आचार संहिता ने अटकाया गरीबों का इलाज, जनप्रतिनिधि सीएम कार्यालय में अनुशंसा भी नहीं कर पा रहे

मुख्यमंत्री स्वेच्छा अनुदान का फंड न होने से पूर्व में दिए आवेदनों का भी भुगतान नहीं हो पाया। इससे अस्पताल मरीज पर बकाया का दवाब बना रहे हैं।

Update: 2023-10-29 00:45 GMT

ग्वालियर। प्रदेश में चुनावी आचार संहित लगने के बाद राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों पर जनता को कोई लाभ या प्रलोभन देने पर पाबंदी लग चुकी है। सीएम कार्यालय से मिलने वाली मदद भी रुक गई है, इसका खमियाजा गरीब परिवारों को उठाना पड़ रहा है। आम दिनों में प्रदेशभर में इलाज में मदद के लिए सीएम कार्यालय में 500 से ज्यादा आवेदन पहुंचते हैं। परंतु जनप्रतिनिधि सीएम कार्यालय में अनुशंसा भी नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में कलेक्टर ही चुनाव आयोग से अनुमति लेकर इन गरीबों की इलाज में मदद कर सकते हैं, जो हो नहीं पा रहा है। मुख्यमंत्री स्वेच्छा अनुदान का फंड न होने से पूर्व में दिए आवेदनों का भी भुगतान नहीं हो पाया। इससे अस्पताल मरीज पर बकाया का दवाब बना रहे हैं।

बीमारी में आर्थिक मदद देने के लिए वल्लभ भवन, मुख्यमंत्री स्वेच्छा अनुदान के लिए कुछ आवेदन सीधे तो कुछ प्रतिनिधि की अनुशंसा से भेजे जाते हैं। जनप्रतिनिधियों की अनुशंसा पर मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान निधि से इलाज के लिए दस हजार से 2 लाख रुपए तक का फंड मिल जाता था। अब ऐसे मरीज पूर्व स्वीकृत आवेदन के बाद भी अस्पताल जा रहे हैं, तो उन्हें आचार संहिता में राशि जारी नहीं होने का हवाला देकर रवाना कर दिया जा रहा है। मंत्रालय में बैठे अधिकारी भी आचार संहिता का हवाला देकर इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

दिसंबर में ही मिलेगी अनुमति

सीएम कार्यालय में पदस्थ अधिकारियों के अनुसार, कलेक्टर चाहें तो गंभीर प्रकरणों में चुनाव आयोग से अनुमति लेकर इलाज के लिए फंड जारी करा सकते हैं। हालांकि, अभी तक एक भी मामला नहीं पहुंचा। यानी कलेक्टर भी चुनावी व्यवस्था का हवाला देकर इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। ऐसे में गरीबों को इलाज के लिए अब दिसंबर में आचार संहिता खत्म होने का इंतजार करना होगा।

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