एक दशक से बगैर स्थाई हुए पदोन्नति व वेतनमान का ले रहे हैं लाभ
भोपाल/प्रशासनिक संवाददाता। प्रदेश का वन विभाग अपनी कार्यप्रणाली की वजह से हमेशा से ही सुर्खियों में बना रहता है। इस बार यह महकमा अपने ही राज्य वन सेवा (एसएफएस) संवर्ग के 182 अधिकारियों को एक दशक बाद भी स्थाई किए बगैर पदोन्नति से लेकर समयमान वेतनमान आदि देने के लिए सुर्खियों में है। यह खुलासा तब हुआ जब जब इन अधिकारियों को भारतीय वन सेवा अवार्ड देने की बारी आई। इसके बाद से महकमे में हंगामा मच गया। इस हालात के चलते आनन-फानन में उनमें से जिनकी विभागीय जांच आदि कारणों से लिफाफा बंद है, उन्हें छोडकऱ बाकी को स्थाई किया गया। इस महकमे में भारतीय वन सेवा संवर्ग किया गया।
खास बात यह है कि भारतीय वन सेवा संवर्ग के कुल 358 में से 142 अधिकारी ही ऐसे हैं, जो स्थाई हैं। बाकी अधिकारी परीक्षा पास नहीं कर पाने, व्यक्तिगत चरित्रावली (सीआर) व किसी अन्य कारण से अपात्र होने की वजहों से स्थाई नहीं हो पाए। पिछले 10 साल में इस संवर्ग के अधिकारियों की भर्ती से लेकर पदोन्नति, वेतनमान आदि होता रहा, पर महकमे के वरष्ठि अधिकारियों ने उन्हें स्थाई नहीं किया। जबकि इसी महकमे में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों को साल दर साल यह सब होता रहा है। सूत्रों ने बताया की स्थायीकरण के बगैर ही 182 अधिकारियों ने 15 से 20 साल की सेवा पूरी कर ली। वे समयमान वेतनमान सहित अन्य लाभ भी लेते रहे, किन्तु स्थाई नहीं हो सके।
आठ अधिकारियों के लिफाके बंद
वन विभाग में आठ अधिकारियों के खिलाफ विभिन्न मामलों में विभागीय और अन्य जांच चल रही हैं। इस वजह से उनके खिलाफ लिफाफे खुले ही नहीं है। इनमें सीधी भर्ती और पदोन्नति होकर आए अधिकारी भी शामिल है। इन असफरों को स्थाई हुए बगैर समयमान वेतनमान सहित तमाम तरह के लाभ लेने की फिर से समीक्षा की जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार स्थायीकरण के बिना लाभ लेना नियम विरुद्ध है। यदि अधिकारियों को स्थायीकरण के पहले कोई आर्थिक लाभ दिया गया है, तो वह वापस होना चाहिए। क्योंकि स्थाई होने के बाद भी किसी भी लाभ की पात्रता मिलती है। ऐसे में वन विभाग में हंगामा मचा हुआ है।
सेवानिवृत्ति के समय आती दिक्कतें
अधिकारियों का स्थायीकरण नहीं होने से सबसे बड़ी समस्या उनकी सेवानिवृत्ति के समय आती है। यदि ऐसे अधिकारियों को भारतीय वन सेवा अवार्ड देना है, तो भी दिक्कतें आती है। बताते है कि वरिष्ठ अधिकारियों की लापरवाही से इन अधिकारियों को स्थाई नहीं किया गया। इस दौरान जो भी अधिकारी आया, उन सभी ने फाइल को खोलने की गुरेज नहीं की। इन अधिकारियों को भी ध्यान में नहीं आया कि वे महकमे में स्थाई नहीं है। प्रस्ताव का परीक्षण करते हुए अधिकारियों को पता चला कि संबंधित अधिकारियों का विमान में स्थाईकरण नहीं हुआ है।
आनन-फानन में किया स्थाई
इसका खुलासा तब हुआ जब वन मुख्यालय ने इनमें से आठ अधिकारियों को भारतीय वन सेवा अवार्ड देने का प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्णय हुआ। यह प्रस्ताव भेजने से पहले परीक्षण हुआ तो पता चला कि इनमें से कोई भी अधिकारी स्थाई नहीं है। तब आनन-फानन में सभी अधिकारियों की व्यक्तिगत चरित्रावली (सीआर) मंगाकर स्थायीकरण के थोक बंद आदेश जारी किए गए। हालांकि इसमें से आठ अधिकारियों के लिफाफे किन्हीं कारणों से बंद होने की वजह से उनका स्थायीकरण नहीं हो सका। इन अधिकारियों के खिलाफ अलग-अलग मामलों में जांच और काईवाई चल रही है।
भारतीय वन सेवा संवर्ग के लिए इनके नाम प्रस्तावित
सरकार ने भारतीय वन सेवा संवर्ग के शिवाजी त्रिपाठी, अनिल चौपरा, प्रकाश वर्मा, प्रभुदास गब्रियल, राजवीर सिंह, महेंद्र उइके, गिरजेश बरकड़े और सियाराम मेहता का नाम आईएफएस अवार्ड के लिए केंद्र सरकार को भेजने का निर्णय लिया है। पदों के हिसाब से इन्हीं अधिकारियों को सीआर से लेकर अन्य सीमा मामलों में वरीयता मिल रही है।