पं. दीनदयाल स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में डॉ. मोहन भागवत का उद्बोधन
सनातन विचार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश, काल और परिस्थिति के अनुसार एकात्मक मानव दर्शन का नया नाम देकर लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया। यह विचार नया नहीं है, किंतु 60 वर्ष बाद भी वर्तमान समय में यह एकात्मक मानव दर्शन पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को जयपुर में एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में कही।
डॉ. भागवत ने कहा कि यदि एकात्मक मानव दर्शन को एक शब्द में समझना हो तो वह शब्द है धर्म। इस धर्म का अर्थ केवल धर्म, मत, पंथ या संप्रदाय नहीं है। इसका तात्पर्य गंतव्य से है, यह सबको समेटने वाला धर्म है। वर्तमान समय में दुनिया को इसी एकात्म मानव दर्शन के धर्म के आधार पर चलना होगा।
उन्होंने बताया कि भारतीय जब भी बाहर गए, किसी को लूटा नहीं, किसी को पीटा नहीं, बल्कि सभी को सुखी किया। भारत में पिछले कई दशकों में रहन-सहन, खानपान और वेशभूषा बदल सकती है, किंतु सनातन विचार नहीं बदला। यही सनातन विचार ही एकात्म मानव दर्शन है, जिसका मूल सिद्धांत यह है कि सुख बाहर नहीं, हमारे भीतर है। जब हम भीतर का सुख अनुभव करते हैं, तभी समझ में आता है कि पूरा विश्व एकात्म है। इस एकात्म मानवदर्शन में अतिवाद का स्थान नहीं है।
डॉ. भागवत ने शरीर, मन और बुद्धि की सत्ता की बात करते हुए कहा कि सत्ता की भी मर्यादा होती है। सबका हित साधते हुए अपने विकास का प्रयास करना वर्तमान समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक उतार-चढ़ाव होते हैं, लेकिन भारत पर इसका असर सबसे कम होता है क्योंकि हमारे अर्थतंत्र का आधार परिवार व्यवस्था है।
वर्तमान में विज्ञान की प्रगति चरम पर है। विज्ञान के आधार पर भौतिक सुविधाओं का विकास तो हो रहा है, लेकिन क्या मनुष्य के मन में शांति और संतोष भी बढ़ रहा है? उन्होंने कहा कि विज्ञान की प्रगति के कारण नई दवाइयां तो बनी हैं, किंतु क्या स्वास्थ्य पहले की तुलना में बेहतर हुआ है? कुछ बीमारियों का कारण स्वयं कुछ दवाइयां बन रही हैं। वैश्विक स्तर पर केवल चार प्रतिशत जनसंख्या 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करती है, जिससे विकसित और अविकसित देशों में भेद बढ़ रहा है।
कार्यक्रम की प्रस्तावना एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश शर्मा ने रखी। उन्होंने कहा कि संपूर्ण सृष्टि एकात्म है। सृष्टि का एक कण भी हिलता है तो उसका प्रभाव संपूर्ण सृष्टि पर पड़ता है। डॉ. शर्मा ने यह भी कहा कि इस समय वंदे मातरम की रचना का 150वां वर्ष चल रहा है और वर्तमान परिस्थितियों में इसे गाना अत्यंत आवश्यक है।
कार्यक्रम में राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़, राज्य सरकार में मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, राजवर्धन राठौड़, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख अरुण जैन, अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख अनिल ओक, क्षेत्र संघ चालक डॉ. रमेश अग्रवाल, क्षेत्र प्रचारक निंबाराम सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।