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आर्थिक संकट से जूंझते शहर के निजी विद्यालय

  • स्वदेश बना मंच, प्रयास की सराहना

Update: 2020-12-05 13:00 GMT

स्वदेश राष्ट्रीय विचारों का संवाहक है। साथ ही सामाजिक सरोकार व शहर का समग्र विकास भी इसकी प्राथमिकता में सर्वोच्च है। इसी कड़ी में कोरोना काल में चुनौतियों के बीच अपना दायित्व पूर्ण कर रहे शिक्षा संस्थानों को स्वदेश ने शुक्रवार को आमंत्रित किया एवं उनकी पीड़ा व सुझाव जानने का प्रयास किया। स्वदेश के इस प्रयास को सभी ने एक स्वर में सराहा।

ग्वालियर/वेब डेस्क। महानगर ग्वालियर आज इस परिप्रेक्ष्य में सौभाग्यशाली है कि शहर में उत्कृष्ट शैक्षणिक संस्थान निजी क्षेत्र में हैं। ग्वालियर को शिक्षा जगत में एक ऊँचाई देने में इनका उल्लेखनीय योगदान है। पर कोरोना काल में आए संकट के चलते आज इन विद्यालयों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। विद्यालय के संचालक एवं शिक्षक इस चिंता के साथ-साथ सरकार एवं अभिभावकों की उपेक्षा से और अधिक पीडि़त हैं। संचालकों की पीड़ा है कि ऑनलाइन शिक्षा के जरिए हमने हर संभव कोशिश की, पर फीस के अभाव में संचालन दुष्कर होता जा रहा है। यही नहीं फीस के आग्रह को धमकी बताकर विद्यालय प्रबंधन को कठघरे में किया जाता है जिसमें मीडिया भी शामिल है। वहीं सरकार ने कोरोना में हर वर्ग की चिंता की, पर विद्यालय जो एक बड़ा समूह है उसकी पूर्ण उपेक्षा की। यही नहीं शिक्षा के अधिकार के तहत उन्हें मिलने वाली राशि भी आज तक नहीं मिली है।

शिक्षाविदें ने रखे अपने-अपने विचार

स्वामी सुप्रदीप्तानंद महाराज, रामकृष्ण विद्या मंदिर ग्वालियर : 'अगर बच्चा चार दिन भी स्कूल नहीं आता तो उसे पटरी पर लाने में बहुत दिक्कत आती है। आज बच्चे इतने दिनों से स्कूल नहीं आ रहे हैं उसके बाद भी हम बच्चों को ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। छात्रों में शिक्षा ग्रहण करने का स्वभाव बना रहे यह प्रयास हमने किया है।'

श्रीमती शकुंतला परिहार, संचालिका, ब्रिलियंट स्टार हा.से. स्कूल ग्वालियर : 'कोरोना काल में हम सभी स्कूल संचालक एक ही नाव में सवार हैं और सभी की समस्याएं एक जैसी हैं। ट्यूशन फीस के नाम पर अभिभावकों द्वारा हमसे अनुचित व्यवहार किया जा रहा है। यह सब देखकर मन व्यथित हो जाता है।'

एस.के. गुप्ता, संचालक, संस्कार पब्लिक स्कूल ग्वालियर : 'पांच माह से अधिक हो गए हैं, अभिभावकों ने ट्यूशन फीस जमा नहीं की है। जितना हो सकता है उतना हमारे द्वारा किया जा रहा है। हम ऑनलाइन कक्षा लेकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। अगर कोरोना संक्रमण काल में हम भी पढ़ाना बंद कर दे तो क्या होगा।'

विजय गुप्ता, संचालक, दि रेडियंट स्कूल : 'ऐसे कई अभिभावक हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है लेकिन वो भी मौके का फायदा उठाकर फीस नहीं दे रहे हैं। उन्हें शायद यह नहीं पता कि विद्यालयों के भी बहुत खर्चे होते हैं। जब हम अभिभावकों का सहयोग कर रहे हैं तो उन्हें भी हमारा सहयोग करना चाहिए।'

अमित जैन, चेयरमेन, एबनेजर हा.से. स्कूल : 'जब अभिभावक हमें फीस नहीं देंगे तो हम शिक्षकों को वेतन कैसे बाटेंगे। फीस मांगने के नाम पर अभिभावकों का व्यवहार बहुत बदल गया है। जिन सरकारी कर्मचारियों को सरकार वेतन दे रही है, वे भी हमें फीस नहीं दे रहे हैं।'

राजकरण सिंह भदौरिया, संचालक, मिससिल हा.से. स्कूल : 'विद्यालय संचालकों की ग्राउण्ड लेवल पर जो समस्या है उसे मीडिया और सरकार दोनों ने ही समझने का प्रयास नहीं किया है। वर्तमान स्थिति में बाजार खुल गए और चुनाव हो गए मगर विद्यालयों के बारे में किसी ने नहीं सोचा। हम स्कूल सचांलकों के प्रति सरकार की जो नीति है वह बहुत मतभेद वाली है।'

कौशलेन्द्र सिंह चौहान, संचालक, विद्या विहार हा.से.स्कूल : 'जब हम, हर काम में सरकार का सहयोग करते हैं तो इस विपदा में सरकार को भी हमारा सहयोग करना चाहिए। हम स्कूल तो जैसे-तैसे चला रहे हैं लेकिन गली मौहल्लों के स्कूलों की हालत तो बहुत ही खराब है।

आदित्य सिंह भदौरिया, संचालक, ग्रीनवुड पब्लिक स्कूल : 'कोरोना काल में चिकित्सक और शिक्षकों ने बहुत ही सहयोगात्मक काम किया है, लेकिन दोनों को ही कुछ नहीं मिला है। सरकार ने चिकित्सक और शिक्षक के लिए कोई गाइड लाइन नहीं बनाई है।

मनोज उपाध्याय, प्राचार्य, ग्रीनवुड पब्लिक स्कूल : 'कोरोना का प्रभाव किसानों और सरकारी सेक्टर में नहीं पड़ा है। निजी क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। सकारात्मकता यह है कि 30 से 40 प्रतिशत अभिभावकों ने हमें सहयोग भी दिया है। इनके सहयोग से ही आज हम एक्टिव मोड में हैं।'

श्रीमती वृन्दा कौल, समन्वयक, ग्वालियर ग्लोरी हा. स्कूल : 'कई अभिाभावक तो झूठ बोलते हैं कि उनके बच्चे ऑनलाइन पढ़ ही नहीं रहे हैं। अभिभावकों के झूठ बोलने से हम तो दुखी होते ही हैं, बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।'

जगदीश श्रीवास, प्राचार्य, लक्ष्मीबाई स्मारक उच्चतर एवं माध्यमिक विद्यालय : 'हमने अपने व्यक्तिगत संबंधों पर पैसे लाकर शिक्षकों को वेतन बांटा है। जब हम अभिभावकों से फीस मांगते हैं तो वह इसे धमकी समझ रहे हैं।'

एस.पी. सिंह, प्राचार्य, मिसहिल स्कूल : 'सरकार और अभिभावकों को हमारी परेशानी को समझना चाहिए और मदद करना चाहिए। सहयोग से ही विद्यालय चल सकते हैं।'

हरीश राजौरिया, संचालक, श्री गौरीशंकर हा.से. स्कूल : 'जिन अभिभावकों की आर्थिक स्थिति अच्छी है उन्हेें ट्यूशन फीस भरनी चाहिए। मौके का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए।'

नीकेश शर्मा, प्राचार्य, विद्या भवन पब्लिक स्कूल : 'हम जो बच्चों को पढ़ा रहे हैं उसके बारे में भी सर्वे होना चाहिए। बच्चें व अभिभावक स्वंय ही बता देंगे कि हम कितनी मेहनत से उन्हें पढ़ा रहे हैं।'

ई-पेपर लिंक :

https://www.swadeshnews.in/clip-preview/1931UA8ZaHHK39MMbIRTkXDy0KIgVatnnwnY0556506 

https://www.swadeshnews.in/full-page-pdf/epaper/gwalior/2020-12-05/gwalior/2033 



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