वीर सावरकर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का बहुआयामी व्यक्तित्व

Update: 2025-05-24 07:20 GMT

अभी हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फटकार लगाते हुए कहा है कि यदि आपको स्वतंत्रता सैनानियों का इतिहास पता नहीं है तो उनके बारे में अर्नगल बयान न दें, यदि भविश्य में आपने इस तरह की कोई टिप्पणी की तो कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही करेगा।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने राहुल गांधी को यह चेतावनी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें उनके असाधारण पराक्रम, राष्‍ट्रभक्ति एवं साहस के कारण वीर सावरकर कहा गया, के बारे में गैर-जिम्मेदाराना बयान देने पर दी है।

राहुल गांधी ने 17 नवंबर, 2022 को महाराष्‍ट्र में एक चिट्ठी का हवाला देते हुए कहा था कि सावरकर ने खुद को अंग्रेजों का नौकर लिखा है। इस पर माननीय न्यायालय ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी अपने पत्रों में अंग्रेजों को ‘आपका वफादार सेवक’ लिखा है, तो क्या हम उन्हें अंग्रेजों का नौकर मानेंगे। यह पहला मौका नहीं है जब राहुल गांधी ने इस तरह का बयान दिया है।

राष्‍ट्रीय गर्व के व्यक्तियों एवं संगठनों को अपमानित करने वाले बयान वे कई बार दे चुके हैं। भारतीय सेना, हिन्दुओं एवं राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अन्य कई मामलों में राहुल गांधी की गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणियों को लेकर माननीय न्यायालय को समय-समय पर हस्तक्षेप करना पड़ा है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के बारे में वे जिस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं उससे तो ऐसा प्रतीत होता है कि उनका भारतीयता एवं भारतीय संस्कारों से कोई सरोकार नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री एवं राहुल गांधी की दादी श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने एवं अंग्रेजों की अनंत असहनीय यातनायें सहने वाले वीर सावरकर को भारत का महान सपूत कहने के बावजूद उनके पोते राहुल गांधी द्वारा वीर सावरकर के चरित्र हनन का प्रयास करना इस बात का प्रमाण है कि राहुल गांधी गर्व और षर्म के विशयों में अंतर करना भूल चुके हैं।

जिस तरह सुनियोजित तरीके से वीर सावरकर के चरित्र हनन की कोषिष की गई है उस तरह का कोई भी दूसरा उदाहरण पूरे स्वतंत्रता संग्राम में देखने को नहीं मिलता है।

विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्‍ट्र में नासिक जिले के भगूर गॉव में हुआ था। बाल्यकाल एवं स्कूल के दिनों से ही उनकी देशभक्ति एवं विलक्षण प्रतिभा सामने आने लगी थी। शुरूआत से ही उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत एवं अपने देष के लिये कुछ कर गुजरने की ललक देखने को मिलती है।

इसीलिए उन्होंने रानी विक्टोरिया की शोक सभा का विरोध किया एवं विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, जिसकी तारीफ बाल गंगाधर तिलक ने भी की थी। विदेशी वस्त्रों का बहिष्‍कार करने और उनकी होली जलाने की भारत में यह पहली घटना थी।

बाद में महात्मा गांधी ने भी इस तरह का आन्दोलन चलाया था। पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से षिक्षा प्राप्त करने के पश्‍चात कानून की पढ़ाई के लिये वे इंग्लैण्ड चले गये। उन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर स्कॉलरशिप प्राप्त की। सावरकर का स्कॉलरशिप प्राप्त करना इस बात का प्रमाण है कि वे एक क्रांतिकारी होने के साथ-साथ प्रतिभाशाली छात्र भी थे।

इंग्लैण्ड में रहते हुए वे यह कभी भी नहीं भूल पाये कि उन्हें अपना जीवन देष की स्वतंत्रता के लिये समर्पित करना है। यही कारण है कि वे इंग्लैण्ड में भी अंग्रेजों के विरोध में लगातार कार्य करते रहे। उन्हांंने इंग्लैण्ड में ही क्रांतिकारी संगठन ‘अभिनव भारत’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्‍य भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करवाना था। उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर एक पुस्तक ‘1857ः द फर्स्ट वार ऑफ इण्डिपेन्डेन्स’ लिखी।

इस पुस्तक पर ब्रिटिश हुकूमत ने प्रकाशित होने के पहले ही प्रतिबंध लगा दिया। बाद में कई जगह इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ। भारत में इस पुस्तक का प्रकाषन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगतसिंह और उनके साथियों ने करवाया था।

अंग्रेजों के विरोध के बावजूद भी सावरकर छात्रों एवं भारतीयों को इकट्ठा कर उन्हें देशभक्ति एवं स्वतंत्रता के लिये प्रेरित करते रहे। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अण्डमान निकोबार की सेलुलर जेल भेज दिया।

अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों को कैद में रखने के लिये इस जेल का निर्माण करवाया था। इसमें दी जाने वाली असहनीय एवं अमानवीय यातनाओं के कारण इसे ‘काला पानी’ भी कहा जाता था। ऐसी जेल में लगभग दस साल अंग्रेजों की अमानवीय यातनायें सहने के बावजूद अपने लक्ष्य को न भूलने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर पर राहुल गांधी की अमर्यादित टिप्पणी दुखद एवं दुभार्ग्यपूर्ण है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी वीर सावरकर कवि, साहित्यकार एवं नाटककार होने के साथ-साथ एक प्रखर चिंतक भी थे। उन्होंने जेल में नुकीले पत्थरों, कोयले और नाखूनों से देषभक्ति और सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत बहुत सी कवितायें लिखी।

उन्होंने छुआछूत की समस्या एवं सामाजिक एकता को केन्द्र में रखकर कई नाटक भी लिखे। उन्हांने जेल में बहुत से कैदियों को पढ़ाया। उनकी क्रांतिकारी विचारधारा के तेज में उनके साहित्यिक पक्ष को उतना प्रचार-प्रसार एवं महत्व नहीं मिल पाया, जितना मिलना चाहिये था। वीर सावरकर एक चतुर क्रांतिकारी थे। उन्होंने एक रणनीति के तहत अंग्रेजों को चिट्ठी लिखी थी, बिना इसकी चिन्ता किये कि लोग उनके बारे में क्या कहेंंगे, क्योंकि अज्ञेय की तरह उनका भी मानना था कि कोई भी मार्ग छोड़ा जा सकता है, बदला जा सकता है, पथभ्रश्ट होना कुछ नहीं होता, यदि लक्ष्यभ्रष्‍ट नहीं हुए।

क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी समाज सुधारक एवं कुषल रणनीतिकार वीर सावरकर पर उनकी देशभक्ति एवं देश की प्रति उनकी निष्‍ठा को लेकर तो उन अंग्रेजों को भी कोई संदेह नहीं रहा होगा, जिन्होंने उन्हें एक दोशपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से 25-25 साल की दो अलग-अलग सजायें सुनाई थीं।

राहुल गांधी जैसे लोग सावरकर के जिस क्षमादान का दुष्‍प्रचार करते रहते हैं उस दौर में राजनीतिक कैदियों के लिये ऐसी याचिकायें आम बात थी। वे जाति भेद, अस्पृष्यता एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लगातार संघर्श करते रहे। उन्‍होंने अपने तर्कपूर्ण एवं भावनात्मक लेखन तथा भाशणों के माध्यम से देष को एकजुट करने की पुरजोर कोशिश की।

वे समाज में एकता और समानता के पक्षधर थे। उन्होंने एक मंदिर की स्थापना की थी जिसमें सभी जातियों के लोग जा सकते थे। वे अंतर्जातीय विवाह एवं अंतर्जातीय भोज के समर्थक थे, उनका मानना था कि सभी को समान अधिकार मिलने चाहिये।

उन्हांने दलितों को समान अधिकार दिलाने के लिये डॉ. भीमराव अम्बेडकर के सत्याग्रह ‘महाड़’ को बिना शर्त समर्थन दिया था। अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने न केवल मिस्लम लीग की विभाजनकारी राजनीति को चुनौती दी बल्कि कांग्रेस की तुश्टिकरण की राजनीति का विरोध भी किया।

1959 में पुणे विश्‍वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। वर्श 2000 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस बहुआयामी व्यक्तित्व को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की सिफारिश की थी।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक समाज सुधारक, विचारक एवं कुशल रणनीतिकार वीर सावरकर का जीवन संघर्श, त्याग, बलिदान, दृढ़ विष्वास, अडिग संकल्प एवं राष्‍ट्र के प्रति निःस्वार्थ समर्पण की अनूठी मिसाल है। 26 फरवरी, 1966 को इस महान राश्ट्र भक्त ने मुम्बई में अन्तिम सांस ली।

विपरीत परिस्थतियों में भी विचलित न होने वाले इस अद्भुत व्यक्तित्व के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा है कि सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारूण्य, सावरकर माने तलवारय कैसा बहुरंगी व्यक्तित्व।

-प्रो. एस.के.सिंह

विभागाध्यक्ष,

वाणिज्य एवं व्यवसाय अध्ययनशाला

जीवाजी विश्‍वविद्यालय, ग्वालियर

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