर अंकित है।

8 . तेली का मंदिर - दक्षिण शैली की झलक 


किले पर स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में प्रतिहार वंश के शासक मिहिर भोज ने करवाया था। यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना है। जिसकी ऊंचाई करीब 90 फीट है।  1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों की फौज ग्वालियर फोर्ट पर कब्जा किया तो उन्होंने इस मंदिर को कॉफी शॉप में तब्दील कर दिया।अंग्रेज अफसर मेजर कीथ ने एक सोडा फैक्ट्री भी इस मंदिर में स्थापित कर दी। बताते हैं कि इस फैक्ट्री का सोडा इंग्लैंड भी भेजा जाता था। यहाँ पहले विष्णुजी और बाद में शिवजी की पूजा होती थी।  



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