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विवाह समारोह शुरू होंगे तभी सुधरेगी जीडीपी

Update: 2020-09-10 01:00 GMT

ग्वालियर, न.सं.। हमारे यहां वैवाहिक समारोह ही ऐसा कार्यक्रम होता है जिसमें हर व्यक्ति दिल खोलकर पैसा खर्च करता है और इसका लाभ हर सेक्टर को मिलता है। इन वैवाहिक समारोह से ही सरकार को बड़े स्तर पर कर (टैक्स) की प्राप्ती होती है जिससे देश की जीडीपी (सकल घरेलु उत्पाद) बढ़ती और देश का विकास होता है। कोरोना संक्रमण के कारण वैवाहिक समारोह बंद है और सरकार को कर का भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। स्थिति यह हो गई है कि देश की जीडीपी माइनस 24 पर पहुंच गई है जिससे देश की आर्थिक स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। अगर सरकार विवाह समारोहों को शुरू करती है और इसमें 500 लोगों को आने की अनुमति देती है तो इससे जीडीपी में सुधार होगा, देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी और लोगों को रोजगार भी मिलने लगेगा।

कोरोना संक्रमण के कारण मार्च माह के विवाह नहीं हो रहे हैं जिससे विवाह सेक्टर में करोड़ों-अरबों रुपए का नुकसान हो चुका है। साथ ही टेंट व्यवसाई, मैरिज हाउस, कैटर्स, साउंड एंड इवेंट एसोसिएशन एवं बैंड एसोसिएशन आदि से जुड़े व्यापारी कर्ज के गर्त में चले गए हैं। पत्रकारों से चर्चा करते हुए विवाह व्यवसाय संघर्ष समिति ग्वालियर के संयोजक अशोक बांदिल ने कहा कि नवम्बर माह से सहालगी सीजन शुरू होने वाला है, जिसकी बुकिंग अभी से शुरू होनी है। श्री बांदिल ने कहा कि हम चाहते हैं कि अनलॉक में कम से कम सरकार 500 व्यक्तियों को विवाह में आने की अनुमति प्रदान करे। ऐसा करने से विवाह समारोह की बुकिंग शुरू हो जाएगी और इस समारोह में खर्च होने वाले पैसे से कर की प्राप्ति केन्द्र व राज्य सरकार को होने लगेगी। साथ पूरे देश में विवाह समारोह से जुड़े लोगों को जीवनदान मिल जाएगा। श्री बांदिल ने सरकार से कहा कि हमारा पिछले छह माह का बिजली बिल भी माफ किया जाए क्योंकि वर्तमान में हमारा व्यवसाय पूरी तरह से बंद है।

इस तरह होता है पैसा खर्च:-

विवाह समारोह में साइकिल से लेकर कार तक, कपड़ा, सोना, चांदी, बर्तन, फ्रीज, टीवी, पंखे कूलर, दूध, दही, पनीर, घी, किराना व्यवसाय, होटल, टूर, ट्रेवल्स, रेस्टोरेंट, नए घर का बनना, बैंड बाजे, कैटरिंग, फोटोग्राफर, ड्रोन उड़ाने वाले पायलट, टैंट हाऊस, मैरिज गार्डन, घोड़ा, गैस बत्ती, वेटर, चाट वाले, सब्जी वाले, फ्लोवर डेकोरेशन, आतिशबाजी, मेहंदी, ब्यूटीपार्लर आदि लोगों पर पैसा खर्च होता है। इस पैसे का एक भाग कर के रूप में राज्य व केन्द्र सरकार के पास जाता है।

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